90 डिग्री वाला ब्रिज ही नहीं, भोपाल में और भी हैं ऐसे मुजस्समे, आप भी हैरान रह जाएंगे!

सरकारी लापरवाही से 18 करोड़ का 90 डिग्री मोड़ वाला फ्लाईओवर बनाया गया, जिससे हादसे का खतरा है। अंबेडकर ब्रिज और मेट्रो स्टेशन भी गलत डिज़ाइन के कारण विवादों में हैं।

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Ravi Kant Dixit
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दुनिया में सात अजूबे हैं। हर ​कोई सोचता है कि क्या वाकई कहीं आठवां अजूबा आकार ले पाएगा। आप सच सोचते हैं। मध्यप्रदेश के इंजीनियर्स ने आठवां अजूबा रच दिया है। यहां सरकारी कारीगरी ने ऐसा तमाशा खड़ा किया है कि अवाम हैरत में है और सिस्टम बेशर्म। इंजीनियरिंग के नाम पर जो फसाना गढ़ा गया है, वह अब हर जुबान पर है।

करीब 18 करोड़ रुपए झोंककर भोपाल के ऐशबाग में 90 डिग्री का ऐसा ब्रिज बनाया गया, जिसे देखकर जहन में यही सवाल उठता है कि क्या ये हुनर था या हद थी बेअक्ली की? 90 डिग्री पर घूमते हुए जब गाड़ियां गिरेंगी या भिड़ेंगी, तब किसे जिम्मेदार ठहराया जाएगा? जवाब किसी के पास नहीं है।

90° bridge in Bhopal...people said- this is a unique design | भोपाल में ओवर  ब्रिज पर 90 डिग्री एंगल का मोड़: अजीब डिजाइन को लेकर सोशल मीडिया पर बना  मजाक; लोग बोले-

मंत्री राकेश सिंह कह रहे हैं, हम जांच कराएंगे। सवाल ये है कि अब? जब 18 करोड़ का नजारा सबकी आंखों के सामने खड़ा है, तब अफसरों को होश आया है? ये सिर्फ एक मामला नहीं है, भोपाल में सरकारी इंजीनियरिंग का ये तीसरा मुजस्समा है, जहां टेक्नॉलॉजी और समझदारी दोनों की तौहीन कर शर्मनाक इंजीनियरिंग दिखाई है। 

कारीगरी नंबर 1 

भोपाल में हाल ही में बना ऐशबाग ब्रिज पूरे देश में चर्चा का केंद्र बना हुआ है। वजह? महज यह कि यह ब्रिज सीधा नहीं, बल्कि 90 डिग्री के मोड़ पर गाड़ियों को दौड़ाएगा। अब जरा सोचिए, फ्लाईओवर पर चढ़ते हुए यदि आपकी गाड़ी को अचानक दाएं या बाएं 90 डिग्री पर मुड़ना पड़े, तो क्या होगा? सीधी टक्कर या दीवार से भिड़ंत और फिर सीधा नीचे। 

इस ब्रिज को बनाने में 18 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। यानी अवाम के टैक्स का पैसा झोंककर ऐसा तिलिस्म खड़ा कर दिया गया है, जिसे देखकर इंजीनियरिंग भी शर्म से पानी-पानी हो जाए। यह ब्रिज रेलवे क्रॉसिंग पर बना आरओबी (रेलवे ओवर ब्रिज) है, जिसकी एप्रोच रोड पर वाहन चालक को लगभग 90 डिग्री के एंगल पर मोड़ना होगा। विशेषज्ञ कहते हैं, ब्रिज पर 30-35 किलोमीटर प्रति घंटा से ज्यादा की रफ्तार से वाहन चलाना खतरे से खाली नहीं। मोड़ पर तो 20 की स्पीड भी ज्यादा हो सकती है। 

दरअसल, इस आरओबी की संरचना दो विभागों ने तैयार की है। रेलवे ने ट्रैक के ऊपर का हिस्सा अपने मापदंडों के अनुसार बनाया और पीडब्ल्यूडी ने एप्रोच रोड बनाई। मगर कोऑर्डिनेशन की ऐसी कमी रही कि न रेलवे को पता चला कि आगे क्या बन रहा है और न पीडब्ल्यूडी को यह फिक्र रही कि ब्रिज की दिशा कहां जा रही है। अब मंत्री राकेश सिंह कह रहे हैं कि जांच कराएंगे। सवाल यह है कि जब 18 करोड़ की यह 'भूल' खड़ी हो गई, तब तक सब कहां थे?

कारीगरी नंबर 2 

करीब 154 करोड़ रुपए खर्च कर भोपाल में मध्यप्रदेश का सबसे लंबा फ्लाईओवर बनाया गया। इसकी लंबाई 2.73 किलोमीटर है। यह फ्लाईओवर गायत्री मंदिर से गणेश मंदिर तक फैला है। उद्घाटन खुद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने किया था और इसका नाम जी-जी ब्रिज से बदलकर अंबेडकर ब्रिज रखा गया। नाम भले ही सामाजिक न्याय का प्रतीक बन गया हो, लेकिन काम की गुणवत्ता ने इस परियोजना को उपहास का पात्र बना दिया।

यह पुल पूरी तरह आरसीसी से बना था, लेकिन निर्माण की खामियां इतनी भयंकर थीं कि जगह-जगह जर्क यानी झटके महसूस होते थे। वाहन चलते समय ऐसे हिचकोले खाता था मानो आप पहाड़ चढ़ रहे हों। जब लोगों ने आवाज उठाई तो लीपापोती शुरू हुई। पहले तो इसे इंजीनियरिंग की सीमा बताकर नजरअंदाज किया गया, लेकिन जब बात मीडिया तक पहुंची तो आनन-फानन में ब्रिज पर डामर चढ़ाकर स्थिति संभालने की कोशिश की गई।

फिर भी मुसीबत खत्म नहीं हुई। ब्रिज जहां खत्म होता है, उसके ठीक सामने ट्रैफिक सिग्नल है। जेल रोड की तरफ से उतरते ही गाड़ियां सीधे लाल बत्ती पर अटक जाती हैं। लिहाजा, हर रोज लंबा जाम लगता है। सवाल ये है कि क्या ऐसा अलाइनमेंट डिजाइन करने वाले इंजीनियरों ने कभी ट्रैफिक फ्लो को समझा भी था?

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कारीगरी नंबर 3 

एमपी नगर में करीब 45 करोड़ रुपए की लागत से मेट्रो स्टेशन बनाया गया, जिसकी ऊंचाई जमीन से महज 4.5 मीटर है। जरा सोचिए, जब बड़े ट्रक, ट्राॅले या डंपर इस रोड से गुजरते, जिनकी ऊंचाई 4.75 से 5 मीटर तक होती है, तो क्या होता? सीधा टक्कर। यानी जो स्टेशन बना, वो वाहनों के लिए खुद ही खतरा बन गया था। मेट्रो की सिविल और डिजाइन टीम ने जब यह स्टेशन डिजाइन किया, तो उन्होंने यह तक नहीं देखा कि वहां की सड़क की ढलान कितनी है।

प्रगति पेट्रोल पंप के पास बने इस स्टेशन की ऊंचाई जमीन से महज 4.5 मीटर है। - Dainik Bhaskar

सभी तीनों स्टेशन का एक ही जैसा स्लोप बना दिया गया। नतीजा यह रहा कि स्टेशन नीचे से टकराने लगा। अब इसका समाधान क्या किया गया? नीचे की जमीन को ही खोद दिया गया, ताकि गाड़ियां टकराएं नहीं। लेकिन जरा सोचिए, अब उस सड़क पर बारिश में पानी भरना तय है। यानी आपने समस्या सुलझाई नहीं, नई मुसीबत खड़ी कर दी।

अब सवाल यह है कि क्या ये सब महज इत्तेफाक है? या फिर सिस्टम में बैठे लोगों की बेबसी, बेफिक्री और बेईमानी का नतीजा? भोपाल में इंजीनियरिंग के नाम पर किए गए ये तीन मुजस्समे साबित करते हैं कि हमारी व्यवस्थाएं न सिर्फ जनता की जान से खेल रही हैं, बल्कि टैक्स के पैसे की बर्बादी को कला में तब्दील कर चुकी हैं। 

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सोशल मीडिया पर कोस रहे लोग 

18 करोड़, 154 करोड़ और 45 करोड़ कुल मिलाकर करीब 217 करोड़ रुपए खर्च कर तीन ऐसी संरचनाएं बनाई गईं, जिन्हें देखकर लगता है कि यह शहर स्मार्ट नहीं, स्मार्टली लूटा गया है। अब देखना यह है कि विभागीय जांच सिर्फ फाइलों तक सीमित रहेगी या फिर इन अजूबों की जिम्मेदारी कोई वाकई लेगा। और सबसे बड़ा सवाल, क्या अगला अजूबा भी भोपाल में ही बनेगा? सोशल मीडिया पर लोग तरह तरह के सवाल कर रहे हैं। इंजीनियरिंग को कोसा जा रहा है।

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