जंगल की रौनक में ग्रामीणों की कमाई

छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के मनेंद्रगढ चिरमिरी भरतपुर में महुआ के फूल टपकने के साथ ही आदिवासी अंचलों में एक नया उत्सव शुरू हो गया है। गांवों में सन्नाटा है, लेकिन खेत-खलिहान और जंगलों में रौनक है।

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Krishna Kumar Sikander
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कोरिया (रजनीश श्रीवास्तव) : छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के मनेंद्रगढ चिरमिरी भरतपुर में महुआ के फूल टपकने के साथ ही आदिवासी अंचलों में एक नया उत्सव शुरू हो गया है। गांवों में सन्नाटा है, लेकिन खेत-खलिहान और जंगलों में रौनक है। हर सुबह 5-6 बजे से ही पूरा गांव परिवार सहित जंगल की ओर निकल पड़ता है। यह महुआ बीनने का समय है।

महुआ न सिर्फ वनों की गोद में खिलता फूल है, बल्कि कोरिया और एमसीबी क्षेत्र के हजारों आदिवासी परिवारों के लिए जीविका, परंपरा और प्रकृति से जुड़ाव का प्रतीक है। इसके साथ जुड़ी समस्याओं में जंगल की आग, अनियंत्रित संग्रहण और बाजार की अस्थिरता को समझना और समाधान खोजना जरूरी है। तभी यह वनोपज सही मायनों में ‘वन-समृद्धि’का वाहक बन सकेगा।

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गांवों में सन्नाटा, जंगलों में चहल-पहल

महुआ के इस सीजन में गांवों की गलियों में न कोई आवाजाही है, न ही किसी घर से चूल्हे की गंध आती है। बच्चे, बूढ़े, महिलाएं और युवक सब जंगलों में व्यस्त हैं। महुआ संग्रहण का यह मौसम मार्च से अप्रैल तक लगभग डेढ़ महीने चलता है। यह वह समय होता है जब आदिवासी अपने बाकी सभी कामों को दरकिनार कर देते हैं।

एक पेड़ से दो क्विंटल महुआ तक

ग्रामीणों के अनुसार, एक स्वस्थ महुआ पेड़ से लगभग एक से दो क्विंटल फूल इकट्ठा किया जा सकता है। यही वजह है कि इन पेड़ों की देखभाल किसी देवता की तरह की जाती है। कोरिया और एमसीबी क्षेत्र के आदिवासी महुआ को न केवल आर्थिक साधन, बल्कि सांस्कृतिक प्रतीक मानते हैं।

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जंगलों में आग भी बनती है खतरा

महुआ संग्रहण के दौरान ग्रामीण पेड़ों के नीचे आग लगाकर पत्तियां साफ करते हैं, परंतु आग बुझाए बिना छोड़ देना जंगलों के लिए घातक साबित होता है। हर साल इसी कारण जंगलों में आग फैलती है और वनों को भारी नुकसान होता है। वन विभाग इसके लिए जागरूकता अभियान चलाता है, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है।

महुआ का बाजार और परिवार का भविष्य

ग्रामीण ध्रुव नारायण तिवारी बताते हैं कि महुआ हमारे जीवन का आधार है। हमारा साल भर का नमक-तेल, दवाई-लत्ता सब इसी से चलता है। शादी-ब्याह, बच्चों की पढ़ाई तक इससे होती है।" वे आगे कहते हैं, "हम सुबह चार बजे उठकर जंगल चले जाते हैं। वहीं खाना, वहीं पानी, वहीं जिंदगी।"

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यह सिर्फ फूल नहीं, हमारे जीवन की गंध

शिक्षक से सेवानिवृत्त श्यामलाल बैगा कहते हैं कि मैंने विद्यार्थी जीवन में महुआ बेचकर पढ़ाई की। आज 62 साल की उम्र में भी अपनी पत्नी के साथ जंगल जाता हूं। यह सिर्फ फूल नहीं, हमारे लिए जीवन की गंध है। महुआ खाने से शरीर में ऊर्जा आती है और फिर दिनभर काम करने पर भी थकान नहीं होती।

किसानों के लिए साल भर की कमाई 

पूर्व सरपंच समर बहादुर सिंह का कहना है कि महुआ सिर्फ फूल नहीं, मजदूर और किसानों के लिए साल भर की कमाई है। यह मनरेगा से भी बड़ा रोजगार है। अगर इसे ठीक से संजोया जाए, तो एक परिवार बीस-बीस हजार रुपए तक की कमाई कर सकता है।"

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महुआ का औषधीय महत्व

जिला चिकित्सा अधिकारी डॉ. अविनाश खरे बताते हैं कि महुआ एक बहुत ही उपयोगी वनोपज है। इसके फूल और फल दोनों में औषधीय गुण होते हैं। यह हृदय रोग, डायबिटीज और बीपी को नियंत्रित करने में सहायक है। इसमें एंटीऑक्सिडेंट्स और तनाव दूर करने वाले तत्व भी पाए जाते हैं। लेकिन इसका सेवन सीमित मात्रा में ही लाभकारी होता है। अधिक सेवन से गैस, अपच और कब्ज जैसी समस्याएं हो सकती हैं।"

 

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