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छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर एक बार फिर सुर्खियों में है, लेकिन इस बार वजह है एक चौंकाने वाला आपराधिक मामला। करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह तोमर और उनके भाई कुख्यात हिस्ट्रीशीटर रोहित सिंह तोमर के खिलाफ रायपुर पुलिस की ताजा कार्रवाई ने न केवल उनके आपराधिक साम्राज्य का पर्दाफाश किया है, बल्कि यह भी सवाल उठाए हैं कि अपराध की जड़ें कितनी गहरी हो चुकी हैं और सिस्टम की नाकामी ने इसे कैसे बढ़ावा दिया।
एक समय अंडे का ठेला लगाने वाले तोमर बंधुओं का करोड़ों की संपत्ति, बीएमडब्ल्यू जैसी लग्जरी गाड़ियां, 5,000 वर्गफीट की आलीशान कोठी, लाखों की नकदी, सोना, और अवैध हथियारों तक का सफर न केवल चौंकाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कुछ रसूखदार लोगों की मेहरबानी और प्रशासनिक लापरवाही ने इस आपराधिक गतिविधियों को पनपने का मौका दिया।
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तोमर बंधुओं का आपराधिक इतिहास
वीरेंद्र सिंह तोमर और रोहित सिंह तोमर मूल रूप से उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। रायपुर में पिछले कुछ वर्षों में दोनों भाई अपराध की दुनिया के बड़े चेहरों के रूप में उभरे हैं। दोनों भाइयों के खिलाफ मारपीट, ब्लैकमेलिंग, रंगदारी, और खारून नदी के घाट पर अवैध कब्जे जैसे गंभीर अपराधों के 10 से अधिक मामले दर्ज हैं। उनकी शुरुआत रेलवे स्टेशन पर पॉकेटमारी जैसे छोटे अपराधों से हुई थी, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने सूदखोरी, रंगदारी, और अवैध हथियारों के कारोबार में अपनी पकड़ मजबूत की।
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पुलिस की छापेमारी और बरामद सामग्री
रायपुर पुलिस ने भाठागांव और ढेबर कालोनी के निकट स्थित तोमर बंधुओं के अलिशान मकान पर पर छापेमारी की। गत 4 जून 2025 को की गई इस कार्रवाई में पुलिस ने 70 तोला सोना, चांदी के जेवरात, 37 लाख नकद, अवैध हथियार, कारतूस, तीन लग्जरी गाड़ियां (जिनमें बीएमडब्ल्यू शामिल है) और संपत्तियों से संबंधित महत्वपूर्ण दस्तावेज भी बरामद किए। इसके अलावा, 5,000 वर्गफीट में फैली उनकी आलीशान कोठी ने भी जांच एजेंसियों को हैरान कर दिया। यह संपत्ति और वैभव उस समय और भी सवाल खड़े करता है जब यह सामने आया कि तोमर बंधु पहले सड़क किनारे अंडा ठेला लगाते थे।
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अपराध से संपत्ति तक का सफर
तोमर बंधुओं की कहानी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं है। छोटे स्तर के अपराधों से शुरूआत करने वाले इन भाइयों ने न केवल रायपुर में अपनी जड़ें जमाईं, बल्कि सूदखोरी और रंगदारी के जरिए करोड़ों की संपत्ति अर्जित की। उनकी आलीशान कोठी, महंगी गाड़ियां, और भारी मात्रा में नकदी और सोने की बरामदगी इस बात का सबूत है कि अपराध का उनका नेटवर्क कितना संगठित और व्यापक हो चुका था। यह सवाल उठता है कि इतने बड़े स्तर पर आपराधिक गतिविधियां चलाने के बावजूद वे इतने समय तक कानून की पकड़ से बाहर कैसे रहे?
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सिस्टम की नाकामी और रसूखदारों की मेहरबानी
यह मामला केवल तोमर बंधुओं तक सीमित नहीं है; यह सिस्टम की नाकामी और कुछ रसूखदार लोगों की मेहरबानी का भी परिणाम है। सोशल मीडिया पर कई लोगों ने सवाल उठाए हैं कि आखिर क्यों बाहरी अपराधियों को छत्तीसगढ़ में इतना संरक्षण मिला? क्या स्थानीय प्रशासन और कुछ प्रभावशाली लोगों की मिलीभगत ने तोमर बंधुओं को इतना बेखौफ बना दिया? रायपुर पुलिस की ताजा कार्रवाई भले ही एक कदम आगे हो, लेकिन यह सवाल अब भी अनुत्तरित है कि पहले ऐसी कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
शराब घोटाले से भी संबंध!
छत्तीसगढ़ में हाल ही में सामने आए 2000 करोड़ रुपये के शराब घोटाले की जांच में भी एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) और आर्थिक अपराध शाखा (EOW) सक्रिय हैं। इस घोटाले में रसूखदार लोगों द्वारा सरकारी राजस्व को नुकसान पहुंचाने की बात सामने आई है। कुछ जानकारों का मानना है कि तोमर बंधुओं का आपराधिक नेटवर्क भी ऐसे बड़े घोटालों से जुड़ा हो सकता है, जहां अवैध धन को संपत्तियों और व्यवसायों में निवेश किया गया। हालांकि, इस संबंध में अभी कोई ठोस सबूत सामने नहीं आए हैं।
सामाजिक और प्रशासनिक प्रभाव
तोमर बंधुओं का मामला छत्तीसगढ़ में बढ़ते अपराध और संगठित गिरोहों की समस्या को उजागर करता है। यह न केवल कानून-व्यवस्था के लिए चुनौती है, बल्कि समाज में विश्वास की कमी को भी दर्शाता है। जब छोटे स्तर का अपराधी इतने बड़े साम्राज्य का मालिक बन जाता है तो यह साफ है कि कहीं न कहीं प्रशासनिक तंत्र में खामियां हैं। साथ ही, करणी सेना जैसे संगठनों से जुड़े होने के कारण यह मामला सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर भी संवेदनशील हो गया है।
अपराध पर भी हो जीरो टॉलरेंस
रायपुर पुलिस की इस कार्रवाई को एक शुरुआत माना जा सकता है, लेकिन यह काफी नहीं है। तोमर बंधुओं के आपराधिक नेटवर्क की गहरी जांच, उनके संरक्षकों का पता लगाना भी जरूरी है। साथ ऐसे तत्वों की अवैध संपत्तियों की जब्ती भी अवाश्यक है। शासन को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में अपराधियों को कोई संरक्षण न दे सके। प्रदेश सरकार भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात करती है। ऐसे में सरकार को इस मामले में कठोर कदम उठाने होंगे ताकि सिस्टम में विश्वास बहाल हो।
सामाजिक और प्रशासनिक संकट का प्रतीक
तोमर बंधुओं का मामला केवल एक आपराधिक घटना नहीं, बल्कि एक बड़े सामाजिक और प्रशासनिक संकट का प्रतीक है। अंडा ठेला लगाने से लेकर करोड़ों की संपत्ति तक का उनका सफर न केवल उनके अपराधों की गहराई को दर्शाता है, बल्कि यह भी सवाल उठाता है कि सिस्टम ने उन्हें इतना बेखौफ होने का मौका कैसे दिया? यह समय है कि छत्तीसगढ़ में कानून-व्यवस्था को और मजबूत किया जाए, ताकि अपराध की जड़ें और गहरी न हो सकें।
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