87%-13% फार्मूला, कर्मचारियों की पदोन्नति के बाद अब दिव्यांगों के प्रमोशन में उलझी सरकार

मध्य प्रदेश सरकार आरक्षण के कई मुद्दों में उलझी है। पहले ओबीसी आरक्षण का 87%-13% फार्मूला विवादित था। यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है। अब पदोन्नति में आरक्षण और दिव्यांगों के आरक्षण की मांग ने चुनौती खड़ी की है।

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Sanjay Sharma
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BHOPAL.मध्यप्रदेश सरकार हर ओर से आरक्षण के चक्रव्यूह में उलझी नजर आ रही है। पहले विभागीय भर्तियों में ओबीसी आरक्षण का 87-13% फार्मूला सरकार के लिए समस्या बन गया था। जिसे सुलझाने के लिए सरकार को अब सुप्रीम कोर्ट तक दौड़भाग करनी पड़ रही है। 

पहले विभागीय भर्तियों में ओबीसी आरक्षण का विवाद सुलझा नहीं था। अब पदोन्नति में आरक्षण का मुद्दा सामने आ गया है। दिव्यांगों की पदोन्नति में आरक्षण की मांग ने नई उलझन खड़ी कर दी है। सरकार एक मसला सुलझा नहीं पाती कि दूसरा सामने आ जाता है।

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अब दिव्यांग मांग रहे प्रमोशन में आरक्षण

प्रदेश में पहले ही प्रमोशन में आरक्षण पर कर्मचारी संगठनों के विरोध के चलते मामला कोर्ट की सुनवाई में फंसकर रह गया है। पदोन्नति में आरक्षण के लिए बनाई नई नीति हाईकोर्ट के बाद अब सुप्रीम कोर्ट में सरकार की मुसीबत बनी हुई है। 

इस बीच अब दिव्यांग कर्मचारियों ने भी पदोन्नति में आरक्षण का राग आलापना शुरू कर दिया है। दिव्यांग कर्मचारी कल्याण संघ का पत्र आयुक्त डॉ. अजय खेमरिया ने सामान्य प्रशासन विभाग को भेजा। इसमें उनकी अनुशंसा भी शामिल है। दिव्यांग कर्मचारियों ने अपनी मांग के समर्थन में कोर्ट के आदेश और संवैधानिक प्रावधान भी आयुक्त को सौंपे हैं। 

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सरकार के सामने दिव्यांग बने चुनौती

मध्य प्रदेश में दिव्यांगजनों की मांग ने सरकार के सामने एक और चुनौती खड़ी कर दी है। हालांकि, दिव्यांग कर्मचारियों के संगठन जो मांग कर रहा है उसके आधार को कोर्ट के निर्णय और दस्तावेज मजबूत कर रहे हैं। दिव्यांग कर्मचारियों का कहना है प्रदेश में अब तक उनके साथ पक्षपात होता रहा है। 

दिव्यांग अधिनियम 1995 और दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 में स्पष्ट प्रावधान है कि उनके लिए आरक्षित पदों पर अन्य को नियुक्ति से लेकर पदोन्नति तक कोई लाभ नहीं दिया जा सकता लेकिन अब तक सरकार ही इसकी अनदेखी करती रही है। जबकि अन्य राज्यों में दिव्यांगों को पदोन्नति भी उनके लिए तय आरक्षण के आधार पर दी जा रही है। दिव्यांग कर्मचारियों को इन अधिनियमों के बावजूद केवल नियुक्ति तक ही लाभ मिल पाया है।  

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दूसरे राज्यों में मिल रहा आरक्षण 

प्रदेश में दूसरे कर्मचारी संगठन पदोन्नति में आरक्षण की मांग कर रहे हैं। मामला कोर्ट तक पहुंच चुका है तो दिव्यांग कर्मचारियों ने भी अपने हक की मांग तेज कर दी है। उधर छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश सहित देश के कुछ राज्य पहले ही दिव्यांगों को प्रमोशन में आरक्षण दे रहे हैं। कोर्ट के पुराने निर्णयों और संवैधानिक प्रावधानों की प्रतियां सामाजिक न्याय और निशक्तजन संचालनालय को दी गईं। इसे लेकर मांग से अवगत कराया गया है।

आयुक्त डॉ. अजय खेमरिया ने दिव्यांगजनों की मांग को सरकार तक पहुंचाया। दस्तावेजों के साथ पत्र को अनुशंसा सहित भेजा गया है। अब सरकार इस पर निर्णय लेगी। यह मामला कोर्ट तक पहुंचेगा या नहीं, यह समय बताएगा।

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न्यायालयीन आदेशों का दिया हवाला

दिव्यांग कर्मचारियों ने अपनी मांग के लिए न्यायालयीन फैसलों का सहारा लिया। निशक्तजन संचालनालय आयुक्त को सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला दिया गया। मांग पत्र में 2016 का राजीव कुमार गुप्ता मामला भी जोड़ा गया। इसमें न्यायमूर्ति चेलमेश्वर की बेंच का फैसला शामिल है।

निर्णय में कहा गया कि दिव्यांग आरक्षण पदोन्नति पर लागू होगा। सिद्धाराजू विरुद्ध कर्नाटक राज्य मामले में न्यायमूर्ति रोहिंटन एफ. नारीमन ने आरक्षण की वैधता की पुष्टि की। 2021 में न्यायमूर्ति नागेश्वर राव, बीआर गवई और संजीव खन्ना की पीठ ने भी सुनवाई की। इस दौरान दिव्यांग आरक्षण पर बहस की गई। यह आरक्षण राज्य सिविल सेवा से आईएएस कैडर तक लागू किया गया। समूह क के उच्च पदों को दिव्यांगजनों के लिए सुरक्षित करने पर भी बहस हुई।

मध्य प्रदेश में स्थिति... 

  1. एमपी के 48 विभागों में दिव्यांगजनों के लिए आरक्षित पद: 37,328
  2. कुल आरक्षित पदों में से 21,939 पदों पर नियुक्ति नहीं हुई 
  3. कई विभागों में  9,431 पदों पर भर्ती का विज्ञापन तक जारी नहीं हुआ
  4. एमपी में दिव्यांगों की संख्या 15,51,931(2011 की गणना के अनुसार)
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