मुख्य आरोपी कौन..? 22 साल बाद भी पता नहीं लगा पाई सरकार, हाईकोर्ट ने जिसे दोषी ठहराया

छत्तीसगढ़ पीएससी 2003 का मुख्य आरोपी कौन है? 22 साल बाद भी राज्य सरकार पता नहीं लगा पाई। जबकि हाईकोर्ट ने 147 लोगों के चयनित होने वाले पीएससी  के खिलाफ आदेश दिया था।

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VINAY VERMA
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Who main accused after 22 years government could not find accused
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छत्तीसगढ़ पीएससी 2003 का मुख्य आरोपी कौन है? 22 साल बाद भी राज्य सरकार पता नहीं लगा पाई। जबकि हाईकोर्ट ने 147 लोगों के चयनित होने वाले पीएससी  के खिलाफ आदेश दिया था। राज्य सरकार ने जहां इनमे से 14 लोगों को IAS अवार्ड कर दिया। वहीं अन्य को भी प्रमोट कर बड़े ओहदे तक पहुंचा दिया। कार्रवाई के नाम पर बस तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक BP कश्यप की वेतनवृद्धि रोक सारी जिम्मेदारी पूरी कर ली गई।

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ये थे जिम्मेदार अधिकारी

पीएससी 2003 में जब 147 लोगों का चयन हुआ था। उस दौरान तत्कालीन अध्यक्ष के रूप के छग के पूर्व DGP अशोक दरबारी, सचिव मनोहर पांडेय और परीक्षा नियंत्रक BP कश्यप थे। BP कश्यप मूल रूप से उच्च शिक्षा विभाग से थे, और उनकी पोस्टिंग महिला गर्ल्स डिग्री कॉलेज रायपुर में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप के थी। ACB की जांच और हाइकोर्ट का फैसला आने के बाद राज्य सरकार ने अशोक दरबारी को सस्पेंड कर दिया, टर्मिनेट करने राष्ट्रपति के पास फाइल गई लेकिन अशोक दरबारी सुप्रीम कोर्ट चले गये, जहाँ से इनको राहत मिल गई।

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बताया गया, इस दौरान तत्कालीन राज्य सरकार ने पक्ष रखने में लापरवाही बरती। मीडिया में आ रही खबरों के बीच सचिव मनोहर पांडे का ट्रांसफर कर दिया गया। गड़बड़ी के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार माने जा रहे परीक्षा नियंत्रक BP कश्यप को केवल तीन वेतन वृद्धि रोकने की सजा देकर छोड़ दिया गया। जबकि ACB की जांच के बाद राज्य सरकार के पास दोषियों पर कार्रवाई के पर्याप्त सबूत थे।

सभी को कर दिया IAS अवार्ड

विवादित परीक्षा में डिप्टी कलेक्टर में चयनित अफसरों में पद्ममिनी भोई, जयश्री जैन, चंद्र संजय त्रिपाठी, प्रियंका थवाईत, फरिहा आलम, रोक्तिमा राय, दीपक कुमार अग्रवाल, संजय कन्नौजे, तुलिका प्रजापति, सुखनाथ मोची, भगवान सिंह उईके, लीना ध्रुव और संतन देवी जांगड़े। इन सभी को IAS अवार्ड कर सचिव, MD कलेक्टर के पदों की जिम्मेदारी दे दी। इनमे से कलेक्टर भगवान सिंह कुशवाहा अब कुछ समय बाद रिटायर भी होने वाले हैं।  

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क्या है पूरा मामला

मध्य प्रदेश से अलग राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ में पहली बार साल 2003 में 147 पदों पर भर्तियां निकाली गईं। पीएससी के तहत राज्य प्रशासनिक सेवा, राज्य पुलिस सेवा सहित अन्य पदों के लिए प्रक्रिया हुई। साल 2005 में इसका रिजल्ट आया, जिसके बाद भर्ती, घोटाले के आरोपों से घिर गई।

आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल ही रहा था कि इसी दौरान साल 2005 में सूचना का अधिकार कानून लागू हो गया। इसके बाद कुछ अभ्यर्थियों ने चयनित लोगों की कॉपियां आरटीआई के जरिए निकाल ली। जिसमें खुलासा हुआ कि एक पेज लिखने वाले उम्मीदवारों को 60 से 55 अंक मिले। जबकि इस विषय में सभी और सही जवाब लिखने वालों को 10 से 15 अंक ही मिले। स्केलिंग में भी नंबर बराबर होने के बाद भी एक विषय वालों के नंबर बदल दिये गए।

ACB में केस हुआ रजिस्टर्ड

हाईकोर्ट में पीएससी-2003 का फैसला आने के बाद भर्ती प्रक्रिया से जुड़े अफसरों और जिम्मेदारों की गिरफ्तारी के आसार बढ़ गए थे। इधर एंटी करप्शन ब्यूरो यानी एसीबी की जांच में घोटाला सामने आ गया था। एसीबी ने 2006के एफआईआर भी दर्ज कर ली थी। केवल घोटाले में जिम्मेदारों की भूमिका की जांच बाकी थी।

राजनीतिक हस्तक्षेप के बाद एसीबी ने इस मामले में विधि विभाग के विशेषज्ञों से राय ली। विशेषज्ञों की सिफारिश पर ही कोर्ट का फैसला आने तक गिरफ्तारी रोक दी गई थी। इधर छग हाईकोर्ट ने भर्ती प्रक्रिया को गलत बताया। लेकिन 147 अभ्यर्थियों को राज्य सरकार ने न केवल जिम्मेदार पदों पर सुशोभित करती रही। बल्कि उन्हें प्रमोशन भी दे दिया।

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हाईकोर्ट का फैसला

हाईकोर्ट ने याचिका पर 88 पेज के फैसले में छत्तीसगढ़ पीएससी में व्याप्त भ्रष्टाचार और तत्कालीन अधिकारियों के रवैये पर सख्त टिप्पणी की गई थी। हाईकोर्ट का आदेश लागू होने और वैकल्पिक विषय की नई सिरे से स्केलिंग के बाद मेरिट लिस्ट जारी करने का आदेश दिया था। जिससे वर्तमान में कार्यरत कई अधिकारियों की नौकरी समाप्त हो जाती, वहीं कई अधिकारियों का डिमोशन निम्न पदों पर होता। 


फैसले के खिलाफ SC पहुंचे चयनित लोग

प्रभावित होने वाले अधिकारियों ने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में 2016 में चुनौती दी। संजय चंदन त्रिपाठी व अन्य विरुद्ध वर्षा डोंगरे व अन्य के मामले में प्रारंभिक सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश के प्रभाव व क्रियान्वयन पर रोक लगया दी। 147 पक्षकारों को नोटिस जारी किया था, इसमें से 19 लोगों का वर्तमान पता गलत होने या किसी अन्य कारण से नोटिस पहुंच नहीं सका। जिसके कारण 9 साल बाद सुनवाई पूरी नहीं हो सकी, जिसका फायदा अधिकारियो को मिल रहा। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर सरकार चयनित अधिकारियों पर कार्रवाई चाहती तो सुप्रीम कोर्ट जाकर जल्द से जल्द फैशन देने का निवेदन करती।

डीएसपी से एडिशनल एसपी बन गए

निवेदिता पाल, इला तिवारी, ओमप्रकाश शर्मा, नीरज चंद्राकर, गायत्री सिंह, कमलेश्वर प्रसाद चंदेल, नेहा पांडे, मेघा टेंभुरकर, मनीषा ठाकुर और ज्योति सिंह।

चयनित लेखा अधिकारी के नाम

प्रशांत लाल, दिवाकर सिंह राठौर, सौम्या चौरसिया, भावेश कुमार दुबे, मिनाक्षी शुक्ला, श्रद्धा तिवारी, मोहम्मद इमरान, कुमारी ज्योत्सना, नीरज कुमार मिश्रा, सुशील कुमार गजभिये, राजीव सिंह चौहान, श्रद्धा थवाईत, सत्येंद्र शाह, चंद्रप्रभा, दीपक सिंह, रवि नेताम, सुषमा ठाकुर और गांधीलाल भारद्वाज। हालांकि सौम्या चौरसिया पीएससी 2005 की क्वालीफाई कर डिप्टी कलेक्टर बन गई।

 

जॉइंट कलेक्टर बन गए हैं ये नायब तहसीलदार

विकास महेश्वरी, सुनीती केशरवानी, महेश सिंह राजपूत, अमित कुमार गुप्ता, शैलेंद्र कुमार सक्सेना, सुधांशु सक्सेना विकास महेश्वरी, पूनम मिश्रा, जागेश्वर कौशल, प्रकाश टंडन, सारिका रामटेक, रजनी भगत, गीता राजस्त और बनसिंह नेताम। इसके अलावा वाणिज्यकर निरीक्षक सात, वाणिज्य अधिकारी, सहायक संचालक जनसंपर्क एवं जिला बाल विकास अधिकारी के 11-11, जिला आबकारी अधिकारी के पांच, जिला पंजियक के एक, सहायक संचालक स्वास्थ के तीन, और आबकारी उप निरीक्षक के 44 पद हैं।

 

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