इलाहाबाद हाईकोर्ट : घरेलू हिंसा में रिश्तेदारों को आरोपित करना गलत

हाईकोर्ट ने घरेलू हिंसा मामले में पति और सास को छोड़ बाकी रिश्तेदारों के खिलाफ केस रद्द किया। कोर्ट ने कहा ठोस सबूत के बिना रिश्तेदारों को फंसाना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

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Sandeep Kumar
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हाईकोर्ट ने घरेलू हिंसा के एक मामले में अहम आदेश दिया है। कोर्ट ने पति और सास को छोड़कर शेष पारिवारिक सदस्यों के खिलाफ दर्ज केस को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि ठोस सबूतों के बिना दूर के रिश्तेदारों को घरेलू हिंसा के मामले में फंसाना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है। दरअसल इस पूरे मामले की सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट में हो रही है।

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ये है पूरा मामला 

यह आदेश न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने सोनभद्र की कृष्णा देवी और छह अन्य की याचिका पर दिया। पीड़िता ने वैवाहिक कलह के कारण पति, सास और विवाहित ननदों के खिलाफ घरेलू हिंसा का केस दर्ज किया था। सास और अन्य रिश्तेदारों ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर, मामले में कार्रवाई रद करने की मांग की थी।

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घरेलू हिंसा का मुकदमा

कोर्ट ने कहा कि घरेलू हिंसा का मुकदमा केवल उन्हीं लोगों पर दर्ज किया जा सकता है, जो पीड़िता के साथ साझा घर में रहते हों। कोर्ट ने यह भी कहा कि कई मामलों में पीड़ित पक्ष उन रिश्तेदारों को फंसा देता है जो पीड़िता के साथ नहीं रहते या नहीं रहते थे। 

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कोर्ट ने इनको दोषी नहीं माना

कोर्ट ने विवाहित बहनों और उनके पतियों को दोषी नहीं माना, क्योंकि वे अलग-अलग रहते हैं। हालांकि, कोर्ट ने पति और सास के खिलाफ कार्रवाई जारी रखने का आदेश दिया। इन दोनों पर दहेज से संबंधित उत्पीड़न और घरेलू हिंसा के आरोप हैं। अदालत ने ट्रायल कोर्ट को 60 दिनों के भीतर केस की सुनवाई पूरी करने का निर्देश दिया है।

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