कमलनाथ ने हार के बाद 3 दिसंबर को ही दे दिया था इस्तीफा, राहुल गांधी ने कहा था अभी पद संभाले रहिए, हम फैसला ले रहे हैं

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Rahul Garhwal
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कमलनाथ ने हार के बाद 3 दिसंबर को ही दे दिया था इस्तीफा, राहुल गांधी ने कहा था अभी पद संभाले रहिए, हम फैसला ले रहे हैं

संजय गुप्ता, INDORE. मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद से कमलनाथ की विदाई हो गई है। वे जून 2018 में इस पद पर आए थे और उनके नेतृत्व में ही दिसंबर 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी थी, लेकिन साल 2023 के चुनाव में कांग्रेस की करारी हार हुई। सूत्रों के मुताबिक कमलनाथ के लिए ये फैसला कतई चौंकाने वाला नहीं है। उन्होंने 3 दिसंबर को ही कांग्रेस की हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ ही राहुल गांधी से बात की और उन्हें अपना इस्तीफा भेज दिया था। इस पर राहुल गांधी ने उनसे कहा था कि अभी आप पद संभाले रहिए, हम इस पर कुछ दिन में फैसला लेंगे।

7 दिसंबर को आई थी इस्तीफा देने की खबर

7 दिसंबर को खबरें आई थीं कि कमलनाथ ने प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। ये खबर 6 दिसंबर को दिल्ली में हाईकमान द्वारा हार को लेकर की गई समीक्षा बैठक के अगले दिन सामने आई थी। ये बैठक राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे के आवास पर हुई थी, लेकिन इसके 5 मिनट बाद पार्टी ने इस बात को लेकर खंडन जारी कर दिया था और कहा था कि कमलनाथ का इस्तीफा नहीं हुआ है। कमलनाथ के मीडिया सलाहकार पीयूष बबेले ने ट्वीट भी किया था कि ये खबरें पूरी तरह निराधार हैं। फिर खबरें चलीं कि कमलनाथ को लोकसभा चुनाव तक के लिए पद पर रहने के लिए कहा गया है।

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Screenshot 2023-12-16 211104.pngकमलनाथ ने ट्वीट करके दी बधाई

कांग्रेस ने पदों पर जातिगत गणित, किसान मामले और मालवा में सबसे ज्यादा सीट देखते हुए नियुक्तियां दी है। जीतू पटवारी भले ही राउ से चुनाव हार गए, लेकिन कांग्रेस ने उन पर भरोसा जताते हुए प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। वे किसान नेता भी हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने जनाक्रोश यात्रा में खासी भूमिका निभाई थी। वहीं आदिवासी नेता उमंग सिंघार बीजेपी लहर में भी लगातार जीत के रिकॉर्ड बना रहे हैं। उन्हें कांग्रेस ने नेता प्रतिपक्ष बनाया है। वे धार जिले की गंधवानी सीट से फिर जीते हैं। धार और उसके आसपास का क्षेत्र आदिवासी बेल्ट है। जहां कांग्रेस लगातार अच्छा कर रही है। इसे देखते हुए सिंघार को ये जिम्मेदारी दी गई है, ताकि आदिवासी मतदाताओं को कांग्रेस से जोड़कर रखा जा सके।

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