JAIPUR. राजस्थान के विधानसभा चुनाव में पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों में बड़ा चुनावी मुद्दा बना पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना का मामला प्रदेश की नई भारतीय जनता पार्टी सरकार ने मध्य प्रदेश के साथ समझौता कर सुलझा तो दिया है और ये दावा भी किया जा रहा है कि इसे सिर्फ राजस्थान ही नहीं बल्कि मध्य प्रदेश को भी फायदा होगा। बीजेपी लोकसभा चुनाव में इसे एक बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश करने की तैयारी भी कर रही है, लेकिन अब इस समझौते पर सवाल भी उठ रहे हैं। जानकारों की माने तो इस समझौते से मध्य प्रदेश तो फायदे में रहा है लेकिन राजस्थान को कोई बड़ा फायदा नहीं हुआ है बल्कि जो पानी पहले मिलने वाला था उसमें भी कमी आई है।
परियोजना को केंद्रीय जल बोर्ड ने थी सैद्धांतिक सहमति
राजस्थान के पूर्वी हिस्से के 13 जिलों में पीने के पानी और सिंचाई के लिए राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली सरकार ने पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना की परिकल्पना की थी। इस परियोजना को केंद्रीय जल बोर्ड ने सैद्धांतिक सहमति भी दे दी थी, लेकिन राजस्थान में हर 5 साल में सत्ता परिवर्तन की परंपरा के चलते 2018 में कांग्रेस सत्ता में आ गई और यह योजना राजनीति का शिकार हो गई। पूरे 5 साल तक इस परियोजना पर जमकर राजनीति होती रही और परियोजना का काम आगे नहीं बढ़ पाया। कांग्रेस इस परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा देने की मांग को लेकर चुनाव मैदान में उतरी और पूर्वी राजस्थान में इसे एक मुद्दे के रूप में पेश भी किया हालांकि पूर्वी राजस्थान में जातिगत समीकरण और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के साथ कांग्रेस में हुए व्यवहार का मुद्दा ज्यादा हावी रहे और पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना का मुद्दा कांग्रेस के लिए बहुत फायदेमंद साबित नहीं रहा।
बीजेपी ने संकल्प पत्र में किया था वादा
पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने अपने संकल्प पत्र में जनता से वादा किया था और इस वादे को पूरा करते हुए सत्ता में आने के 2 महीने के अंदर ही केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने मध्य प्रदेश और राजस्थान के मुख्यमंत्री के बीच रविवार को एक बड़ा समझौता करवा दिया। पहले यह परियोजना सिर्फ पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना के नाम से जानी जा रही थी, लेकिन अब इसे केंद्र सरकार की नदी जोड़ो परियोजना का हिस्सा बनते हुए पार्वती - काली सिंध - चंबल नदियों की इंटरलॉकिंग से जोड़ दिया गया है और अब नई परियोजना पीकेसी - ईआरसीपी लिंक परियोजना हो गई है।
केंद्र का दावा, दोनो राज्यों को होगा फायदा
संशोधित परियोजना के बाद केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने दावा किया कि इस समझौता के बाद मध्य प्रदेश और राजस्थान दोनों को फायदा होगा। सोमवार सुबह जोधपुर पहुंचे शेखावत ने मीडिया से बातचीत में कहा कि हमने पूरे देशभर के हाइड्रोलॉजी के विशेषज्ञ और मध्य प्रदेश व राजस्थान के इंजीनियर्स को साथ बैठाकर पार्वती-कालीसिंध-चंबल परियोजना तथा ईआरसीपी को इंटीग्रेटेड कर एक नदी जोड़ने की परियोजना, जिससे दोनों राज्यों को लाभ हो सके, पर विचार किया। उन्होंने कहा कि जैसा मैंने चुनाव से पहले भी कहा था, सुप्रीम कोर्ट ने जो इंटरलिंकेज ऑफ रिवर के लिए कमेटी बनाई है। उस कमेटी ने इसको अप्रूव कर दिया था और इंटरलिकेंज ऑफ रिवर्स के रूप में मान्यता प्रदान की थी। कमेटी ने इसको नेशनल पर्सपेक्टिव प्लान के तहत प्राथमिकता के साथ करेंगे, उस रूप में मान्यता प्रदान की थी। शेखावत ने कहा कि उस समय भी हमने अधिकारियों के स्तर पर चर्चा की थी, लेकिन दुर्भाग्य से, क्योंकि राजनीतिक रूप से अशोक गहलोत सरकार इसको नहीं करना चाहती थी, अधिकारियों के स्तर पर सहमति बन जाने के बावजूद भी ये नहीं हो पा रही था।
राजस्थान के लिए बताया फायदा
- पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों झालावाड़, बारां, कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर, करौली, धौलपुर, भरतपुर, दौसा, अलवर, जयपुर, अजमेर और टोंक में पेयजल उपलब्ध होगा।
- 2,80,000 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता सुनिश्चित होगी।
- लगभग 25 लाख किसान परिवारों को सिंचाई जल और राज्य की लगभग 40 प्रतिशत आबादी को पेयजल उपलब्ध हो सकेगा।
- ईआरसीपी में सम्मिलित रामगढ़ बैराज, महलपुर बैराज, नवनैरा बैराज, मेज बैराज, राठौड़ बैराज, डूंगरी बांध, रामगढ़ बैराज से डूंगरी बांध तक फीडर तंत्र, ईसरदा बांध का क्षमता वर्धन और पूर्वनिर्मित 26 बांधों का पुनरूद्धार किया जाएगा।
मध्य प्रदेश को यह होगा फायदा
यह परियोजना शिवपुरी, ग्वालियर, भिंड, मुरैना, इंदौर, देवास सहित कई जिलों में पेयजल के साथ औद्योगिक जरूरतों को पूरा करेगी। इसके तहत 7 बांध बनाए जाएंगे।
यह उठ रहे हैं सवाल
संशोधित परियोजना के समझौते को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं। जानकारों का कहना है कि दोनों राज्यों के बीच समझौता तो हो गया है और दोनों राज्यों को फायदे की बात भी कहीं जा रही है लेकिन राजस्थान के साथ न्याय नहीं हुआ है। इसमें मध्य प्रदेश को ज्यादा फायदा हुआ है। दरअसल 2005 में मध्य प्रदेश और राजस्थान के बीच पार्वती काली सिंध और चंबल नदी के बंटवारे को लेकर हुए समझौते के बाद मध्य प्रदेश ने पार्वती को सहायक नदी नेवाज पर मोहनपुरा बांध और कालीसिंध नदी पर कुंडालिया बांध बना लिए और वहां 2.65 लाख हेक्टेयर सिंचित क्षेत्र भी विकसित हो गया। लेकिन जब राजस्थान ईआरसीपी के तहत बांध बनाने लगा तो मध्य प्रदेश ने एनओसी नहीं लेने का मुद्दा उठा दिया और सुप्रीम कोर्ट चला गया। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने केंद्र को लिखे पत्र में भी इसका जिक्र किया था और मध्य प्रदेश की आपत्ति को गलत बताया था। अब नए समझौते के बाद अब वहां सात बांध और बनेंगे और इसके 13 जिले भी इसमें शामिल होंगे।
13 जिलों की जनता को मिलेगा पीने का पानी
इस परियोजना की समझ रखने वाले किसान महापंचायत के अध्यक्ष रामपाल जाट का दावा है कि ईआरसीपी के लिए वर्ष 2017 की डीपीआर के अनुसार राजस्थान को प्राप्त होने वाले पानी की मात्रा 3510 मिलियन घन मीटर थी। जबकि पार्वती, काली सिंध, चंबल लिंक परियोजना के साथ इस परियोजना को सम्मिलित करने पर राजस्थान को प्राप्त होने वाले पानी की मात्रा वास्तविक रूप से 1775 मिलियन घन मीटर रह जाएगी। जिसमें पीने के पानी की योजनाओं से व्यर्थ पानी के संग्रहण के रूप में 689 मिलियन घन मीटर पानी जोड़ने पर भी पानी की मात्रा 2464 मिलियन घन मीटर ही रहेगी। ऐसे में राजस्थान को प्राप्त होने वाले पानी से 13 जिलों की जनता को पीने का पानी भी उपलब्ध नहीं हो सकेगा, और 2,80,000 से अधिक भूमि के सिंचाई भी नही हो पाएगी। उन्होंने कहा कि इस परियोजना की डीपीआर तो सभी तथ्यों पर विचार करने के उपरांत तैयार की गई थी, लेकिन जलशक्ति मंत्राललय ने इसे अब बदल दिया है।