धान किसान की बल्ले-बल्ले, वर्मी मैट्रिक्स ग्रिड मेथड से खेती से बंपर मुनाफा

कोरबा जिला मुख्यालय के पास के गांव झगरहा के किसान रामरतन निकुंज के द्वारा किए गए प्रयोग ने धान की खेती करने वाले किसानों को नई राह दिखाई है।

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Pravesh Shukla
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कोरबा। जिला मुख्यालय के पास के गांव झगरहा के किसान रामरतन निकुंज के द्वारा किए गए प्रयोग ने धान की खेती करने वाले किसानों को नई राह दिखाई है। वर्मी मैट्रिक्स ग्रिड पद्धति अपनाते हुए धान की खेती में लागत 50 प्रतिशत तक घटाते हुए प्रति हेक्टेयर 95 से 106 क्विंटल तक पैदावार ले रहे हैं। अभी तक छत्तीसगढ़ में धान का औसत उत्पादन प्रति हेक्टेयर 80 क्विंटल ही रहा है।

प्रति हैक्टेयर 50 से 80 क्विंटल उत्पादन

किसान रामरतन साल 2018 में एसईसीएल गेवरा से रिटायर हुए। इसके बाद उन्होंने खेती करने की ठानी। इसके लिए पहले उन्होंने धान की खेती की पद्धतियों के बारे में जानकारी जुटाई। उन्हें पता लगा कि प्रति हैक्टेयर 50 से 80 क्विंटल के बीच धान का उत्पादन हो रहा था। इसके बाद उन्होंने ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी संजय पटेल से सलाह ली।

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वर्मी मैट्रिक्स ग्रिड पद्धति से खेती

किसान ने बताया कि उसने बिलासपुर, रायपुर में कृषि मेलों में जाकर जानकारी इकट्ठा की। जिसके बाद 3 साल पहले उसने वर्मी मैट्रिक्स ग्रिड पद्धति अपनाई और 2 हेक्टेयर में धान की फसल बोई। रामरतन ने बताया कि इस पद्धति का पहली बार प्रयोग उन्होंने ही किया, इसलिए चुनौती भी थी। यह समय प्रबंधन आधारित खेती है। जिस तरह सब्जी की फसल लगाते हैं, ठीक उसी तरह से वर्मी कंपोस्ट को लाइन में डालकर धान के पौधों की रोपाई की।

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इस तरह होती है खेती

इस तरह से खेती करने के लिए जरूरी यह है कि धान की नर्सरी 15 से 20 दिन से ज्यादा की नहीं होनी चाहिए। वर्मी कंपोस्ट से पौधे को ग्रोथ मिली, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ी। कीट-व्याधि का प्रकोप कम हुआ। रासायनिक कीटनाशक का उपयोग कम हो गया। इससे लागत 50% तक कम हो गई।

धान की बंपर पैदावार

हालांकि धान लगाते समय थोड़ी मेहनत करनी पड़ी। लेकिन यह मेहनत रंग लाई और जब धान की कटाई और मिजाई हुई तो पैदावार अच्छी निकली। शुरुआती दौर में एक हेक्टेयर में 88 क्विंटल धान की पैदावार हुई। सबसे अधिक 106 क्विंटल धान साल 2023 में हुआ। जिले भर से ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी इसे देखने मेरे खेत पर आए

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नई पद्धति से खेती का प्रयोग

किसान रामरतन निकुंज ने वर्मी मैट्रिक्स ग्रिड पद्धति अपनाकर पारंपरिक धान की खेती में बदलाव किया, जिससे उत्पादन बढ़ा और लागत घटी।

कम लागत, अधिक उत्पादन

इस पद्धति से धान की खेती में 50% तक लागत कम हुई और प्रति हेक्टेयर 95 से 106 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त हुई, जबकि छत्तीसगढ़ में औसत उत्पादन 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

प्राकृतिक उर्वरक और समय प्रबंधन

खेती में वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल करके पौधों की ग्रोथ और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ी। रासायनिक कीटनाशकों की जरूरत कम हुई, जिससे खेती पर्यावरण अनुकूल भी बनी।

दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा

रामरतन के सफल प्रयोग को देखकर आसपास के गांवों के किसान भी यह पद्धति अपना रहे हैं, जिससे पूरे क्षेत्र में खेती की दिशा में सकारात्मक बदलाव आ रहा है।

अच्छी आमदनी

किसान के अनुसार, 5 एकड़ में एक लाख रुपये की लागत आती है, जबकि सरकारी समर्थन मूल्य के हिसाब से 6.20 लाख रुपये तक की आमदनी हो रही है।

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प्रति एकड़ एक लाख का खर्च

किसान ने बताया कि अब आसपास के गांव दादर, खरमोरा, बरबसपुर आदि के किसान भी इस पद्धति को अपना रहे हैं। पांच एकड़ की खेती में करीब 1 लाख रुपए खर्च होते हैं। जबकि सरकारी रेट के हिसाब से धान की पैदावार 6.20 लाख रुपए तक हो रही है।

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