/sootr/media/post_banners/1ae9ffa3cf66619920697d410d013f17027a8479e1b7e7f549872e526befe41c.jpg)
संजय गुप्ता, INDORE. लोकसभा चुनाव के पहले इंदौर सांसद शंकर लालवानी को कोर्ट से बड़ी राहत मिल गई है। मई 2019 में उनके खिलाफ दर्ज धार्मिक संस्थाओं के दुरुपयोग के केस में उन्हें कोर्ट ने बरी कर दिया है। न्यायाधीश सुरेश यादव की कोर्ट ने बीजेपी सांसद शंकर लालवानी को धार्मिक संस्थाओं का दुरुपयोग अधिनियम 1978 और धारा 188 के आरोप से बरी कर दिया।
अभी विस्तृत आर्डर आना बाकी है
लालवानी के अधिवक्ता अमित सिंह सिसौदिया ने आदेश की पुष्टि करते हुए कहा कि सांसद के पक्ष में आदेश हो गए हैं। हालांकि, लिखित में विस्तृत आदेश आना बाकी है। हमारे द्वारा यही पक्ष रखे गए थे कि यह झूठी एफआईआर है और राजनीति से प्रेरित है। थाना खजराना में बीजेपी प्रत्याशी लालवानी के खिलाफ 8 मई 2019 में धारा 188 के अलावा धार्मिक संस्था (दुरुपयोग का निवारण) अधिनियम की धारा 7 व 3A के तहत उक्त एफआईआर दर्ज की गई थी। खजराना में मूर्ति पर बीजेपी के झंडे से बना चोला चढ़ाने के मामले में हुई शिकायत पर जिला निर्वाचन कार्यालय ने प्राथमिकी दर्ज कराने का आदेश दिया था।
आयोग ने माना था आचार संहिता का उल्लंघन
खजराना गणेश मंदिर में बीजेपी झंडे का चोला चढ़ाने के मामले में चुनाव आयोग ने कड़ा रुख दिखाया था। चुनाव आयोग ने निर्वाचन की आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन माना। इसके बाद जिला निर्वाचन अधिकारी की ओर से जारी नोटिस पर लालवानी ने जवाब दिया कि मंदिर में उन्होंने केवल पूजा की, चोला नहीं चढ़ाया। जिला निर्वाचन अधिकारी व तत्कालीन कलेक्टर लोकेश कुमार जाटव और अपर कलेक्टर भव्या मित्तल जवाब से संतुष्ट नहीं हुए। इसके बाद एसडीएम राकेश शर्मा को एफआईआर कराने के निर्देश दिए गए।
यह है धार्मिक संस्था का दुरुपयोग प्रतिषेध अधिनियम
धार्मिक संस्था का दुरुपयोग प्रतिषेध अधिनियम 1988 में प्रावधान है कि धार्मिक स्थल या संस्थाओं का राजनीतिक कार्य के लिए उपयोग पूर्णतः प्रतिबंधित है। धार्मिक परिसर में समारोह आयोजित कर धर्म, जाति और समुदाय के बीच शत्रुता, आपसी घृणा या वैमनस्य की भावना भड़काने पर संस्था के प्रबंधक या अन्य कर्मचारी द्वारा किसी आयोजन के संबंध में संबंधित थाना प्रभारी को जानकारी देना जरूरी है। सूचना न देने वाले के खिलाफ भी अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया जा सकता है। इसमें न्यायालय द्वारा आरोपित व्यक्ति को पांच साल की जेल और 10 हजार रुपए और भारतीय दंड विधान की धारा-176 के तहत एक माह तक का कारावास या 500 रुपए जुर्माना अथवा दोनों सजा हो सकती हैं।