अधिकारियों वाला गांव... MP के इस आदिवासी गांव की अलग है कहानी, यहां घर-घर में अफसर-कर्मचारी

मध्यप्रदेश के डही विकासखंड में आने वाले इस गांव की कहानी बिरली है। गांव के 90 प्रतिशत लोग साक्षर हैं। यहां के कई युवा अमेरिका और मलेशिया जैसे देशों में काम कर रहे हैं। कोई इंजीनियर है तो कोई कर रहा है बिजनेस... 

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Ravi Kant Dixit
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BHOPAL. एक आदिवासी बहुल गांव... आबादी 5 हजार 500... हर घर से एक व्यक्ति सरकारी नौकरी में। जी हां, सही पढ़ा है आपने। शुरू की चंद पंक्तियां पढ़कर आपको अचरज हो सकता है, लेकिन ये सौ फीसदी सच है। हम बात कर रहे हैं मालवा अंचल के धार जिले के पड़ियाल गांव की। इस गांव से 100 से ज्यादा अधिकारी हैं, जो देश-प्रदेश सहित आसपास के राज्यों में सेवारत हैं। इस गांव के हर घर में औसत एक सरकारी कर्मचारी है, जिनकी कुल संख्या 300 है। 

गांव के 90 प्रतिशत लोग साक्षर

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डही विकासखंड के अंतर्गत आने वाले इस गांव की कहानी बिरली है। यहां के युवकों में प्रतियोगी परीक्षाओं में आने की होड़ आजादी के समय से ही शुरू हो गई थी। आजादी के बाद हुए विधानसभा चुनाव में यहां के बापू सिंह अलावा कुक्षी विधानसभा के पहले विधायक चुने गए थे। गांव के 90 प्रतिशत लोग साक्षर हैं। अधिकारियों के गांव के नाम से मशहूर पड़ियाल में लोग सिर्फ अफसर बनने का सपना देखते हैं। यहां के कई युवा अमेरिका और मलेशिया जैसे देशों में काम कर रहे हैं। कोई इंजीनियर है तो कोई बिजनेस कर रहा है। गांव में स्थित हायर सेकंडरी स्कूल में 23 शिक्षक 702 विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं। 

गांव का सामाजिक ताना-बाना शिक्षा पर केंद्रित

इस क्षेत्र में लंबे समय से बीआरसी के पद पर कार्य कर रहे मनोज दुबे बताते हैं, गांव के 12 अधिकारी सेवानिवृत्त होकर जन-सेवा कर रहे हैं। गांव का सामाजिक ताना-बुना शिक्षा पर केन्द्रित है। बीआरसी दुबे के मुताबिक, पड़ियाल में कक्षा 6वीं से 12वीं तक के विद्यार्थियों के लिए स्कूल में स्मार्ट क्लासेस शुरू की गई हैं। इस साल नीट में यहां के चार विद्यार्थी, जबकि जेईई मेंस में तीन बच्चे चयनित होकर डॉक्टर और इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं।

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इस तरह अधिकारियों वाला गांव है ये

एसपी सिंह (डीआईजी), लक्ष्मण सिंह सोलंकी (एडिशनल एसपी), नरेंद्र पाल सिंह (कार्यपालन यंत्री), एमपी सिंह (एसी पीडब्ल्यूडी), डीएस रणदा (अपर संचालक ग्रामीण विकास), नवल सिंह डोडवा (एसडीओ पीडब्ल्यूडी), बीएस चौहान (डीपीओ गृह विभाग), अर्जुन सिंह जमरा (एसडीओ पीडब्ल्यूडी), महेंद्र सिंह अलावा (महाप्रबंधक एयरपोर्ट नई दिल्ली), पर्वत सिंह अलावा (आईईएस रेलवे), महेंद्र पाल अलावा (आईईएस वायरलेस एंड लोकल लूप, मेडिकल ऑफिसर, डॉक्टर सुमेर सिंह अलावा, डॉक्टर के.सी. राणे, डॉक्टर केवल सिंह जमरा, लोकेन्द्र अलावा (एसडीओ आरईएस), करण रणदा (एसीएफ), सुखलाल अलावा (परियोजना अधिकारी जिला पंचायत), सुरेंद्र अलावा (प्रबंधक हेल्थ विभाग), मनीष अलावा (प्रबंधक उद्योग), मुकेश नंदा (एईओ आबकारी), विजेंद्र सिंह मुझाल्दा (प्लाटून कमांडर) सहित अन्य उच्च पदों पर अधिकारी बन देश-प्रदेश में सेवाएं दे रहे हैं।

गांव की बेटियों ने भी किया नाम रोशन

इस गांव की बेटियां भी किसी से कम नहीं है। यहां से पढ़-लिखकर कई बेटियों ने गांव का नाम रोशन किया है। इसमें बबीता बामनिया (डीएसपी), कौशल्या चौहान (टीआई), शकुंतला बामनिया (टीआई), प्रियंका अलावा (थानेदार), रिंकी बामनिया (वाणिज्यिकर अधिकारी), शीतल अलावा (एई एमपीईबी), प्रिया रणदा (एईओ आबकारी), सुनयना डामोर (सिविल जज), गरिमा अलावा (उप निरीक्षक आबकारी), किरण जमरा (नायब तहसीलदार), सुचित्रा रणदा (कराधान अधिकारी), मीना अलावा (सहायक आयुक्त), डॉ. निधि सिंह (एमएस), डॉ. वस्ती रणदा (एमडी), डॉ. निलमणी अलावा (एमएस), डॉ. रिंकू रणदा (एमडी), डॉ. रश्मि रणदा (एमडी), डॉ. अंजना अलावा (प्रोफेसर), डॉ. अनुभूति अलावा (बीडीएस), डॉ. नेहा अलावा (एमएस), डॉ. शर्मिला जमरा (एमडी), संतोषी अलावा (प्रोफेसर), बसंती अलावा (प्रोफेसर) सहित अन्य बेटियां उच्च पदों पर पदस्थ हैं।

कुल मिलाकर पड़ियाल गांव की कहानी केवल एक गांव की नहीं, बल्कि एक आंदोलन की है, जिसने शिक्षा और मेहनत के बल पर एक छोटे से आदिवासी गांव को अधिकारियों का गांव बना दिया। यह कहानी आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्त्रोत है।

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