संजय गुप्ता, INDORE. मप्र हाईकोर्ट डबल बैंच जबलुपर ने पीएससी की भर्ती परीक्षा में दखल देने से इंकार कर दिया है। हाईकोर्ट में लगी रिट पिटीशन 9026 को लेकर हुई सुनवाई के बाद बैंच ने आदेश रिजर्व पर रख लिया था, जिसे अब जारी कर दिया गया है। इसमें मुख्य तौर पर कहा गया है कि अभी तक नियुक्तियां नहीं होने को ध्यान में रखते हुए, यह न्यायालय हस्तक्षेप से इनकार करता है और प्रवेश स्तर पर इस याचिका को खारिज कर देता है, साथ ही याचिकाकर्ताओं को अदालत में फिर से आने की छूट देता है, यदि कोई व्यक्ति, जो या तो अयोग्य है या योग्यता रैंकिंग में कम है, को पदों पर नियुक्त किया जाता है।
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मुख्य रूप से यह याचिका 2019 की परीक्षा को लेकर थी
मुख्य रूप से यह याचिका राज्य सेवा परीक्षा 2019 को लेकर थी। इसे लेकर आपत्ति थी कि 87-13 फीसदी का फार्मूला साल प्री में लगाया गया है जो गलत है इसे मैंस से लगाया जाना था। राज्य सेवा परीक्षा 2020 में यही किया गया था। इसके चलते मप्र लोक सेवा आयोग द्वारा यह गलत तरह से रिजल्ट बनाया गया है और गलत प्रक्रिया की जा रही है।
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इंटरव्यू भी शुरू हो चुके हैं
राज्य सेवा परीक्षा 2019 लंबे समय से अटकी हुई है, इसके विविध फैसलों को लेकर याचिकाएं लगी है। इन सभी के बाद 571 पदों के लिए 1983 सफल घोषित उम्मीदवारों के इंटरव्यू 9 अगस्त से शुरू हुए हैं जो 19 अक्टूबर तक चलेंगे। हालांकि, ओबीसी आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक केस चल रहे हैं और सभी नियुक्तियों को कोर्ट के आदेश के अधीन रखी गई है। वहीं ओबीसी आरक्षण का फैसला नहीं होने तक केवल 87 फीसदी पदों पर ही भर्ती होगी, 13 फीसदी पद अनारक्षित और ओबीसी दोनों कैटेगरी के उम्मीदवारों के प्रोवीजनल सूची में चयनति करते हुए आगे बढ़ाई जा रही है। यदि ओबीसी आरक्षण 27 फीसदी मंजूर होता है तो 13 फीसदी पद ओबीसी कोटे में जाएंगे नहीं तो यह फिर अनारक्षित कोटे में चले जाएंगे।
सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी, संतुष्ट नहीं याचिकाकर्ता
हाईकोर्ट जबलपुर डबल बैंच ने इस मामले में याचिका को मुख्य रूप से यह तर्क देकर खारिज किया कि अभी भर्ती प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है। केवल चयन सूची आने से नियुक्ति का अधिकार नहीं मिल जाता है। भर्ती प्रक्रिया के समापन के बाद नियुक्ति आदेश जारी करना, नियुक्त व्यक्ति को निहित अधिकार देता है। इस पर याचिकाकर्ता के वकील हिमांशु मिश्रा कहते हैं कि नियुक्ति यदि हो गई तो बाकी पीड़ितें के हक मारे जाएंगे, क्योंकि 87 फीसदी कोटे में कम नंबर वाला उम्मीदवार इसलिए बड़ा पद नहीं ले सकता कि वह उस सूची में निचले पायदान पर है, जबकि 13 फीसदी वाले में कम नंबर पर भी वह डिप्टी कलेक्टर जैसा पद ले सकता है क्योंकि उसके लिए उस सूची में पद आरक्षित हो गए हैं। इसलिए इस मामले में हम अभी दखल के लिए प्रार्थना कर रहे थे जो मान्य नहीं हुई है। नियुक्ति प्रक्रिया होने के बाद फिर हाईकोर्ट जाने का रास्ता खुला है लेकिन तब तक देर हो जाएगी पीड़ितें को उनका वैधानिक हक नहीं मिलेगा। इसलिए इसमें याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं। वह संतुष्ट नहीं है। साल 2020 की तरह इसमें भी आयोग को मैंस से ही 87-13 फीसदी फार्मूला लगाना था, जो नहीं लगाया गया है, इसके चलते परेशानी आ रही है। यह मैंस से लगाते तो सभी उम्मीदवारों के सामने मेरिट आधार पर 87-13 में जाने का विधिक और न्यायसंगत तरीका होता।