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मध्य प्रदेश की धरती ने कई वीर सपूतों को जन्म दिया, जिन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति दी। बिरसा मुंडा, टंट्या भील जैसे क्रांतिकारियों की गाथाएं तो इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं, पर नर्मदांचल के राजा भभूत सिंह की वीरता की कहानी आज भी सतपुड़ा की पहाड़ियों में गूंजती है। छापामार युद्ध में माहिर इस वीर योद्धा को पकड़ने के लिए अंग्रेजों को मद्रास इन्फेंटरी तक बुलानी पड़ी थी। उनकी शौर्यगाथा को सम्मान देने के लिए डॉ.मोहन यादव सरकार ने पचमढ़ी में कैबिनेट बैठक का आयोजन किया है।
इस खास रिपोर्ट में हम आपको बताने जा रहा हैं राजा भभूत सिंह का शौर्य...
1857 के स्वतंत्रता संग्राम की लौ जब देशभर में फैल रही थी, तब सतपुड़ा की गोद में राजा भभूत सिंह ने तात्या टोपे के साथ मिलकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सशस्त्र क्रांति का बिगुल फूंका। पचमढ़ी जागीर के स्वामी ठाकुर अजीत सिंह के वंशज राजा भभूत सिंह ने लोगों को एकजुट करके अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे। हर्राकोट राईखेड़ी शाखा के जागीरदार भभूत सिंह छापामार युद्ध में पारंगत थे। रणनीति इतनी प्रभावी थी कि उन्हें नर्मदांचल का शिवाजी कहा जाने लगा। सतपुड़ा के जंगलों और पहाड़ी रास्तों की गहरी जानकारी ने उन्हें अंग्रेजों के लिए एक पहेली बना दिया। दो साल तक चले कड़े संघर्ष में अंग्रेजों को उनकी गिरफ्तारी के लिए मद्रास इन्फेंटरी की मदद लेनी पड़ी थी।
शिव भक्ति और युद्धकला का संगम
राजा भभूत सिंह कुशल योद्धा होने के साथ भगवान शिव के भक्त थे। सिंगानामा के पास उनके द्वारा बनवाए गए कुंड और शिवलिंग आज भी आध्यात्मिकता की गवाही देते हैं। वे औषधियों के जानकार थे। युद्ध में जब सैनिक जख्मी हो जाते थे तो भभूत सिंह औषधियों से उन्हें ठीक कर देते थे।
पचमढ़ी और मढ़ई के बीच घने जंगलों में उनके किले का द्वार और अगरिया लोहारों की भट्टियां आज भी हैं। ये साक्ष्य बताते हैं कि राजा भभूत सिंह रणनीतिक किलेबंदी में माहिर होने के साथ बड़े पैमाने पर हथियार बनवाने की क्षमता रखते थे।
दादा मोहन सिंह से मिली प्रेरणा
राजा भभूत सिंह की क्रांतिकारी चेतना उनके दादा ठाकुर मोहन सिंह से प्रेरित थी। 1819-20 में ठाकुर मोहन सिंह ने नागपुर के पराक्रमी पेशवा अप्पा साहेब भोंसले का साथ देते हुए अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया था। अप्पा साहेब ने महादेव की पहाड़ियों में रहकर आदिवासी समुदाय को एकजुट किया, जिसमें ठाकुर मोहन सिंह ने अहम भूमिका निभाई। यही वह जज्बा था, जिसने भभूत सिंह के मन में स्वतंत्रता की ज्वाला प्रज्वलित की।
जल, जंगल, जमीन के लिए बलिदान
सीएम मोहन यादव कहते हैं, पचमढ़ी जनजातीय समाज के बलिदान और स्वतंत्रता संग्राम की गौरवगाथा की साक्षी है। 1857 की क्रांति से पहले और बाद में जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए जनजातीय योद्धाओं ने अपने प्राण न्योछावर किए। उन्होंने बताया कि 1959 तक पचमढ़ी मध्यप्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी रही। वहां विधानसभा सत्र आयोजित होते थे। अब, इस ऐतिहासिक स्थल पर कैबिनेट बैठक आयोजित कर सरकार ने जनजातीय नायकों के योगदान को सम्मान देने का संकल्प लिया है।
चौरागढ़ महादेव की पहाड़ियों से लेकर बोरी क्षेत्र तक राजा भभूत सिंह की वीरता के किस्से आज भी लोकमानस के मन में हैं। उनकी रणनीति, साहस और समर्पण आज के युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
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राजा भभूत सिंह अभयारण्य एमपी हिंदी न्यूज