छत्तीसगढ़ में आदिवासी मुख्‍यमंत्री की मांग 20 साल बाद पूरी, रमन सिंह के 3 बार के कार्यकाल के बाद बीजेपी ने अब दिया महत्व

author-image
Vikram Jain
एडिट
New Update
छत्तीसगढ़ में आदिवासी मुख्‍यमंत्री की मांग 20 साल बाद पूरी, रमन सिंह के 3 बार के कार्यकाल के बाद बीजेपी ने अब दिया महत्व

गंगेश द्विवेदी, RAIPUR. छत्तीसगढ़ में आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग 20 साल बाद पूरी हो गई है। विष्‍णु देव साय बीजेपी से सूबे के पहले आदिवासी मुख्‍यमंत्री बन गए हैं। कांग्रेस ने प्रदेश के प्रथम मुख्‍यमंत्री अजीत जोगी को आदिवासी मुख्‍यमंत्री के रूप में पेश किया था, लेकिन उनकी जाति का मामला विवादों में पड़ गया। 2003 के बाद जब डॉ. रमन सिंह का राज आया तो प्रदेश अध्‍यक्ष के तौर पर तो आदिवासी चेहरे को स्‍थान मिला लेकिन बीजेपी के तीन बार के कार्यकाल में इस दौरान जिस आदिवासी नेता ने आदिवासी मुख्‍यमंत्री की मांग उठाई, उसे पार्टी विरोधी गति‍विधियों में लिप्‍त मानकर बाहर का रास्‍ता दिखा दिया गया, या फिर इस कदर उपेक्षा की गई कि नेता स्‍वयं पार्टी छोड़कर चले गए।

सामान्य और OBC मुख्यमंत्री रहे

छत्तीसगढ़ की 90 विधानसभा सीटों में से 29 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित रही हैं, वहीं प्रदेश की 50 सीटें ऐसी हैं जहां आदिवासी आबादी 50% के करीब है लेकिन पहले 15 साल तक सामान्य वर्ग से और पिछड़ा वर्ग से मुख्यमंत्री रहे। राज्‍य बनते ही अजीत जोगी के रूप में कांग्रेस ने पहला मुख्‍यमंत्री अजीत जोगी को आदिवासी समाज के मुख्‍यमंत्री के तौर पर पेश किया था लेकिन बाद में उनकी जाति को लेकर विवाद शुरू हो गया। कांग्रेस के नेताओं ने ही उनके आदिवासी होने पर सवाल खड़ा कर दिया गया था। हालांकि इसके बाद लगने लगा था कि प्रदेश में आदिवासी समाज के लोग ही सीएम बनेंगे। जोगी शासनकाल में नेता प्रतिपक्ष के रूप में नंदकुमार साय थे।

ये खबर भी पढ़ें... 

विष्‍णुदेव साय चुने गए विधायक दल के नेता, जानें कैसे लगी नाम पर मुहर, 2024 में सभी 11 सीटों पर जीत का लक्ष्य

नंदकुमार साय ने उपेक्षा का आरोप लगाकर छोड़ी थी बीजेपी

2003 में जब बीजेपी की सरकार बनी तो उस समय आदिवासी नेताओं में सबसे चर्चित नाम नंदकुमार साय का था। लेकिन चुनाव प्रदेश अध्‍यक्ष डॉ. रमन सिंह के नेतृत्‍व में लड़ा गया था इसलिए उन्‍हें सीएम बनाया गया और साय को प्रदेश अध्‍यक्ष बना दिया गया। अगले ही साल 2004 में सरगुजा से लोकसभा सांसद बने। वे 1989 में पहली बार 1996 में दूसरी बार व 2004 में तीसरी बार लोकसभा सांसद निर्वाचित हुए थे। 2009 में वे राज्यसभा सांसद निर्वाचित हुए। मोदी सरकार ने उन्हें 2017 में अनुसूचित जनजाति आयोग का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया। इस दौरान नंदकुमार साय बीच-बीच में आदिवासी मुख्‍यमंत्री की मांग उठाते रहे, लेकिन इस बात को महत्व नहीं दिया गया। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले लगातार उपेक्षा का आरोप लगाते हुए नंदकुमार साय बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे।

सोहन पोटाई को दिखाया गया था बाहर का रास्‍ता

पूर्व बीजेपी नेता सोहन पोटाई का निधन हो चुका है। पोटाई बीजेपी के सीनियर लीडर थे। वो कांकेर लोकसभा सीट से 1998, 1999, 2004 और 2009 में चार बार सांसद रहे हैं। 2014 में टिकट नहीं मिला था। उसके बाद वे आदिवासी समाज को एकजुट करने में लग गए थे। 2016 में बीजेपी ने उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के कारण निलंबित कर दिया था। इस दौरान पत्‍थलगढ़ी कांड हुआ जिसका परोक्ष रूप से जिम्‍मेदार पोटाई और समर्थकों को माना गया। इसी दौरान सोहन पोटाई ने आदिवासी मुख्‍यमंत्री की मांग भी प्रमुखता से रखी थी। पोटाई के पार्टी छोड़ने के बाद अजीत जोगी ने उन्‍हे अपनी पार्टी में शामिल करने की कोशिश की थी लेकिन वे उनके साथ नहीं गए बल्कि सर्व आदिवासी समाज के साथ रहे।

Raipur News रायपुर न्यूज Tribal Chief Minister in Chhattisgarh Vishnu Dev Sai becomes CM tribal leader Nandkumar Sai former CM Ajit Jogi छत्तीसगढ़ में आदिवासी मुख्यमंत्री विष्‍णु देव साय बने सीएम आदिवासी नेता नंदकुमार साय पूर्व सीएम अजीत जोगी