BHOPAL. प्रदेश के मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा सोमवार को हो गई है। उज्जैन दक्षिण से विधायक मोहन यादव प्रदेश के नए मुख्यमंत्री होंगे। वह दूसरे व्यक्ति हैं जो उज्जैन से मुख्यमंत्री पद पर पहुंचे हैं। इससे पहले प्रकाश चंद्र सेठी 1972 से 1975 तक मुख्यमंत्री रहे थे। वह उज्जैन उत्तर से विधायक चुने गए थे। मालवा निमाड़ क्षेत्र से दूसरी बार मुख्यमंत्री बने मोहन यादव के नाम ने सभी को एक तरह से चौंका दिया है।
20 साल पहले लौटाया था विधायक का टिकट
मोहन यादव को 2003 में पार्टी ने उज्जैन जिले की बड़नगर सीट से टिकट दिया था, लेकिन बड़नगर में कार्यकर्ताओं ने शांतिलाल धबाई को टिकट की मांग को लेकर प्रदर्शन किया। यादव ने संगठन की बात को मानकर तत्काल टिकट लौटा दिया। इसके बाद से ही उनका कद पार्टी में बढ़ गया। उमा भारती मुख्यमंत्री बनीं तो उन्हें उज्जैन विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाया। बाद में उन्हें मप्र पर्यटन विकास निगम का चेयरमैन भी बनाया गया। 2013 में उज्जैन दक्षिण से पार्टी ने टिकट दिया और वे चुनाव जीत गए। 2018 में दूसरी बार विधायक चुने गए। 2 जुलाई 2020 को उन्हें शिवराज कैबिनेट में उच्च शिक्षा मंत्री बनाया गया। 1965 में उज्जैन में पूनमचंद यादव के घर जन्मे मोहन यादव एमए, पीएचडी हैं। उनकी शादी सीमा यादव से हुई है। उनके दो बेटे और एक बेटी हैं।
सेठी के समय नहीं बजी थी तालियां
उस समय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थी और उन्होंने ही सेठीजी को मध्यप्रदेश की कुर्सी पर बैठाया था। कई नेता इंतजार कर रहे थे कि शायद उनका नाम सीएम पद के लिए घोषित कर दिया जाए। लेकिन, किसी ने नहीं सोचा था कि अचानक इंदिराजी ने जिसका नाम लिया, उसके बाद सभी हैरान रह गए। उसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। वो नाम था प्रकाशचंद्र सेठी का। इंदिराजी के मुंह से यह नाम निकलते ही एक भी विधायक ने खुशी जाहिर नहीं की थी, यहां तक कि एक ने भी तालियां नहीं बजाई थीं। लेकिन, मुख्यमंत्री तो प्रकाशचंद्र सेठी ही बने थे। मध्य प्रदेश के 8वें मुख्यमंत्री (1972-75) के रूप में कार्य किया। प्रकाशचंद्र सेठी वह 29 जनवरी 1972 से 22 दिसंबर 1975 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे।
उज्जैन में खुला किस्मत का ताला
उज्जैन में नगर पालिका अध्यक्ष से अपना राजनीतिक जीवन शुरू करने वाले प्रकाश चंद्र सेठी की किस्मत के दरवाजे धीरे-धीरे खुलने लगे थे। राज्यसभा सांसद त्रयंबक दामोदर पुस्तके का निधन हो गया था। तब उपचुनाव के लिए उम्मीदवार की तलाश शुरू हुई। विंध्य क्षेत्र के कद्दावर नेता अवधेश प्रताप सिंह का दौर था। किसी को राज्यसभा भेजना था। उस दौर में कांग्रेस एक नेता को दो बार राज्यसभा नहीं भेजती थी। इसलिए अवधेश प्रताप सिंह का नाम काट दिया गया और सेठीजी के नाम पर मोहर लग गई। सेठी जी दिल्ली क्या गए, नेहरू सरकार में उपमंत्री भी बने। पीसी सेठी बड़े नेताओं के करीब होते चले गए। चाहे शास्त्री हो या इंदिराजी, सेठीजी हर पीएम के हमेशा खास रहे।
मालवा निमाड़ की 48 सीटें जीत विजयवर्गीय का था दावा
दरअसल, इस क्षेत्र के लोग उम्मीद कर रहे थे कि दिग्गज और तेजतर्रार नेता कैलाश विजयवर्गीय मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने सबको चौंकाते हुए मोहन यादव को चुना। मालवा निमाड़ की 66 में से 48 सीटें बीजेपी को मिलने के साथ ही कैलाश विजयवर्गीय का दावा मुख्यमंत्री पद के लिए और मजबूत माना जा रहा था। हालांकि, यह भी एक संयोग है कि प्रदेश में अब तक चार उप मुख्यमंत्री बनाए गए और वे चारों ही मालवा निमाड़ से चुने गए थे। मालवा निमाड़ को साधने का काम वर्षों से किया जाता रहा है।
इस बार मालवा निमाड़ से 9 महिला भी विधायक
एमपी के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की आंधी देखने को मिली, तो वहीं मालवा निमाड़ में एक बार फिर बीजेपी अपना दबदबा कायम करने में कामयाब रही। मुख्यमंत्री चयन के बाद अब जब मध्य प्रदेश में मंत्रिमंडल की रेस शुरू हो गई है तो महिला विधायकों को भी उम्मीदें बढ़ी हैं। मालवा निमाड़ की 66 सीटों में से बीजेपी की 9 महिला विधायक चुनकर आई हैं। इनमें सात महिला विधायक ऐसी भी हैं, जो अनुभव के आधार पर मंत्री पद के लिए ताल ठोक रही हैं।