निगम घोटाले का किंगपिन राठौर, मस्टरकर्मी से शुरू किया काम, डिप्लोमा सर्टिफिकेट से इंजीनियर बना, कई बार घोटालों में उलझा

अभय राठौर के यहां ईओडब्ल्यू के छापे में 19 करोड़ की संपत्ति पाई गई थी। यह कार्रवाई करीब 6 साल पहले हुई थी। साथ ही 15 बैंक में कुल 40 खाते पाए गए थे। मकान, प्लॉट, बंगला, नकदी, जेवर सब मिला था। संपत्ति परिवार और रिश्तेदारों के नाम पर निकली थी। 

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Pratibha ranaa
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संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर नगर निगम ( Indore Municipal Corporation ) में सामने आए करीब 150 करोड़ के बिल घोटाले ( Corporation Scam ) का किंगपिन अभय राठौर ( Abbey Rathore ) आखिर इस हद तक पहुंचा कैसे? इसका सीधा जवाब है निगम के ही आला अधिकारियों की शह और एक दमदार पार्षद के करीबी होने के चलते। इसका निगम में सफर 1988 से मात्र एक मस्टरकर्मी से शुरू हुआ था। इस पर एक बार नहीं कई बार भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं और यहां तक कि 6 साल पहले EOW ने भी घर पर छापा मारकर 19 करोड़ की संपत्तियों को उजागर किया था। पूर्व निगमायुक्त यानी साहब के चहेते इस अधिकारी की हरकतें कभी भी निगम में काम करने लायक ही नहीं थी। इस बार एक नहीं भ्रष्टाचार के कई मामले हैं। देखते हैं इसका पूरा सफर

राठौर फरार है और पुलिस तलाश कर रही है, नाम आने की आशंका के बाद वह पहले ही गायब हो गया।

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जिस सर्टिफिकेट से इंजीनियर बना उस पर भी सवाल

मस्टरकर्मी से यह जिस इलेक्ट्रिक्ल इंजीनयर के डिप्लोमा सर्टिफिकेट से सहायक इंजीनयर और फिर इंजीनयर बना, उस पर भी कई बार सवाल उठे हैं। लेकिन संबंधों का फायदा उठाकर वह मजबूत होता रहा। साल 2000-01 में वह जल यंत्रालय में सब इंजीनियर था। 

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                                                      ये आरोपी अभी तक गिरफ्तार

जिस भी विभाग में रहा लगातार भ्रष्टाचार किया, सस्पेंड हुआ

1-    जल यंत्रालय में सब इंजीनियर रहते हुए कर्मचारियों से मिली भगत कर खुद ही कई कामों की फर्जी फाइल बनाई और उस पर निगमायुक्त के दस्तखत तक कला लिए। परिषद ने तब 2001 में एफआईआर के आदेश दिए लेकिन जांच अधूरी रही और मामला दब गया।
2-    नगर निगम में ट्यूबवेल के नाम पर लाखों का भुगतान हुआ, जो हुए ही नहीं थे। यह काम भी कागजों पर हुआ, इसमें भी राठौर का नाम आया।
3-    साल 2004 में विद्युत विभाग भी इसके पास था। फाइल संबंधी गड़बड़ी की शिकायतें यहां भी आई, इसके बाद हटाया गया औऱ् टैंकर प्रभारी बना दिया।
4-    इसके बाद चांदी हो गई, कई फर्जी टैंकर कागजों पर चलना बताया और करोड़ों का घोटाला किया। जब ईओडब्ल्यू का छापा हुआ था तब कुछ ठिकानों से रसीदें भी मिली थी जो टैंकर भुगतान से जुड़ी बताई गई थी। 
5-    साल 2005 में लोकायुक्त में शिकायत हुई थी कि राठौर ने बोरिंग खुदाई में फर्जी बिल लगाए। जांच होने से पहले ही बोरिंग शाखा में आग लग गई और दस्तावेज जल गए
6-    साल 2007-08 में राठौर यशवंत सागर के फूलकलालिया पंपिंग स्टेशन से 100 टन पाइप गायब होने के मामले में भी सस्पेंड हुआ।
7-    साल 2010-11 में यातायात सामग्री खरीदी भुगदतान को लेकर सवा दो करोड़ के ट्रैफिक घोटाले में भी नाम आया लेकिन बच गया।

छापे में यह मिली थी संपत्ति

राठौर के यहां ईओडब्ल्यू के छापे में 19 करोड़ की संपत्ति पाई गई थी। यह कार्रवाई करीब 6 साल पहले हुई थी। साथ ही 15 बैंक में कुल 40 खाते पाए गए थे। मकान, प्लॉट, बंगला, नकदी, जेवर सब मिला था। संपत्ति परिवार और रिश्तेदारों के नाम पर निकली थी। 

साल 2000 से ही असरदार अधिकारियों में शामिल राठौर

राठौर 2000 से ही निगम के सबसे ज्यादा असरदार अधिकारियों के रूप में जाना जाता है। जेएनएनयूआरएम में 300 करोड़ के सीवरेज लाइन डालने के प्रोजेक्ट में यह शामिल रहा। स्वच्छ भारत मिशन के तहत शहर में सार्वजनिक शौचालय बनाने का काम भी इसी के पास था। इसी दौरान यह पांचों फर्जी फर्म ग्रीन कंस्ट्रक्शन, नींव कंसट्रक्शन, किंग कंसट्रक्शन, क्षितिज इंटरप्राइजेस और जान्हवी इंटरप्राइजेस इनके संपर्क में आई और जब फिर विवादों के बाद इसे ड्रेनेज से हटा गया तो इन कंपनियों के जरिए नया यह 150 करोड़ का घोटाला कर डाला।

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