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छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर अपने हृदय में बसी खारुन नदी के किनारे पनपती है। यह नदी न केवल शहर की प्यास बुझाती है, बल्कि इसकी सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान का भी अभिन्न हिस्सा है। लेकिन यह जीवनदायिनी नदी अब एक गंभीर खतरे का पर्याय बनती जा रही है। पिछले पांच वर्षों में खारुन नदी में डूबने से 421 लोगों की मौत हो चुकी है, जिसमें हर साल औसतन 84 लोग, खासकर युवा, अपनी जान गंवा रहे हैं। इस त्रासदी का सबसे दुखद पहलू यह है कि प्रशासन की लापरवाही और जागरूकता की कमी के कारण यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा।
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खारुन नदी और इसके एनीकट
खारुन नदी रायपुर के लिए जीवनरेखा है। शहर की अधिकांश आबादी इस नदी के पानी पर निर्भर है। नदी पर कुल आठ एनीकट बने हैं, जो सातपाखर, काठाडीह, मुजगहन, मुड्रा, मूर्रा, उरला, और अन्य स्थानों पर स्थित हैं। ये एनीकट न केवल जल संरक्षण और सिंचाई के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए मनोरंजन और सामाजिक गतिविधियों का केंद्र भी हैं। लेकिन यही एनीकट अब मौत के मुंह बन गए हैं। खासकर उरला में पिछले पांच सालों में 30 लोग डूब चुके हैं।
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डूबने की त्रासदी, आंकड़े और कारण
पिछले पांच वर्षों में खारुन नदी में डूबने से हुई 421 मौतें चिंता का विषय हैं। आंकड़ों के अनुसार:
80% शहरी क्षेत्र के लोग: डूबने वालों में अधिकांश शहरी युवा हैं, जो तैरना नहीं जानते। शहरों में तालाबों या नदियों में तैरने की परंपरा और प्रशिक्षण की कमी इसका प्रमुख कारण है।
20% ग्रामीण लोग : ग्रामीण क्षेत्रों के लोग, जो आमतौर पर तालाबों में तैरना सीख लेते हैं, कम प्रभावित हैं।
मौतों का समय: अगस्त से अक्टूबर के बीच डूबने की घटनाएं सबसे अधिक होती हैं, जब बारिश के बाद नदी का जलस्तर बढ़ जाता है और लोग नहाने या मस्ती करने के लिए नदी किनारे जाते हैं।
उरला का काला सच: उरला में 30 लोगों की मौत इस क्षेत्र को सबसे खतरनाक बनाती है।
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प्रशासन की लापरवाही
इतनी बड़ी संख्या में मौतों के बावजूद खारुन नदी के किनारे कोई ब्लैक स्पॉट घोषित नहीं किया गया है। नदी के किनारों पर चेतावनी बोर्ड या सुरक्षा के इंतजाम न के बराबर हैं। न तो गहरे पानी के क्षेत्र चिह्नित किए गए हैं, न ही वहां कोई सुरक्षा गार्ड तैनात हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रशासन की उदासीनता के कारण यह त्रासदी बढ़ती जा रही है।
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SDRF की भूमिका
राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF) ने पिछले पांच सालों में खारुन नदी में डूबने से 671 लोगों को बचाया है। यह आंकड़ा दर्शाता है कि अगर समय पर कार्रवाई हो, तो कई जिंदगियां बचाई जा सकती हैं। लेकिन बचाव कार्यों के बावजूद, रोकथाम के उपायों की कमी के कारण मौतों का सिलसिला जारी है।
सामाजिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य
शहरी और ग्रामीण लोगों के बीच तैराकी के कौशल में अंतर एक सामाजिक पहलू को उजागर करता है। ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चे बचपन से ही तालाबों और नदियों में तैरना सीख लेते हैं, जबकि शहरी युवा इस कौशल से वंचित रहते हैं। इसके अलावा, नदी किनारे सामाजिक आयोजनों और पिकनिक के लिए जाना आम है, जिसके दौरान लोग बिना सावधानी के पानी में उतर जाते हैं।
समाधान के उपाय
इस त्रासदी को रोकने के लिए तत्काल कुछ कदम उठाने की जरूरत है। इनमें खारुन के खतरनाक क्षेत्रों को ब्लैक स्पॉट घोषित कर चेतावनी बोर्ड लगाए जाएं। एनीकटों के पास सुरक्षा गार्ड तैनात किए जाएं और गहरे पानी वाले क्षेत्रों को चिह्नित किया जाए। शहरी युवाओं को तैराकी सिखाने और नदी में नहाने के खतरों के बारे में जागरूक करने के लिए अभियान चलाए जाएं। बचाव कार्यों के लिए SDRF को और संसाधन और प्रशिक्षण दिए जाएं और नदी किनारे रहने वाले समुदायों को सुरक्षा और निगरानी में शामिल किया जाए।
प्रशासन और समाज ने मिलकर उठाए कदम
खारुन रायपुर की जीवनदायिनी है, लेकिन इसकी लहरों में छिपा खतरा अब अनदेखा नहीं किया जा सकता। 421 मौतें एक चेतावनी हैं कि अगर प्रशासन और समाज ने मिलकर कदम नहीं उठाए, तो यह त्रासदी और गहरा सकती है। यह समय है कि खारुन को केवल जीवनदायिनी ही नहीं, बल्कि सुरक्षित भी बनाया जाए। इसके लिए जागरूकता, सुरक्षा उपाय और प्रशासनिक इच्छाशक्ति जरूरी है। क्या रायपुर अपनी जीवनरेखा को काल का गाल बनने से बचा पाएगा? यह सवाल अब हर उस व्यक्ति के सामने है, जो इस नदी के किनारे रहता है।
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