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BHOPAL. सरकारी विभागों में सालों से जमे आईटी और टेक्निकल कंसल्टेंट बदलने की तैयारी कर ली गई है। सरकार के इशारे पर विभाग प्रमुखों के कार्यालयों में काम कर रहे कंसल्टेंट के कामकाज के तरीके की जानकारी खंगाली जा रही है। कई सालों से विभागों में जमे आउटसोर्स एजेंसियों के सलाहकारों के गलत सुझाव और दखल की वजह से पूर्व में हुए नुकसान को भी इसकी वजह माना जा रहा है। सरकार तक खबर पहुंची थी कि कंसल्टेंट ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने का काम कर रहे हैं। पूर्व मुख्य सचिव वीरा राणा ने भी परिवहन और लोक निर्माण विभाग से जुड़ी टेंडर प्रक्रियाओं में कंसल्टेंट की भूमिका पर आपत्ति दर्ज कराई थी। पुराने आईटी कंसल्टेंसी की विदाई के बाद अब सरकार आऊटसोर्स एजेंसियों से सेवा लेने की जगह अपने स्तर पर सीधी भर्ती की तैयारी कर रही है।
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अफसरों के निर्देशों पर भारी पड़ रहे कंसल्टेंट
मध्य प्रदेश विभागों को ऑनलाइन टेंडर प्रक्रिया में तकनीकी मदद के लिए आईटी कंसलटेंट की नियुक्ति की व्यवस्था सरकार द्वारा शुरू की गई थी। सरकारी विभाग इसके लिए आउटसोर्स एजेंसियों के माध्यम से कंसल्टेंट नियुक्त करते आ रहे हैं। ये कंसल्टेंट पीडब्ल्यूडी, नगरीय प्रशासन, उद्योग विभाग, परिवहन, प्रौद्योगिकी सहित कई अन्य विभागों के अलावा कुछ निगम मंडल, बोर्ड कॉर्पोरेशन के लिए काम कर रहे हैं।
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विभाग और उनके संस्थानों के लिए होने वाली सभी टेंडर प्रक्रियाओं का संचालन इनके माध्यम से ही होता है। लगातार कार्यरत रहने से इन संस्थाओं और विभागों में कंसल्टेंट का दखल इतना बढ़ गया है कि वे टेंडर प्रक्रिया के नियमों से छेड़छाड़ करने से भी बाज नहीं आ रहे हैं। कुछ मामलों में तो विभाग प्रमुखों के निर्देशों को अनदेखा करने के मामले भी सामने आ चुके हैं।
सरकार के नुकसान से ज्यादा ठेकेदार की चिंता
कुछ महीने पहले परिवहन विभाग की स्मार्ट चिप कंपनी के चयन की टेंडर प्रक्रिया कंसल्टेंट की लापरवाही के चलते अटक गई थी। तब तत्कालीन मुख्य सचिव वीरा राणा ने इसके लिए चलाई गई विभागीय फाइल को लौटा दिया था। बाद में केंद्र सरकार की संस्था निकासी के जरिए यह काम कराया गया। इसी तरह लोक निर्माण विभाग के प्रदेश भर में हाईवे, आरओबी, फ्लाईओवर के निर्माण के लिए की गई टेंडर प्रक्रिया में भी कंसल्टेंट फर्मों पर सवाल उठते रहे हैं। कुछ महीने पहले ऐसी ही एक कंसल्टेंट कंपनी को लेकर शिकायत लोकायुक्त और ईओडब्लू तक पहुंची थीं। एमपीएचइडीबी, यूआईडी, इलेक्ट्रॉनिक्स विकास निगम सहित दर्जनभर से ज्यादा विभाग और उनके संस्थानों में अकसर आईटी कंसल्टेंसी की मनमानी के चलते टेंडर प्रक्रिया विवादों में घिरी रहती है।
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विभागों में तैनात कंसल्टेंटों पर सरकार की वक्रदृष्टि
दरअसल प्रदेश के विभागों में अधिकारियों और रसूखदारों के इशारे पर उनकी नजदीकी फर्म और लोगों को आईटी कंसलटेंट का काम दिया गया है। उन्हें विभागों द्वारा ग्रेड 1 स्तर के अफसरों की तरह डेढ़ लाख या उससे ज्यादा वेतन मिलता है। वहीं विभागों में पकड़ बनाकर अब ज्यादातर कंसल्टेंट मंत्रालय, संचालनालयों में उपसचिव स्तर के अफसरों की तरह कक्ष और वाहन भी आवंटित कर चुके हैं। यानी आउटसोर्स कंपनियों के ये कंसल्टेंट सरकार में प्रशासनिक अफसरों की तरह सुविधाओं का उपयोग कर रहे हैं।
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टेंडरों में कई बार कंसल्टेंटों की भूमिका
पूर्व में निकाले गए टेंडरों में कई बार कंसल्टेंटों की भूमिका विभाग का नुकसान बताने से ज्यादा ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने की ज्यादा रही है। एमपीएचइडीबी के कई प्रोजेक्ट्स में कंसल्टेंट्स की भूमिका अकसर विवादित रही है। इससे विभाग की छवि धूमिल हो रही है। हाल ही में सीएम डॉ.मोहन यादव के सामने ही एक वरिष्ठ अधिकारी ने कंसल्टेंट की मनमानी नियुक्ति पर आपत्ति दर्ज कराई थी। उन्होंने आउटसोर्स कंपनियों से एक साल के अनुबंध के बावजूद प्रदेश में पांच से आठ साल से विभागों में काम कर कंसल्टेंट्स का हवाला भी दिया था। पिछले महीनों में सरकार तक कंसल्टेंट्स की कारस्तानी की शिकायतें पहुंच रही थीं। जिसके बाद अब सरकार की वक्र दृष्टि न केवल कंसल्टेंट्स बल्कि उनकी नियुक्ति की प्रक्रिया पर भी पड़ गई है।