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छत्तीसगढ़, जिसे अपनी प्राकृतिक संपदा और खनिज भंडारों के लिए जाना जाता है, आज रेत और खनिज माफियाओं के आतंक का गढ़ बनता जा रहा है। इन माफियाओं के हौसले इतने बुलंद हैं कि वे न केवल अवैध खनन और परिवहन में लिप्त हैं, बल्कि विरोध करने वालों पर जानलेवा हमले, गोलीबारी और धमकियां देकर क्षेत्र में दहशत फैला रहे हैं। ग्रामीण, पत्रकार और यहां तक कि प्रशासनिक अधिकारी भी इनके निशाने पर हैं।
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राजनांदगांव में ग्रामीणों पर गोलीबारी
राजनांदगांव जिले के मोहड़ गांव में शिवनाथ नदी के किनारे अवैध रेत खनन का विरोध करने गए ग्रामीणों पर रेत माफियाओं ने गोलीबारी की। इस घटना में तीन युवक घायल हो गए, जिनमें से एक की हालत गंभीर बताई गई। माफियाओं ने चार से पांच राउंड फायरिंग की और ग्रामीणों के साथ मारपीट भी की। ग्रामीणों का आरोप है कि स्थानीय पार्षद संजय रजक इस अवैध खनन में शामिल हैं। घटना के बाद गांव में तनाव का माहौल बन गया, और आक्रोशित ग्रामीणों ने पुलिस वाहनों को रोककर विरोध प्रदर्शन किया। पुलिस ने अभी तक गोलीबारी की पुष्टि नहीं की है, लेकिन जांच की बात कही है। इस घटना ने रेत माफियाओं के बेलगाम हौसलों को उजागर किया है।
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गरियाबंद में पत्रकारों पर जानलेवा हमला
गरियाबंद जिले के राजिम क्षेत्र में पैरी नदी के पितईबंद घाट पर अवैध रेत खनन की खबर कवर करने गए पत्रकारों पर रेत माफियाओं ने जानलेवा हमला किया। पत्रकार इमरान मेमन, थानेश्वर साहू, जितेंद्र सिन्हा और अन्य पर माफियाओं के गुर्गों ने लोहे की रॉड से हमला किया, कैमरे और आईडी कार्ड छीने, और दो बार हवाई फायरिंग की। पत्रकारों ने खेतों में छिपकर अपनी जान बचाई। इस घटना का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें पत्रकार खून से लथपथ दिखाई दे रहे हैं। पत्रकारों ने आरोप लगाया कि खनिज विभाग की मिलीभगत से यह अवैध खनन चल रहा है। घटना के विरोध में पत्रकारों ने सुंदर लाल शर्मा चौक पर धरना दिया और जिला खनिज अधिकारी को हटाने की मांग की। राजिम पुलिस ने चार आरोपियों को गिरफ्तार किया, लेकिन पत्रकार संगठनों ने इसे नाकाफी बताते हुए हत्या के प्रयास का मामला दर्ज करने की मांग की।
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सीतापुर में मांड नदी का बेतरतीब दोहन
सीतापुर जिले में मांड नदी से खनिज विभाग की शह पर रेत का अवैध खनन और परिवहन बेरोकटोक जारी है। ग्राम पंचायत और स्थानीय सरपंच भी इस अवैध वसूली में शामिल हैं। बिना पिट पास के रेत निकाली जा रही है, जिससे नदी का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है और आसपास के गांवों में जल संकट गहरा गया है। अवैध खनन के कारण मांड नदी सूख रही है, जिससे किसानों को सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल रहा। ग्रामीणों ने इस पर रोक लगाने की मांग की, लेकिन खनिज विभाग के अधिकारी कथित तौर पर माफियाओं से मिलीभगत कर रहे हैं। इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।
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मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर में ग्रामीणों का विरोध
मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर (MCB) जिले के हरचौका क्षेत्र में मवई नदी से रेत माफियाओं द्वारा अवैध खनन किया जा रहा है। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि मशीनों से नदी की खुदाई हो रही है, जिससे जलस्तर गिर रहा है और खेतों की सिंचाई प्रभावित हो रही है। विरोध करने पर माफियाओं ने ग्रामीणों को जान से मारने की धमकी दी। आम आदमी पार्टी के नेतृत्व में ग्रामीणों ने एसडीएम कार्यालय तक ट्रैक्टर मार्च निकाला और अवैध खनन पर रोक लगाने की मांग की। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के नियमों की अनदेखी का भी आरोप लगाया गया, लेकिन प्रशासन की ओर से कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई।
बलौदाबाजार में युवक की सार्वजनिक पिटाई
बलौदा बाजार जिले में रेत माफियाओं ने एक युवक को मुखबिरी के शक में बीच चौराहे पर खंभे से बांधकर बेल्ट से पीटा। यह घटना माफियाओं की दबंगई का ताजा उदाहरण है। सोशल मीडिया पर इसकी तस्वीरें वायरल होने के बाद भी प्रशासन की निष्क्रियता पर सवाल उठे।
रेत माफियाओं के बढ़ते हौसलों के कारण
प्रशासनिक निष्क्रियता और मिलीभगत : कई मामलों में खनिज विभाग और स्थानीय प्रशासन की मिलीभगत सामने आई है। उदाहरण के लिए, सीतापुर में खनिज अधिकारियों पर अवैध कमाई का हिस्सा लेने का आरोप है।
राजनीतिक संरक्षण : X पर कई पोस्ट में दावा किया गया कि रेत माफियाओं को सत्तारूढ़ दल के नेताओं का संरक्षण प्राप्त है। गरियाबंद में पत्रकारों पर हमले के बाद विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया कि बीजेपी के एक युवा नेता अवैध खनन को बढ़ावा दे रहे हैं।
कानून का कमजोर प्रवर्तन : रेत खनन को नियंत्रित करने वाले नियम, जैसे खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 और NGT दिशानिर्देश, का पालन नहीं हो रहा। अवैध खनन पर जुर्माना या मामूली FIR दर्ज कर मामला रफा-दफा कर दिया जाता है।
आर्थिक लाभ : रेत की बढ़ती मांग और इसके ऊंचे दाम माफियाओं को लुभाते हैं। मध्य प्रदेश में एक डंपर रेत की कीमत 32-36 हजार रुपये तक पहुंच गई थी, जो माफियाओं के लिए मोटी कमाई का स्रोत है।
सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव
पत्रकारों पर खतरा : छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता जोखिम भरा पेशा बन गया है। मुकेश चंद्राकर की हत्या और हाल के हमलों से प्रेस की स्वतंत्रता पर सवाल उठे हैं।
ग्रामीणों का जीवन संकट में : नदियों के सूखने से किसानों को सिंचाई और पीने के पानी की समस्या हो रही है। मवई और मांड नदी के किनारे बसे गांव जल संकट से जूझ रहे हैं।
पर्यावरणीय क्षति : अवैध खनन से नदियों का पारिस्थितिकी तंत्र नष्ट हो रहा है। मांड नदी के सूखने और शिवनाथ नदी के दोहन से जैव विविधता को नुकसान पहुंचा है।
कानून-व्यवस्था की चुनौती : गोलीबारी और हमलों की घटनाएं कानून-व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा बन रही हैं। राजनांदगांव में ग्रामीणों का पुलिस के खिलाफ प्रदर्शन इसका उदाहरण है।
प्रशासनिक कार्रवाई और मांगें
कलेक्टर का एक्शन : गरियाबंद में पत्रकारों पर हमले के बाद कलेक्टर भगवान सिंह यूईके ने जिला खनिज अधिकारी को शोकॉज नोटिस जारी किया।
पत्रकारों की मांग : पत्रकार संगठनों ने अवैध खदानों को बंद करने, दोषियों पर हत्या के प्रयास का केस दर्ज करने और खनिज अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग की है।
ग्रामीणों का विरोध : हरचौका और सीतापुर में ग्रामीणों ने प्रदर्शन कर अवैध खनन पर रोक लगाने की मांग की।
विपक्ष का दबाव : कांग्रेस नेताओं ने सरकार पर रेत माफियाओं को संरक्षण देने का आरोप लगाया है।
उपाय और सुझाव
सख्त कानूनी कार्रवाई : अवैध खनन पर MMDR अधिनियम और NGT नियमों का कड़ाई से पालन हो। दोषियों पर हत्या के प्रयास जैसे गंभीर मामले दर्ज किए जाएं।
प्रौद्योगिकी का उपयोग : ड्रोन और नाइट विजन कैमरों से खनन गतिविधियों की निगरानी हो, जैसा कि केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों में सुझाया गया है।
पारदर्शी ठेका प्रणाली : रेत घाटों के ठेके में पारदर्शिता लाई जाए और स्थानीय समुदाय को लाभ सुनिश्चित हो।
पत्रकारों की सुरक्षा : पत्रकारों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए विशेष नीति बनाई जाए।
जागरूकता और सामुदायिक भागीदारी : ग्रामीणों को अवैध खनन के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक किया जाए और उनकी शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई हो।
पर्यावरण और समाज के लिए खतरा
छत्तीसगढ़ में रेत और खनिज माफियाओं का आतंक न केवल पर्यावरण और समाज के लिए खतरा है, बल्कि यह कानून-व्यवस्था और प्रेस की स्वतंत्रता पर भी गंभीर सवाल उठाता है। राजनांदगांव, गरियाबंद, सीतापुर और MCB जिले की घटनाएं माफियाओं की बेखौफी का सबूत हैं। प्रशासन की निष्क्रियता और कथित मिलीभगत ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है। सरकार को तत्काल सख्त कदम उठाने होंगे, वरना यह माफियाराज छत्तीसगढ़ की प्राकृतिक और सामाजिक संरचना को अपूरणीय क्षति पहुंचा सकता है।
छत्तीसगढ़ में खनिज और रेत खनन माफियाओं का आतंक | Mining mafia | Terror of mineral and sand mining mafia in Chhattisgarh