बहू को प्राइवेसी के लिए अलग कमरे का हक, इंदौर कोर्ट का फैसला, परिवार में जेठ समेत 9 लोग और कमरे सिर्फ तीन

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BP Shrivastava
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बहू को प्राइवेसी के लिए अलग कमरे का हक, इंदौर कोर्ट का फैसला, परिवार में जेठ समेत 9 लोग और कमरे सिर्फ तीन

INDORE. इंदौर फैमिली कोर्ट ने तीन तलाक के एक मामले में मुस्लिम बहू के हक में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने फैसले में कहा कि घर में परिवार के साथ रहने के दौरान प्राइवेसी मिलना भी बहू का हक है। यदि वह संयुक्त परिवार में अपने लिए अलग कमरे की मांग करती है तो यह गलत नहीं है। साथ ही कमरा नहीं देना और तलाक देना, उसके पति का फैसला गलत है।

आदेश का 2 महीने में करना होगा पालन

इंदौर फैमिली कोर्ट ने 20 दिसंबर को यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने तीन तलाक को नाजायज ठहराते हुए पत्नी को साथ रखने के आदेश दिए हैं। साथ ही तलाक की मांग करने वाले पति को दो महीने में इस आदेश का पालन करना होगा।

परिवार में अलग कमरा मांगा तो मायके छोड़ा, तीन तलाक भी दिया

एडवोकेट प्रमोद जोशी ने बताया, इंदौर के मोती तबेला में रहने वाली महिला का निकाह 2011 में उज्जैन में हुआ था। 2012 में उन्होंने बेटी को जन्म दिया। परिवार संयुक्त था। इसमें जेठ-जेठानी भी शामिल थे। सभी साथ रहते थे। घर छोटा होने के चलते महिला को पति के साथ खुले ड्रॉइंग रूम में रहना पड़ रहा था। इस दौरान उसने घर में अलग कमरे की मांग की तो विवाद होने लगे। मई 2014 में पति ने उसे मायके छोड़ दिया। बाद में तीन तलाक भी दे दिया।

नवंबर 2018 में पीड़ित महिला ने इंदौर की फैमिली कोर्ट में केस लगाया। 5 साल बाद कोर्ट ने फैसले में कहा, पति ने सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन (2017) के अनुसार तीन तलाक लेने की प्रक्रिया पूरी नहीं की है। इसलिए यह अवैध है। उसे पत्नी के साथ रहना होगा। सुनवाई के दौरान औरंगजेब के समय के महिला हकों का भी उल्लेख किया गया है।

तीन कमरे में रहते थे 9 लोग

पत्नी ने पहला केस भरण-पोषण का लगाया था। 2016 में इस संबंध में महिला ने कोर्ट को जानकारी दी थी कि मेरे ससुराल में नौ लोग और मेरे दो बच्चे सिर्फ तीन कमरे और एक किचन में रहते हैं। बाहर वाले बैठक कक्ष (ड्रॉइंग रूम) को मुझे रहने के लिए दिया गया है, वहां गेट भी नहीं है। इससे मेरी प्राइवेसी खत्म हो गई थी। परिवार में पति के दो भाई, एक बहन, सास सहित कुल नौ लोग साथ में रह रहे थे। संयुक्त परिवार में निजता नहीं होने से भी विवाद का कारण बना।

सपोर्ट में फतवा ए आलमगिरी और इस्लामिक लॉ का उल्लेख

एडवोकेट ने बताया, महिला अपने पति के साथ ही रहना चाहती है। संयुक्त परिवार होने से अपने लिए सिर्फ अलग कमरा भी प्राइवेसी के लिहाज से चाहती थी। इस पर पति का कहना था कि मैं तुम्हें तलाक दे चुका हूं। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है, फतवा ए आलमगिरी में भी महिला को निजता का अधिकार है। वो सुरक्षा के लिहाज से भी प्राइवेसी की मांग कर सकती है। कोर्ट ने इस्लामिक लॉ के रिफरेंस भी अपने फैसले में उल्लेखित किए हैं।

... इसलिए नहीं होगा तीन तलाक मान्य

सुनवाई में कर्नाटक का एक फैसले का हवाला भी दिया गया है। इसमें कहा गया है कि कोई मुस्लिम महिला दाम्पत्य संबंधों की पुनर्स्थापना की याचिका प्रस्तुत कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में तीन तलाक पर जो निर्णय दिया था उसका पालन पति ने नहीं किया है, ऐसी स्थिति में तीन तलाक मान्य नहीं है।

फैसले में इस किताब का भी जिक्र

'एक-नफ्का' नाम की किताब का जिक्र फैसले में किया गया है। साथ ही औरंगजेब के फैसलों से जुड़े संकलन फतवा-ए-आलमगीर का भी जिक्र किया है, जिसमें पत्नी के हकों की डिटेलिंग की गई है। एक रिपोर्ट के अनुसार मुस्लिम विवाह एग्रीमेंट के संबंध में भरण पोषण और भोजन से जुड़े मामलों को लेकर इसका इस्तेमाल किया जाता है। यह एक फारसी वाक्य है, जिसका कई किताबों में भी जिक्र आता है। 

कोर्ट ने 78 पेज में दिया फैसला

78 पेज के आदेश समेत कोर्ट ने 20 दिसंबर को पत्नी को यह राहत दी है। पति को दो माह के भीतर पत्नी को घर ले जाने के आदेश दिए हैं। महिला 5 साल से कानूनी लड़ाई लड़ रही थी। प्रथम प्रधान न्यायाधीश संगीता मदान ने आदेश में मुस्लिम लॉ, शरीयत के अलावा सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का विस्तृत उल्लेख किया है।

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