नील तिवारी, JABALPUR. मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री हेल्पलाइन में नंबर-1 आने की होड़ में जबलपुर शहर में फर्जी निराकरण का खेल लंबे समय से चल रहा है। इस खेल में जमींदारों के पास कई चाल हैं। पहले तो शिकायत को इस विभाग से उस विभाग तक भटकाया जाता है। फिर लेवल 1, 2, 3 में ट्रांसफर करते हुए कुछ दिन इंतजार के बाद कभी बता दिया जाता है कि शिकायतकर्ता संतुष्ट है। कभी मौके का फर्जी निरीक्षण कर लिया जाता है। यहां अधिकारियों की जीत इसलिए भी होती है क्योंकि एक बार अगर शिकायत बंद हो गई तो शिकायतकर्ता कम्प्लेंट को वापस नहीं खुलवा सकते। उन्हें फिर से शिकायत दर्ज करवानी पड़ती है और फिर से वही खेल शुरू हो जाता है।
शिकायत का फर्जी निराकरण
सामने आए मामलों में निगम की बनाई सड़क पर खामी निकालने की बजाय और 4 लाख का खर्च बताकर शिकायत का फर्जी निराकरण कर दिया गया। दूसरी ओर निगम की ही अतिक्रमण विरोधी कार्रवाई से बंद हुए आम रास्ते को खुलवाने के लिए सालभर से अधिकारी ऑफिस-ऑफिस खिलवा रहे हैं।
4 हजार का काम, 4 लाख का खर्च
जबलपुर के सभी राजमार्गों से शहर को जोड़ने वाली घमापुर से रद्दी चौकी सड़क को बनवाने का श्रेय लेने जहां बीजेपी और कांग्रेस में होड़ लगी है। वहीं इसी सड़क का निर्माण इतना घटिया है कि ये सालभर में खराब हो गई। ये हम नहीं, निगम के अधिकारी कह रहे हैं क्योंकि मुख्य सड़क पर जलभराव का निराकरण करते हुए बताया गया कि सड़क खराब है और सुधार के लिए 4 लाख रुपए लगेंगे। निराकरण में ये भी दर्शाया गया कि मौके का निरीक्षण हुआ और शिकायतकर्ता से भी संपर्क किया गया पर ये सफेद झूठ था। सड़क बनाते समय जिम्मेदारों को ध्यान नहीं देने से यहां जलभराव है जो 3 से 4 हजार का पाइप डालकर ठीक किया जा सकता है। शिकायत को मांग में परिवर्तित करना आगे होने वाले भ्रष्टाचार का रास्ता खोल रहा है। वहीं शिकायत बंद होने के बाद अधिकारियों के रूटीन राउन्ड के चलते पानी निकासी को निगम की निगम के अधिकारी ही जेसीबी से उस सड़क को खोदकर क्षति पहुंचाते हुए कैमरे में कैद हुए हैं।
अतिक्रमण हटाया और आम रास्ते पर कर गए अतिक्रमण
जबलपुर में सुर्खियों मे रहे सट्टा किंग गजेन्द्र सोनकर के घर पर हुई अतिक्रमण की कार्रवाई के बाद उसके मलबे को आम रास्ते में फेंक दिया। 2 साल से आम रास्ते पर ही अतिक्रमण हो चुका है, लेकिन इस पर कार्रवाई करने में भी सीएम हेल्पलाइन फिसड्डी साबित हुई। अतिक्रमण विभाग ने इसे तहसीलदार के अधिकार क्षेत्र का मामला बताकर ट्रांसफर किया तो तहसीलदार कार्यालय ने स्वास्थ्य विभाग को भेज दिया। जुलाई से नवंबर तक इसी खेल में फंसी शिकायत अब लेवल-3 पर महीनेभर से कार्रवाई का इंतजार कर रही है।
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शिकायतकर्ता की सुरक्षा पर सवाल
शिकायकर्ताओं का विश्वास भी अब इस सीएम हेल्पलाइन से उठ रहा है, क्योंकि इसमें शिकायत करने वाले का नाम सार्वजनिक कर दिया जाता है। कई बार तो एक्शन लेने वाले अधिकारी ही या तो शिकायतकर्ता को मौके पर बुलवाते हैं या उसकी जानकारी शेयर कर देते हैं। इससे शिकायतकर्ता की सुरक्षा पर सवाल खड़ा हो जाता है।