अब एआई से होगी मायोपिया की पहचान, एम्स और मैनिट विकसित कर रहे मोबाइल ऐप

यह प्रोजेक्ट मोबाइल ऐप के माध्यम से बिना डॉक्टर के भी लक्षण पहचानने में मदद करेगा। इस प्रोजेक्ट को आईसीएमआर ने डेढ़ करोड़ रूपए प्रदान किए है।

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Sanjay Dhiman
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Photograph: (the sootr)

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एम्स भोपाल और मैनिट भोपाल की टीम ने मिलकर एक तीन वर्षीय शोध परियोजना की शुरुआत की है। इस परियोजना में बच्चों में मायोपिया या निकटदृष्टि दोष की जल्द पहचान की जाएगी। इस प्रोजेक्ट में बिना डाॅक्टर की मदद लिए एआई की मदद से बच्चों के आंखों की जांच के लिए मोबाइल एप विकसित किया जा रहा है। इस परियोजना के विकास के लिए भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने डेढ़ करोड़ रूपए की सहायता प्रदान की है।

बच्चों में मायोपिया की समस्या  

कोरोना महामारी के बाद बच्चों में डिजिटल उपकरणों का उपयोग बढ़ गया है। मोबाइल, टीवी, और लैपटॉप पर लंबा समय बिताने के कारण बच्चों की आंखों की सेहत पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। इस बढ़ते हुए प्रभाव को देखते हुए, एम्स भोपाल और मैनिट भोपाल ने बच्चों में मायोपिया की पहचान के लिए एक संयुक्त प्रयास किया है। 

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क्या होता है मायोपिया

मायोपिया, जिसे निकट दृष्टिदोष भी कहा जाता है, एक ऐसी स्थिति है जिसमें दूर की वस्तुएं धुंधली दिखाई देती हैं। जबकि पास की वस्तुएं स्पष्ट दिखाई देती हैं। यह एक सामान्य दृष्टि समस्या है जो तब होती है जब प्रकाश की किरणें आंख में सही ढंग से अपवर्तित नहीं होती हैं। जिसके कारण छवि रेटिना पर बनने के बजाय उसके सामने बनती है। यह समस्या बच्चों में अधिक देखने को मिलती है।

एआई आधारित मोबाइल ऐप करेगा जांच 

इस नए शोध में बच्चों की आंखों की जांच के लिए एक AI तकनीकी आधारित मोबाइल ऐप और माॅडल का विकास किया जा रहा है। इस ऐप की मदद से बच्चों की आंख संबंधी बीमारियों का पता लगाया जा सकेगा। इस पूरी प्रक्रिया में डाॅक्टर की आवश्यकता नहीं होगी। इस प्रोजेक्ट में 10,000 से 12,000 बच्चों पर शोध किया जाएगा। इस शोध में शहरी व ग्रामीण दोनों जगह के बच्चे शामिल होंगे। यह एप बच्चों में निकट दृष्टि दोष या मायोपिया के शुरुआती लक्षणों की पहचान करने में मदद करेगा। इस एप की मदद से समय पर इस बीमारी का पता लगाकर उपचार किया जा सकेगा। 

इन चिकित्सकों के मार्गदर्शन में होगा शोधकार्य 

यह शोधकार्य एम्स की नेत्र चिकित्सक डाॅ. प्रीति सिंह के मार्गदर्शन में किया जा रहा है। इस शोधकार्य में डाॅ. समेंद्र कर्कुर, डाॅ. ज्योति सिंघाई का सहयोग रहेगा। डाॅ. प्रीति सिंह ने बताया कि यह शोध देश में पहली बार ऐसा डेटा तैयार करेगा, जिससे मायोपिया के लक्षणों की समय पर भविष्यवाणी की जा सकेगी। इस डेटा के इस्तेमाल से भविष्य में बच्चों की आंखों से जुड़ी सुरक्षा पुख्ता की जा सकेगी।  

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डिजिटल स्क्रीन बच्चों की आंखों के लिए खतरा

एम्स भोपाल के नेत्र रोग विभाग की प्रमुख डॉ. भावना शर्मा ने बताया कि बच्चों का अधिकांश समय अब डिजिटल स्क्रीन पर ही व्यतीत हो रहा है। इससे बच्चों की आंखों का सामान्य विकास रुक रहा है। सामान्यत: 18 साल तक आंखों का विकास होता है, लेकिन मोबाइल और लैपटॉप के अत्यधिक प्रयोग से आंखों की मांसपेशियां एक ही स्थिति में फिक्स हो जाती हैं, जिससे मायोपिया की समस्या बढ़ रही है। 

सावधानी बरतने की आवश्यकता

डॉ. शर्मा के अनुसार, बच्चों को जब सुबह या शाम की हल्की रोशनी में बाहर खेलने का मौका मिलता है, तो यह उनकी आंखों के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इससे आंखों की मांसपेशियों पर कम दबाव पड़ता है, और उनका विकास सही तरीके से होता है। अगर बच्चों की स्क्रीन पर निर्भरता बढ़ती रही और समय पर सावधानी नहीं बरती गई, तो 2050 तक हर दूसरा बच्चा मायोपिया से प्रभावित हो सकता है।  MP News

 

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