फाइलों में ही दबी है जांच आयोग की रिपोर्ट,  इस बार फिर विधानसभा के पटल पर पहुंचने का इंतजार

मध्यप्रदेश में 8 आयोगों ने अपनी रिपोर्ट सौंपी, लेकिन एक जांच रिपोर्ट के अलावा सभी विभागों की फाइलों में ही दबकर रह गईं। इन रिपोर्टों को विधानसभा के पटल पर रखा जाना था, लेकिन विपक्ष की मांग के बाद भी सरकार अब तक टालती आ रही है...

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Jitendra Shrivastava
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कहावत सब दिन चले अढ़ाई कोस, मध्यप्रदेश में जांच आयोग की रिपोर्ट और सरकार की कार्रवाई पर सटीक बैठती है। पिछले 12 सालों में प्रदेश में अलग-अलग घटनाओं की जांच के लिए 9 आयोगों का गठन किया गया। किसी आयोग का कार्यकाल चार बार बढ़ा तो किसी का छह बार। 8 आयोगों ने अपनी रिपोर्ट भी सौंपी, लेकिन एक जांच रिपोर्ट के अलावा सभी विभागों की फाइलों में ही दबकर रह गईं। इन रिपोर्टों को विधानसभा के पटल पर रखा जाना था, लेकिन विपक्ष की मांग के बाद भी सरकार अब तक टालती आ रही है। ऐसे में आयोगों के गठन के औचित्य पर सवाल उठ रहे हैं और जिम्मेदारों पर भी कार्रवाई तय नहीं हो सकी है। 

पेंशन, विस्फोट, फायरिंग की रिपोर्ट उजागर नहीं की उजागर

घटनाओं के बाद जनाक्रोश को देखते हुए सरकार अकसर जांच आयोग बना देती हैं। साल 2008 से 2022 के बीच प्रदेश में सामाजिक सुरक्षा-वृद्धावस्था पेंशन, पेटलावद विस्फोट, ग्वालियर मानमंदिर पुलिस मुठभेड़, भिंड गोली कांड, मंदसौर किसान आंदोलन पुलिस फायरिंग और लटेरी फॉरेस्ट गार्ड फायरिंग, मोहर्रम जुलूस रोकने पर उत्पात और चालीस साल पुराने भोपाल गैस कांड की दोबारा जांच के लिए 9 आयोगों का गठन हुआ। इनमें से लगभग सभी आयोगों के कार्यकाल बार-बार सालों तक बढ़ाए जाते रहे। लटेरी फॉरेस्ट गार्ड फायरिंग को छोड़कर सभी आयोग अपनी रिपोर्ट भी सरकार को सौंप चुके हैं। 

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बढ़ते रहे आयोगों के कार्यकाल, जांच में बीते वर्षों

जांच आयोग में से किसी ने दो साल बाद तो किसी ने चार या छह साल बाद जांच पूरी कर सरकार को रिपोर्ट सौंपी है। अब तक केवल पेटलावद में  रोकने की घटना की रिपोर्ट ही विधानसभा के पटल पर रखी गई है। वहीं सात जांच आयोगों की रिपोर्ट या तो सरकार के पास या फिर विभागीय स्तर पर विचाराधीन हैं। इन जांच रिपोर्ट के उजागर नहीं होने से यह भी पता नहीं चला कि घटना का जिम्मेदार कौन था। साल 2022 में लटेरी के जंगल में फॉरेस्ट गार्ड की गोली से एक युवक की मौत की जांच भी आयोग कर रहा है। इस आयोग का कार्यकाल पिछली सरकार में पांच बार बढ़ाया जा चुका है।

किस घटना पर कब बना आयोग, रिपोर्ट कब सौंपीमुहर्रम जुलूस

प्रदेश में पिछले 12 सालों में सरकार ने कब-कब जांच आयोगों का गठन किया अब इसे जान लेते हैं। आपको यह भी बताएंगे कि अब इन आयोगों की जांच रिपोर्ट स्तर पर विचाराधीन है और क्या कार्रवाई हुई है। वहीं कुछ और मामलों में भी सरकार द्वारा बनाए गए आयोग जांच कर रहे हैं और रिपोर्ट कब तक आएगी और इस पर कार्रवाई कब होगी यह कहना फिलहाल मुश्किल है। 

प्रमुख घटनाओं में जांच आयोग की कार्रवाई

  1. प्रदेश के नगरीय निकायों में  सामाजिक सुरक्षा और वृद्धावस्था पेंशन में गड़बड़ी सामने आने पर फरवरी 2008 में जस्टिस एनके जैन की अध्यक्षता में जांच आयोग बनाया गया था। आयोग ने चार साल बाद साढ़े चार साल बाद सितम्बर 2012 में अपनी रिपोर्ट भी सौंप दी थी। अब यह रिपोर्ट सामाजिक न्याय विभाग के पास है। कार्रवाई का फिलहाल पता नहीं है। 
  2. भोपाल गैसकांड आज भी प्रदेश में सबसे बड़ी त्रासदी के रूप में सिहरन पैदा कर देती है। दिसम्बर 1984 की इस घटना की दोबारा जांच के लिए सरकार ने अगस्त 2010 में जस्टिस एसएल कोचर की अध्यक्षता में जांच आयोग बनाया था। इस आयोग ने पांच साल में जांच पूरी कर फरवरी 2015 में रिपोर्ट सौंप दी थी। अब यह रिपोर्ट गैस राहत विभाग में कार्रवाई के लिए 9 साल से अटकी हुई है। 
  3. भिंड जिले में फायरिंग की वारदात की न्यायिक जांच के लिए सरकार ने जुलाई 2012 में एडीजे सीपी कुलश्रेष्ठ की अध्यक्षता में आयोग गठित किया था। यह आयोग पांच साल में अपनी जांच पूरी कर पाया। आयोग द्वारा दिसम्बर 2017 में प्राप्त हुई इस रिपोर्ट को गृह विभाग को भेज दिया गया। सात साल बीत गए लेकिन कार्रवाई क्या हुई अब तक इसका पता नहीं है। 
  4. ग्वालियर के मान मंदिर में पुलिस मुठभेड़ की घटना के बाद सरकार ने अगस्त 2015 में एडीजे सीपी कुलश्रेष्ठ को जांच सौंपी थी। कुलश्रेष्ठ आयोग ने दो साल में जांच पूरी कर अपनी रिपोर्ट सौंप दी लेकिन अब इस मामले में कार्रवाई गृह विभाग में लंबित है।
  5. पेटलावद में पटाखा फैक्ट्री में साल 2015 में हुए विस्फोट की घटना में कई लोग मारे गए थे। घटना की जांच के लिए जस्टिस आर्येन्द्र कुमार सक्सेना की अध्यक्षता वाला आयोग बनाया गया। आयोग ने तीन महीने में ही अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी। अब रिपोर्ट गृह विभाग के पास है और कार्रवाई विचाराधीन है। 
  6. मंदसौर में आंदोलन के दौरान हुए उत्पात के बीच पुलिस फायरिंग में कई किसान मारे गए थे। मामला गरमाने पर सरकार ने जून 2017 में जांच आयोग गठित किया गया था। रिटायर्ड हाईकोर्ट जस्टिस जेके जैन की अध्यक्षता वाले इस आयोग ने सरकार को एक साल बाद जांच पूरी कर रिपोर्ट सौंप दी। यह रिपोर्ट अब गृह विभाग के पास है। विपक्ष कई बार रिपोर्ट उजागर करने की मांग कर चुका है लेकिन इसे अब तक विधानसभा के पटल पर नहीं रखा गया है। 
  7. विदिशा जिले के लटेरी के पास जंगल में अगस्त 2022 में फॉरेस्ट गार्ड शिकार की सूचना पर गश्त कर रहे थे। जंगल से गोली चलने पर घेराबंदी कर जवाबी फायरिंग कर दी गई थी। फायरिंग में एक युवक की मौत होने पर ग्रामीणों के विरोध और वनकर्मियों के आंदोलन को देख सरकार ने हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस वीपीएस चौहान को जांच सौंपी थी। चौहान आयोग का कार्यकाल अब तक पांच बार बढ़ाया जा चुका है। 

क्या विधानसभा के पटल पर आएंगी आयोगों की रिपोर्ट

सरकार बड़ी घटनाओं या जनाक्रोश की वजह बनने वाले मामलों में जांच आयोग बनाकर भूल जाती है। इन आयोगों की जांच तय अवधि में पूरी हो और विभाग कार्रवाई निर्धारित करें इसकी निगरानी का इंतजाम नहीं करती। नतीजा जांच आयोगों का कार्यकाल बार-बार बढ़ता रहता है। साल दर साल बीतने का असर जांच पर भी पड़ता है। कई मामलों में तो जांच रिपार्ट आते-आते स्थिति पूरी बदल जाती है और तब कार्रवाई भी बेमानी सी लगती है। जुलाई में फिर विधानसभा सत्र शुरू हो रहा है। ऐसे में एक बार फिर सरकार पर नैतिक दबाव है। क्या विभागों की फाइलों में दबी आयोगों की जांच रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर आ सकेंगी यह कुछ दिन बाद ही पता चल पाएगा।

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