सीहोर जिले के खाकर देव और उसके आस-पास के गांव माना, झाड़क्या, चोकी, और छतरपुरा ने गायों की सुरक्षा और वन संरक्षण की दिशा में अनोखी पहल की है। यहां के लोगों ने सिर्फ सरकारी नीतियों का विरोध किया बल्कि जंगलों और गोवंश की रक्षा में भी जुटे रहे।
इस क्षेत्र के 500 एकड़ भूमि को गायों के चारागाह ( Grazing Land ) के रूप में संरक्षित ( reserve ) करने का संकल्प लेकर यहां के ग्रामीणों ने 2001 में कांग्रेस सरकार के फैसले का विरोध किया था। इस विरोध के बाद, सरकार ने इस क्षेत्र को चारनोई भूमि के रूप में संरक्षित करने का निर्णय लिया। दरअसल तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने साल 2001 में जब इस वन भूमि के पट्टे देने का निर्णय किया था तो स्थानीय लोगों ने इस चीज का विरोध करा था।
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वन संरक्षण और देव आस्था
इस इलाके में लोग मानते हैं कि जंगल के पेड़-पौधों के मालिक उनके देवता हैं और बिना अनुमति के पेड़ काटना अपशगुन माना जाता है। यहां के समाज का मानना है कि बिना देव अनुमति के जंगल की लकड़ी काटने से बुरी घटनाएं हो सकती हैं, जैसे कि बीमारी या मृत्यु। इस क्षेत्र में देव आस्था गहरी जमी हुई है और जंगल का हर पेड़-पौधा गोवंश और अन्य जीव-जंतुओं के लिए संरक्षित है।
गोवंश के प्रति समर्पण और पेड़ों की सुरक्षा
खाकर देव और आसपास के गांवों के लोग देवधर्मी समाज ( Devdharma Community ) का हिस्सा मानते हैं और हर साल देवस्थान पर मेला आयोजित करते हैं। यह क्षेत्र 500 एकड़ भूमि में फैला हुआ है और यहां करीब 800 से 1000 गायें चरने के लिए आती हैं।
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सरकार से उम्मीद
समाजसेवी एमएस मेवाड़ा के अनुसार, स्थानीय लोगों का यह समर्पण एक मिसाल है। हालांकि, गर्मियों में पानी की कमी इस क्षेत्र की एक प्रमुख समस्या है, जिसका हल निकालने में सरकार को सहयोग देना चाहिए।
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