JABALPUR. जबलपुर हाईकोर्ट ने नाबालिग आरोपी की जमानत अर्जी खारिज करते हुए सख्त टिप्पणी की है। कोर्ट एक किशोर के मामले की सुनवाई कर रहा था, जिसने 16 वर्षीय किशोर का पहले किडनैप किया और बाद में फिरौती की रकम नहीं मिलने पर कथित तौर पर उसकी हत्या कर दी थी।
सिर्फ लाभ के लिए जमानत प्रावधानों की व्याख्या न करें
मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि समाज की चिंताओं को नजरअंदाज कर जघन्य अपराधों के मामलों में नाबालिग आरोपियों को जमानत देना अनिवार्य नहीं है। किसी किशोर आरोपी के लिए जमानत प्रावधानों की व्याख्या सिर्फ उसके लाभ के लिए नहीं की जा सकती। गलत सहानुभूति समाज को न्याय से वंचित करती है। जस्टिस दिनेश कुमार पालीवाल की एकल पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि किशोर न्याय अधिनियम के प्रावधानों की व्याख्या जमानत के मामलों में अनुचित लाभ देने के लिए नहीं की जा सकती, खासकर तब जब किशोर द्वारा जघन्य अपराध किए गए हों।
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जमानत याचिका खारिज
कोर्ट मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा के 16 वर्षीय किशोर की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहा था। एकल पीठ ने किशोर की जमानत अर्जी खारिज करते हुए कहा कि ऐसे मामले पर विचार करते समय संतुलन बनाए रखना बेहद जरूरी है। गंभीर मामलों में नाबालिग आरोपी को किशोर न्याय अधिनियम के तहत जमानत के उदार प्रावधानों का लाभ देने से पहले सभी पहलुओं पर विचार होना चाहिए।
न्याय प्रक्रिया बाधित करने के समान होगा
कोर्ट ने कहा कि जब किसी बच्चे की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी जाती है कि उसका पिता फिरौती नहीं दे पाया। ऐसे घटनाक्रमों से किशोर आरोपी की दुर्बल मनोदशा पता चलती है। वह नशे का भी आदी है। अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा कि ऐसे आरोपी को जमानत देना न्यायिक प्रक्रिया को बाधित करने के समान है।
इसे गलती नहीं माना जा सकता
अदालत ने कहा कि एक असहाय और मासूम बच्चे की हत्या ऐसे अपराध को करने वाले व्यक्ति की मानसिकता की भ्रष्टता को दर्शाती है। फिरौती के लिए बच्चे का अपहरण और फिरौती ना मिलने पर अपहृत बच्चे की हत्या को ऐसा कृत्य नहीं माना जा सकता, जिसे युवावस्था या किशोरावस्था में बच्चे द्वारा की गई गलती कहा जा सके।
फिरौती नहीं मिलने पर की थी हत्या
याचिकाकर्ता किशोर ने अपने साथियों के साथ मिलकर 20 लाख रुपए की फिरौती की मांग पूरी नहीं होने पर 17 साल के लड़के की कथित तौर पर हत्या कर दी थी। किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) और ट्रायल कोर्ट ने उसे जमानत देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद उसने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन उसे वहां से भी राहत नहीं मिली।