भ्रष्ट अधिकारियों की खैर नहीं, नौकरी छोड़ चुके तो भी नपेंगे

मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार के मामलों में अभियोजन स्वीकृति को लेकर अब देरी नहीं होगी। केंद्र सरकार ने आदेश दिया है कि संबंधित विभाग तीन माह के भीतर अभियोजन स्वीकृति दें। रिटायर्ड और नौकरी छोड़ चुके अधिकारी भी अब कार्रवाई से नहीं बच सकेंगे।

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मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार के मामलों में अभियोजन स्वीकृति को लेकर अब देरी नहीं होगी। केंद्र सरकार ने आदेश दिया है कि संबंधित विभाग तीन माह के भीतर अभियोजन स्वीकृति दें। रिटायर्ड और नौकरी छोड़ चुके अधिकारी भी अब कार्रवाई से नहीं बच सकेंगे। यह आदेश भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 में संशोधन के तहत दिया गया है।

तीन माह में देनी ही होगी अभियोजन की स्वीकृति

मध्य प्रदेश में सरकारी अफसरों पर चल रहे भ्रष्टाचार के मामलों में संबंधित विभाग अभियोजन की स्वीकृति (Prosecution Approval Process) को लटकाकर नहीं रख सकेंगे। उन्हें अधिकतम तीन माह में अभियोजन स्वीकृति देनी ही होगी। दरअसल केंद्र सरकार ने इसे लेकर चिट्ठी लिखी है कि भ्रष्टाचार के मामलों में अभियोजन की स्वीकृति देने में विलंब नहीं होना चाहिए। वहीं अब तक टर्मिनेशन, रिटायरमेंट या VRS लेकर कानूनी कार्यवाही से बच चुके “भ्रष्ट” भी अब कानून के चुंगल से नहीं बच सकेंगे। उन पर भी कार्यवाही होना तय है। केन्द्र सरकार के पत्र के बाद अब राज्य सरकार ने सभी विभागों को इस संबंध में आदेश जारी कर दिए हैं। 

पहले समझें पूरा मामला

दरअसल भ्रष्टाचार के मामलों में केस चलाने के लिए सरकार का विधि विभाग जांच करने के बाद संबंधित अधिकारी के खिलाफ केस चलाने की अनुशंसा करता था, लेकिन 2012 में इस नियम को बदल दिया गया। उसके बाद संबंधित विभाग के मुखिया ही अभियोजन की अनुमति देने लगे। कदाचरण के मामलों में अगर विभाग चाहें तो तीन माह के अलावा एक माह की विशेष परमीशन और मांग सकते हैं। यानी अधिकतम चार माह में अभियोजन की स्वीकृति देना ही होती है। यहां बता दें कि संबंधित विभाग और विधि विभाग की राय में अंतर या विवाद होने की स्थिति में ऐसे मामले सीएम की कमेटी के सामने रखे जाते हैं। जहां ऐसे मामलों का फैसला होता है। मगर 2012 से संबंधित विभाग के पास अभियोजन स्वीकृति के अधिकार आने से कई विभागों ने तीन माह की समय सीमा तो छोड़िए, लंबे समय तक स्वीकृति ही जारी नहीं की…

आखिर केंद्र सरकार को लिखना पड़ी चिट्ठी

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मप्र के सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा सभी विभागों के प्रमुखों से कहा गया है कि कर्मचारी अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति के आवेदन मिलने के तीन माह के अंदर इसे जारी करना होगा। विधिक राय और अन्य कारणों को देखते हुए कुछ मामलों में एक माह का अतिरिक्त समय दिया जा सकता है। राज्य सरकार ने यह आदेश भारत सरकार कार्मिक लोक शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय से प्राप्त पत्र के बाद जारी किया है। इस पत्र में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 19 में साल 2018 में किए गए संशोधन का हवाला दिया गया है। इसमें अभियोजन स्वीकृति की समय सीमा निर्धारित की गई है। सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी किए गए आदेश में कहा गया है कि अभियोजन स्वीकृति देने में अब समय सीमा में ही काम करना होगा। कुछ खास प्रकरण में ही एक माह का अतिरिक्त समय मिलेगा।

अब कार्रवाई में आएगी तेजी

सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी किए गए आदेश के बाद भ्रष्टाचार के आरोपी अधिकारी- कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई में तेजी आने की उम्मीद जताई जा रही है। बता दें कि प्रदेश में 274 प्रकरण ऐसे लंबित हैं, जिनमें अभियोजन स्वीकृति न मिलने की वजह से कार्रवाई शुरू नहीं हो पा रही। यह ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त के अलग- अलग मामले हैं। जिनको लेकर दोनों ही संबंधित विभागों को पत्र लिख चुके हैं। इनमें 35 कलेक्टर, एसडीएम सहित 27 विभागों के अधिकारी कर्मचारी शामिल हैं। कई मामलों में तो आरोपी अधिकारी- कर्मचारी या तो रिटायर्ड हो गए या फिर वे सरकारी नौकरी ही छोड़ चुके हैं। इनमें सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी रमेश थेटे के विरुद्ध तो 25 प्रकरण दर्ज हैं। अधिकांश प्रकरणों में रमेश थेटे के साथ तहसीलदार आदित्य शर्मा भी आरोपित बनाए गए हैं। इनके विरुद्ध वर्ष 2013 में ही अलग-अलग दिनांक को विभिन्न धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज कर वर्ष 2014 और 2015 में अभियोजन स्वीकृति मांगी गई थी।

इन कलेक्टरों और एसडीएम के नाम शामिल

अन्य आईएएस अधिकारियों में सेवानिवृत्त आईएएस अजातशत्रु श्रीवास्तव, बृजमोहन शर्मा, कवींद्र कियावत, अरुण कोचर, अखिलेश श्रीवास्तव, शिवपाल सिंह, मनोज माथुर सहित 35 कलेक्टर, एसडीएम के नाम शामिल है। वहीं छिंदवाड़ा जिले में अमरवाड़ा के तत्कालीन एसडीओ (राजस्व) फरतउल्ला खान बालाघाट जिले में बैहर के तत्कालीन एसडीएम प्रवीण फुलगारे और तत्कालीन नगर निगम आयुक्त विवेक सिंह के विरुद्ध प्रकरण दर्ज हैं। इनके प्रकरणों में लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू ने शासन से अभियोजन स्वीकृति मांगी है, लेकिन अधिकांश प्रकरणों में स्वीकृति नहीं मिली।

विभागआरोपी
सामान्य प्रशासन विभाग35
राजस्व 30
सहकारिता 8
गृह पुलिस 2
पीडब्ल्यूडी7
पंचायत एवं ग्रामीण विकास18
वन 1
स्वास्थ्य 10
नगरीय विकास एवं आवास36
जन जातीय कार्य (आदिम जाति कल्याण) 3
वाणिज्यिककर 5
वित्त 2
महिला एवं बाल विकास3
स्कूल शिक्षा2
खाद्य नागरिक आपूर्ति 2
संसदीय कार्य1
जल संसाधन  7
पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण 2
श्रम1
पीएचई 1
उद्यानिकी 1
उच्च शिक्षा 2
कृषि 3
होमगार्ड 1
विमानन विभाग 1
राज्य के अन्य निकाय 88
विभागवार कुल आरोपित 274

(नोट – संबंधित प्रकरण और आंकड़े विधानसभा के जुलाई माह के सत्र में दी गई जानकारी के आधार पर हैं।)

खबर से संबंधित सामान्य सवाल

भ्रष्टाचार के मामलों में अभियोजन स्वीकृति के लिए अधिकतम समय सीमा क्या है?
अभियोजन स्वीकृति के लिए अधिकतम समय सीमा तीन माह है।
क्या रिटायर्ड अधिकारी भी इस आदेश के दायरे में आएंगे?
हां, रिटायर्ड और नौकरी छोड़ चुके अधिकारी भी कार्रवाई के दायरे में आएंगे।
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में कौन सा संशोधन लागू किया गया है?
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 19 में संशोधन कर अभियोजन स्वीकृति की समय सीमा तय की गई है।
कौन-कौन से विभाग भ्रष्टाचार के मामलों में शामिल हैं?
राजस्व, गृह, पीडब्ल्यूडी, स्वास्थ्य, नगरीय विकास, महिला एवं बाल विकास सहित 27 विभाग शामिल हैं।
ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त ने कितने मामलों में अभियोजन स्वीकृति मांगी है?
प्रदेश में 274 मामले लंबित हैं, जिनमें ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त ने अभियोजन स्वीकृति मांगी है।

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