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छत्तीसगढ़ में भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन प्राधिकरण के गठन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को कड़ा निर्देश दिया है। कोर्ट ने 2 महीने के भीतर प्राधिकरण गठित करने का आदेश दिया है, अन्यथा कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी है। यह मामला सारंगढ़-बिलाईगढ़ के बाबूलाल द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका के बाद सामने आया, जिसमें बताया गया कि प्राधिकरण के अभाव में मुआवजे और ब्याज से जुड़े सैकड़ों मामले लंबित हैं, जिससे किसानों और भूस्वामियों को भारी परेशानी हो रही है।
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प्राधिकरण गठन में देरी पर कोर्ट नाराज
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की डिवीजन बेंच ने पाया कि प्राधिकरण कई वर्षों से निष्क्रिय है। राज्य सरकार ने 28 अप्रैल 2025 के आदेश का हवाला देते हुए दावा किया कि गठन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, लेकिन कोर्ट ने इसे अपर्याप्त माना। कोर्ट ने मुख्य सचिव को दो महीने में प्राधिकरण पूरी तरह कार्यरत करने का निर्देश दिया, अन्यथा कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी।
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2018 का एक्ट, लंबित हैं सैकड़ों आवेदन
एडवोकेट अभिनव श्रीवास्तव ने बताया कि 2018 में लागू भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत प्राधिकरण का गठन अनिवार्य है। अधिनियम की धारा 5(a) के अनुसार, मुआवजे और विवादों का निपटारा एक साल में होना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता, तो प्रभावित व्यक्ति प्राधिकरण में आवेदन कर सकता है। लेकिन छत्तीसगढ़ में प्राधिकरण के अभाव में सैकड़ों मामले अटके हुए हैं, जिससे भूस्वामियों को मुआवजा और ब्याज मिलने में देरी हो रही है।
भूस्वामियों के अधिकार सुरक्षित
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस आदेश से याचिकाकर्ता या अन्य प्रभावित व्यक्तियों के मुआवजा और ब्याज के दावे प्रभावित नहीं होंगे। उनके अधिकार पूरी तरह सुरक्षित रहेंगे। मामले की अगली सुनवाई 15 सितंबर 2025 को होगी, जिसमें प्राधिकरण गठन की प्रगति की समीक्षा की जाएगी।
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हाईकोर्ट ने खारिज की थी याचिका
इससे पहले, याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें प्राधिकरण गठन में देरी को उठाया गया था। लेकिन हाईकोर्ट ने इसे जनहित का मामला न मानते हुए खारिज कर दिया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई, जिसके बाद यह सख्त आदेश जारी हुआ।राज्य सरकार पर अब प्राधिकरण गठन की जिम्मेदारी है, ताकि प्रभावित किसानों और भूस्वामियों को समय पर न्याय मिल सके।
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