नाना जी देशमुख वेटनरी यूनिवर्सिटी में 100% बधिर को भर्ती से बाहर कर अपात्रों को दे दी नियुक्ति

नाना जी देशमुख वेटनरी यूनिवर्सिटी में दिव्यांगजन भर्ती प्रक्रिया में गड़बड़ी सामने आई है। 100% बधिर आदित्य को बाहर कर अपात्रों को चयनित किया गया, जो चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाता है। विश्वविद्यालय में इस भर्ती प्रक्रिया की न्यायिक जांच की मांग हो रही है।

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Neel Tiwari
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JABALPUR. नाना जी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय, जबलपुर ने 2024 में दिव्यांगजनों के लिए भर्ती निकाली थी। 24 जून को विज्ञापन जारी होने के बाद अभ्यर्थियों ने आवेदन किया। हालांकि, सात महीने तक कोई गतिविधि नहीं दिखाई गई। 24 जनवरी को पात्रता सूची जारी की गई, जिसमें आपत्तियों के लिए 3 फरवरी तक का समय दिया गया। इसके बाद जारी की गई सिलेक्शन लिस्ट ने सभी को हैरान कर दिया।

बेमानी साबित हुई पात्रता लिस्ट

जब इस पात्रता सूची की जांच की गई, तो सामने आया कि कई ऐसे अभ्यर्थी जिन्हें UDID जैसे आवश्यक दिव्यांग प्रमाणपत्र समय पर जमा न करने के कारण ‘अपात्र’ घोषित किया गया था, वे बाद में चयन सूची में शामिल कर दिए गए और उन्हें पद पर नियुक्ति के लिए आदेश भी जारी हो गया। यह प्रक्रिया न केवल भर्ती नियमों के विरुद्ध है, बल्कि यह गंभीर अनियमितता की ओर इशारा करती है। इससे उन वास्तविक पात्र दिव्यांग अभ्यर्थियों के साथ अन्याय हुआ जो पूरी मेहनत और समय पर दस्तावेज जमा कर चयन की उम्मीद लेकर पहुंचे थे। 

अपात्रों को मिला मौका, पात्र रह गए खाली हाथ

इस मामले में टीकाराम बरमैया, जिनका नाम पात्रता सूची में क्रमांक 241 पर दर्ज था, को UDID दस्तावेज न जमा करने के कारण अपात्र घोषित किया गया था। इसी तरह संदीप कुमार विश्वकर्मा, क्रमांक 286, को भी समय पर दस्तावेज न देने के कारण अयोग्य करार दिया गया था। हैरानी की बात यह रही कि बाद में इन दोनों को दस्तावेज मंगवाकर चयन सूची में शामिल कर लिया गया, जिससे पूरे चयन तंत्र पर प्रश्नचिह्न लग गया। आखिर अपात्रों को दोबारा दस्तावेज जमा करने का अवसर किस आधार पर और किस नियम के तहत दिया गया, यह भी एक बड़ा सवाल है।

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पात्र और 100% बधिर आदित्य को किया बाहर

इस पूरी प्रक्रिया में सबसे ज्यादा चौंकाने वाला और भावनात्मक पहलू है आदित्य पुरी गोस्वामी का, जो मैहर तहसील के ग्राम कुडवा निवासी हैं। उनका नाम पात्रता सूची में क्रमांक 163 पर दर्ज था और वे 100 प्रतिशत श्रवण बाधित यानी पूर्ण रूप से बधिर हैं और भर्ती नियम की सभी पात्रता को पूरा करते हैं। उन्होंने समय पर सभी आवश्यक दस्तावेज जमा किए और दस्तावेज सत्यापन में भी उपस्थित हुए। इसके बावजूद उन्हें चयन सूची से बाहर कर दिया गया। आदित्य ने विश्वविद्यालय के कुलपति को लिखित शिकायत में यह आरोप लगाया है कि उन्हें राजनीतिक दबाव या आंतरिक पक्षपात के चलते जानबूझकर बाहर कर दिया गया। यह उदाहरण साबित करता है कि चयन प्रक्रिया में पात्रता से अधिक महत्व 'संपर्क' को दिया गया। 

 

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बिना साक्षात्कार कैसे हुआ चयन

भर्ती विज्ञापन में यह स्पष्ट उल्लेख था कि दस्तावेज सत्यापन के बाद साक्षात्कार (इंटरव्यू) के आधार पर अंतिम चयन किया जाएगा। यह प्रक्रिया नौकरी में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए आवश्यक मानी जाती है। लेकिन जब द सूत्र की टीम ने विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार एस एस तोमर से इस विषय में पूछा, तो उन्होंने स्पष्ट इंकार करते हुए कहा कि इस भर्ती में साक्षात्कार का प्रावधान ही नहीं था। अब सवाल यह है कि अगर साक्षात्कार ही नहीं हुआ, तो फिर किस आधार पर अंतिम चयन किया गया। क्या यह पूरी तरह से चयन समिति की व्यक्तिगत पसंद और विवेक पर आधारित था?

रजिस्ट्रार की सफाई बनी और अधिक संदेह का कारण

वेटरिनरी यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार एस एस तोमर ने यह भी कहा कि "पात्रता सूची में दिया गया क्रमांक मेरिट नहीं था" और यह कि 24 पदों के लिए 1000 से अधिक आवेदन प्राप्त हुए थे। उन्होंने दस्तावेजों और शैक्षणिक अंकों के आधार पर चयन होने की बात कही। लेकिन जब उनसे पूछा गया कि 100 प्रतिशत श्रवण बाधित आदित्य पुरी जैसे पूर्णतः पात्र अभ्यर्थी को क्यों बाहर किया गया, तो वे कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दे पाए। उन्होंने केवल इतना कहा कि "पूरी प्रक्रिया निष्पक्ष रही है।" यह जवाब चयन की पारदर्शिता और ईमानदारी पर गहरी शंका पैदा करता है।

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दिव्यांग अभ्यर्थी को समय पर नहीं मिली सूचना

इस चयन प्रक्रिया में सबसे बड़ा झटका उन दिव्यांग अभ्यर्थियों को लगा जो ग्रामीण क्षेत्रों से आए थे और तकनीकी साधनों से वंचित हैं। चतुर्थ श्रेणी में भ्रत्य पद के लिए शैक्षणिक योग्यता आठवीं कक्षा उत्तीर्ण थी। ग्रामीण परिवेश से आने वाले अभ्यर्थियों ने आरोप लगाया कि दस्तावेज सत्यापन की सूचना केवल विश्वविद्यालय के पोर्टल पर अपलोड की गई थी, न कोई SMS,न ईमेल और न ही कॉल द्वारा किसी को व्यक्तिगत सूचना दी गई। इस कारण कई अभ्यर्थी समय पर दस्तावेज सत्यापन में उपस्थित नहीं हो सके। हालांकि यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार ने हमसे बात करते हुए बताया कि उन्होंने लगभग 200 से 250 अभ्यर्थियों को फोन किया था, लेकिन यह चुनिंदा अभ्यर्थी भी उन्होंने किस आधार पर कॉल करने के लिए चुने थे इसका कोई जवाब नहीं मिल पाया।

कोर्ट की निगरानी में स्वतंत्र जांच की मांग

इस मामले में हितकारिणी लॉ संगठन के अध्यक्ष अंकुश चौधरी दिव्यांग अभ्यर्थियों की हित की लड़ाई के लिए सामने आए हैं उन्होंने बताया कि अब आदित्य पुरी और उनके जैसे दर्जनों दिव्यांग अभ्यर्थी एकजुट होकर मांग कर रहे हैं कि विश्वविद्यालय में हुई इस भर्ती प्रक्रिया की स्वतंत्र, पारदर्शी और न्यायिक निगरानी में जांच होनी चाहिए। वे कहते हैं कि यदि उनकी बात नहीं सुनी गई, तो वे सीधे मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल करने को मजबूर होंगे, ताकि संविधान और दिव्यांगजनों के अधिकारों की रक्षा हो सके। MP News

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