भोपाल में किस-किसने बनाया 90 डिग्री वाला मुजस्समा, ऐशबाग ब्रिज के लिए ये हैं जिम्मेदार

ऐशबाग रेलवे ओवरब्रिज (आरओबी) की तकनीकी खामियां अब सार्वजनिक चर्चा का विषय बन गई हैं। करीब 40 फीट ऊंचे इस आरओबी का डिजाइन 90 डिग्री के मोड़ के साथ किया गया है।

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Sanjay Sharma
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राजधानी भोपाल के ऐशबाग क्रॉसिंग पर बना रेलवे ओवर ब्रिज प्रदेश के तकनीकी अधिकारियों के तकनीकी ज्ञान का बेजोड़ नमूना बन गया है। इसकी चर्चा न केवल प्रदेश में, बल्कि सोशल मीडिया के जरिए देशभर में हो रही है। 90 डिग्री के मोड़ के साथ करीब 40 फीट ऊंचे इस आरओबी पर तकनीकी एक्सपर्ट के साथ इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले युवा और आमजन भी सवाल उठा रहे हैं। 

तीन साल में बनकर तैयार हुए इस आरओबी पर सरकार द्वारा 18 करोड़ से ज्यादा राशि खर्च की गई है। NHAI की जांच रिपोर्ट में भी आरओबी की इस तकनीकी चूक के कारण हादसों का अंदेशा जताया गया है। लोगों की जान को जोखिम में डालने वाली लापरवाही के बाद अब लोक निर्माण विभाग के अधिकारी अपनी गलती पर पर्दा डाल रहे हैं। इसके लिए नए बहाने और वजह गिनाई जा रही है। 

आज द सूत्र इस खबर के जरिए आपको उन किरदारों से रूबरू कराएगा, जिनकी वजह से यह मुजस्समा खड़ा हुआ है। 

किसी ने नहीं दिया ध्यान 

आरओबी के निर्माण में डिजाइन, ड्राइंग, कंसल्टेंट, निर्माण एजेंसी के चयन से लेकर निर्माण की स्वीकृति और गुणवत्ता सहित हर स्तर पर खामियां बरती गईं है। जिम्मेदार अधिकारियों की निगरानी में लोक निर्माण विभाग और राज्य मंत्रालय से केवल दो किलामीटर दूर 90 डिग्री के मोड़ वाला आरओबी बनता रहा। तकनीकी और प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर क्षेत्रीय विधायक और सरकार के मंत्री भी निरीक्षण करने पहुंचे, लेकिन किसी ने सवाल तक खड़ा नहीं किया। 

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शुरुआत से विवादों में रहा आरओबी

ऐशबाग आरओबी शुरुआत से विवादों से घिरा रहा है। साल 2017 में आरओबी के निर्माण की कवायद शुरू हुई। इसके लिए सर्वे के बाद अधिकारियों ने मेट्रो प्रोजेक्ट को अनदेखा कर प्लानिंग कर डाली। डिजाइन और ड्राइंग को भी तैयार करा लिया गया, लेकिन मेट्रो प्रोजेक्ट के कारण मामला खटाई में पड़ गया। क्योंकि जिस जगह को आरओबी के लिए चुना गया था, वहीं मेट्रो स्टेशन प्रस्तावित था। लोक निर्माण विभाग डिजाइन तैयार कर रहा था तभी मेट्रो प्रोजेक्ट की आपत्तियां सामने आने लगी थीं, लेकिन अफसर मनमानी पर अड़े रहे। टकराव से प्रोजेक्ट में हो रही देरी को देख सरकार के स्तर पर सामंजस्य बैठाना पड़ा। लोक निर्माण विभाग, मेट्रो प्रोजेक्ट, नगर निगम और रेलवे के तकनीकी अधिकारियों  के साथ जिला प्रशासन की बैठक के बाद नए सिरे से डिजाइन तैयार कराई गई थी। 

तकनीकी के बेजोड़ नमूने के ये हैं मुख्य किरदार  

1. किरदार: जावेद शकील, कार्यपालन यंत्री पीडब्ल्यूडी

जावेद शकील ऐशबाग आरओबी के निर्माण की शुरुआत में कार्यपालन यंत्री के रूप में पदस्थ थे। डिजाइन, ड्राइंग में भी उनकी भूमिका रही है। आरओबी का निर्माण भी उनकी निगरानी में पूरा हुआ, लेकिन कुछ समय पहले ही उनका तबादला कर दिया गया। उनके तबादले के पीछे भी आरओबी की तकनीकी खामी का विवाद वजह बताया जा रहा है। माना जा रहा है कि शकील के रहते यह विवाद ज्यादा गहरा सकता था। इस कारण पीडब्ल्यूडी के आला अफसरों ने रिटायरमेंट में 10 माह शेष होने के बावजूद उन्हें यहां से हटाया है। 

2. किरदार: जीपी वर्मा, चीफ इंजीनियर (सेतु) पीडब्ल्यूडी

आरओबी के निर्माण की हर छोटी, बड़ी दस्तावेजी कार्रवाई से लेकर उनके निर्माण की गुणवत्ता और तकनीकी निर्णय जीपी वर्मा के ही थे। वर्मा की स्वीकृति के बाद आरओबी की डिजाइन स्वीकृत हुई। निर्माण एजेंसी, कंसल्टेंट का चयन किया गया। यदि वर्मा ने आरओबी की डिजाइन में 90 डिग्री के मोड़ को नजरअंदाज नहीं किया होता तो यह निर्माण रोका जा सकता था। वर्मा यदि चाहते तो मेट्रो प्रोजेक्ट के अधिकारियों से सामंजस्य बनाकर आरओबी की जगह में बदलाव किया जा सकता था। 

3. किरदार: रवि शुक्ला, एसडीओ, पीडब्ल्यूडी 

एसडीओ शुक्ला के पास आरओबी की तकनीकी और निर्माण की गुणवत्ता की जांच और परीक्षण की जिम्मेदारी थी। शुक्ला प्रोजेक्ट शुरू होने से आखिरी तक यहां कार्यरत रहे। ज्यादातर काम उनकी देखरेख में ही पूरा हुआ। इस आरओबी की तकनीकी खामी भरी डिजाइन को स्वीकृति देने वाली तकनीकी टीम में शुक्ला की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी। शुक्ला इस टीम में अन्य अधिकारियों से ओहदे में छोटे थे, लेकिन उनकी आपत्ति इस निर्माण को रोक सकती थी। शुक्ला की लापरवाही डॉ.भीमराव अंबेडकर ब्रिज के निर्माण में भी सामने आने के बाद उन्हें निलंबित किया गया है। 

4. किरदार: संजय खांडे, चीफ इंजीनियर, पीडब्ल्यूडी 

चीफ इंजीनियर खांडे भी इस आरओबी के सुपरविजन अधिकारी थे। राजधानी में पदस्थापना के दौरान वे भी निर्माणाधीन पुल का निरीक्षण करते रहे, लेकिन आरओबी की डिजाइन और ड्राइंग पर कभी उनकी आपत्ति भी सामने नहीं आई। जनप्रतिनिधि और क्षेत्रीय विधायक व सरकार के मंत्री के निरीक्षणों के दौरान वे गायब हो जाते थे। इस पर मंत्री सारंग उनसे नाराज भी हो गए थे।

5. किरदार: आरके मेहरा, ईएनसी पीडब्ल्युडी

ईएनसी रहते हुए राजधानी में रेलवे ओवर ब्रिज के निर्माण की तकनीकी खामी सामने आने के बाद भी आरके मेहरा ने कोई एक्शन नहीं लिया। इसके चलते बिना रोकटोक 90 डिग्री के एंगल पर आरओबी की भुजा को उतारा गया और अब यही मोड़ हादसों की वजह बन सकता है। 

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गलती तो नेताओं की भी कम नहीं

ऐशबाग आरओबी राजधानी की नरेला विधानसभा क्षेत्र में आता है। इसके निर्माण की पैरवी में मंत्री और क्षेत्रीय विधायक विश्वास सारंग सबसे आगे रहे हैं। इसकी  डिजाइन, ड्राइंग की स्वीकृति और काम पूरा होने तक सब उनके सामने हुआ है। निर्माण की शुरुआत से लेकर आरओबी पर 90 डिग्री का मोड तैयार कराने के दौरान सारंग ने कई बार यहां निरीक्षण किया। वे निर्माण जल्द पूरा करने पर जोर देते रहे, लेकिन अफसरों के सामने लोगों की जान को जोखिम में डालने वाले 90 डिग्री के मोड़ पर आपत्ति दर्ज नहीं कराई। वे चाहते तो डिजाइन, ड्राइंग को बदला जा सकता था। 

अब बहानों की भरमार

अब पीडब्ल्यूडी मंत्री राकेश सिंह द्वारा एनएचएआई के अधिकारियों से परीक्षण कराया गया है। हालांकि एनएचएआई की रिपोर्ट ने भी 90 डिग्री के इस मोड़ को खतरनाक माना गया है। रिपोर्ट में हादसों से बचने के लिए आरओबी पर वाहनों की स्पीड 35 किलोमीटर से ज्यादा नहीं रखने और गति को नियंत्रित करने स्पीड ब्रेकर बनाने की अनुशंसा की गई है। 

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पीडब्ल्यूडी अब भी चूक मानने को तैयार नहीं 

पीडब्ल्यूडी के अधिकारी अब भी अपनी चूक मानने तैयार नहीं है। कार्यपालन यंत्री जावेद शकील का बहाना इनमें सबसे अजब है। शकील का तर्क है कि जिस जगह आरओबी बना है, वहां एक ओर स्टेडियम है, जबकि दूसरी ओर लोगों के मकान हैं। यहीं पर मेट्रो स्टेशन प्रस्तावित है। दूसरे अलाइनमेंट का विकल्प नहीं था, इसलिए आरओबी को बोगदा पुल रोड पर 90 डिग्री का मोड़ देकर उतारना पड़ा है। इसमें तकनीकी चूक नहीं हुई है। वहीं चीफ इंजीनियर जीपी वर्मा तो इस गलती को अपनी जिम्मेदारी मानने को तैयार नहीं हैं। उधर, एसडीओ शुक्ला के पास ट्रांसफर होने का सबसे घिसा—पिटा बहाना है।  

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जोखिम भरा 18 करोड़ का पुल

  • ऐशबाग क्षेत्र में रेलवे ओवरब्रिज को तैयार कराने में सरकारी खजाने से 18 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। 
  • आरओबी 648 मीटर लंबा और 8.5 मीटर चौड़ा है। इसका काम 2023 में शुरू हुआ था। अब पूरा हुआ है।
  • बरखेड़ी रेलवे गेट बंद होने से लगने वाले जाम की परेशानियों को देखते हुए आरओबी की मांग की जा रही थी। 
  • साल 2017 में सरकार ने इसकी स्वीकृति दी थी। इसके साथ ही करोड़ों की लागत के इस आरओबी को लेकर पीडब्ल्यूडी ने खिलवाड़ शुरू कर दिया। 
  • जिस जगह आरओबी प्रस्तावित किया गया, वहां पहले से ही मेट्रो प्रोजेक्ट को स्वीकृति मिल गई थी। इसके बावजूद अधिकारियों ने सामंजस्य बैठाए बिना डिजाइन, ड्राइंग तैयार कराई।

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