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सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ में सलवा जुडूम से संबंधित 18 साल पुराने मामले को बंद करने का महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। इस मामले में सुरक्षा बलों और सलवा जुडूम कार्यकर्ताओं पर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में मानवाधिकार उल्लंघन के गंभीर आरोप लगाए गए थे। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि छत्तीसगढ़ में नक्सली हिंसा से प्रभावित लोगों के पुनर्वास और क्षेत्र में शांति स्थापित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार को पर्याप्त कदम उठाने चाहिए।
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मानवाधिकार उल्लंघन की जांच की मांग
यह मामला 2007 में सामाजिक कार्यकर्ता नंदिनी सुंदर, इतिहासकार रामचंद्र गुहा, पूर्व आईएएस अधिकारी ई.ए.एस. शर्मा और अन्य याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर किया गया था। याचिका में छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों, विशेष रूप से बस्तर और दंतेवाड़ा जैसे इलाकों में सलवा जुडूम अभियान के दौरान कथित मानवाधिकार उल्लंघन की जांच की मांग की गई थी। सलवा जुडूम एक विवादास्पद जनजातीय आंदोलन था, जिसे 2005 में नक्सलियों के खिलाफ स्थानीय लोगों को संगठित करने के लिए शुरू किया गया था।
यह अभियान राज्य सरकार और सुरक्षा बलों के समर्थन से चलाया गया था, लेकिन इस दौरान कई गंभीर आरोप सामने आए, जिनमें हत्या, बलात्कार, जबरन विस्थापन और संपत्ति नष्ट करने जैसे अपराध शामिल थे। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि सलवा जुडूम के कार्यकर्ताओं और सुरक्षा बलों ने स्थानीय आदिवासियों के खिलाफ हिंसा की और उनके मौलिक अधिकारों का हनन किया। याचिका में इस अभियान को असंवैधानिक घोषित करने और इसके परिणामस्वरूप हुए नुकसान की जांच के लिए स्वतंत्र कमेटी गठन की मांग की गई थी।
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सुप्रीम कोर्ट का 2011 का ऐतिहासिक फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में इस मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था, जिसमें सलवा जुडूम को असंवैधानिक और गैरकानूनी घोषित किया गया था। कोर्ट ने कहा था कि नागरिकों को हथियार देकर नक्सलियों के खिलाफ लड़ने के लिए प्रोत्साहित करना संविधान के खिलाफ है। कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को निर्देश दिए थे कि वे सलवा जुडूम जैसे अभियानों को तुरंत बंद करें और प्रभावित लोगों के पुनर्वास के लिए कदम उठाएं। इसके साथ ही, कोर्ट ने मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) गठन का भी आदेश दिया था।
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मामले का बंद होना
18 साल बाद, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को बंद करने का फैसला लिया। जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि इतने लंबे समय बाद अब इन मामलों की जांच को आगे बढ़ाना व्यवहारिक नहीं है। कोर्ट ने यह भी माना कि छत्तीसगढ़ में नक्सल समस्या अब भी एक गंभीर चुनौती है, और इसका समाधान केवल कानूनी कार्रवाई से नहीं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक विकास और शांति स्थापना के प्रयासों से ही संभव है। पीठ ने अपने फैसले में केंद्र और राज्य सरकार को निर्देश दिए कि वे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के पुनर्वास, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाएं। कोर्ट ने यह भी कहा कि हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में शांति और विश्वास बहाली के लिए सरकार को दीर्घकालिक नीतियां बनानी चाहिए।
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सलवा जुडूम एक विवादास्पद इतिहास
सलवा जुडूम को छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के खिलाफ एक स्थानीय पहल के रूप में शुरू किया गया था, लेकिन यह जल्द ही विवादों में घिर गया। इस अभियान के तहत स्थानीय आदिवासियों को विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) के रूप में नियुक्त किया गया और उन्हें हथियार दिए गए। आलोचकों का कहना था कि इससे क्षेत्र में हिंसा और अराजकता बढ़ी, और कई निर्दोष लोग इसके शिकार हुए। मानवाधिकार संगठनों ने सलवा जुडूम को "राज्य प्रायोजित सशस्त्र समूह" करार देते हुए इसकी कड़ी आलोचना की थी।
याचिकाकर्ताओं की प्रतिक्रिया
याचिकाकर्ता नंदिनी सुंदर ने कोर्ट के फैसले पर मिश्रित प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि हालांकि कोर्ट ने मामले को बंद कर दिया है, लेकिन 2011 का फैसला अपने आप में ऐतिहासिक था, जिसने सलवा जुडूम जैसे अभियानों की असंवैधानिक प्रकृति को उजागर किया। उन्होंने यह भी जोड़ा कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में अभी भी मानवाधिकारों की स्थिति चिंताजनक है, और सरकार को कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए प्रभावित लोगों के लिए न्याय सुनिश्चित करना चाहिए।
नक्सल समस्या और भविष्य
छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद आज भी एक जटिल समस्या बना हुआ है। केंद्र और राज्य सरकारें इस समस्या से निपटने के लिए सुरक्षा बलों की तैनाती के साथ-साथ विकास योजनाओं पर भी काम कर रही हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक बार फिर इस बात पर जोर देता है कि हिंसा का समाधान केवल सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक विकास और विश्वास निर्माण के उपायों में निहित है।
विवादास्पद अध्याय का अंत
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सलवा जुडूम के विवादास्पद अध्याय को समाप्त करता है, लेकिन साथ ही यह नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शांति और विकास की दिशा में सरकार की जिम्मेदारी को रेखांकित करता है। यह देखना बाकी है कि केंद्र और छत्तीसगढ़ सरकार कोर्ट के निर्देशों को लागू करने के लिए क्या कदम उठाती हैं, ताकि प्रभावित समुदायों को न्याय और बेहतर भविष्य मिल सके।
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