शनिवार 17 अगस्त को एक्टिंग चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस राजमोहन सिंह की युगलपीठ में सुनवाई के दौरान जब हाई कोर्ट ने आरक्षक पर की गई कार्यवाही के बारे में जानना चाहा तो शासन की ओर से अधिवक्ता ने बताया कि उसका एक इंक्रीमेंट रोक दिया गया है। जिस पर हाई कोर्ट ने कहा कि यदि इस तरह का जुर्म कोई आम इंसान करता है तो क्या उसे इतनी सजा मिलती। पुलिस विभाग के द्वारा की गई जांच को हाईकोर्ट ने सवाल खड़ा करते हुए जांच रिपोर्ट मंगाई है और कोर्ट ने यह टिप्पणी की है कि इसमें यह नजर आ रहा है कि पुलिस विभाग ने आरोपी को 100% मदद की है।
आरक्षक स्टेट कैडर में आता है या जिला केडर में इसका जवाब देने के लिए शासन की ओर से अधिवक्ता ने कोर्ट से वक्त मांगा है। साथ ही यह भी बताया है कि आरक्षक के विरुद्ध कार्यवाही पूरी होने के बाद उस पर रिव्यू के साथ फ्रेश इंक्वारी की जा रही है। हाई कोर्ट ने इसके बाद मामले की अगली सुनवाई 29 अगस्त को तय करते हुए आरक्षक के विरुद्ध की गई जांच की पूरी रिपोर्ट भी कोर्ट के समक्ष पेश करने के आदेश दिए हैं।
महिला डीएसपी को ड्राइवर ने किया था ब्लैकमेल
लगभग 3 साल पहले भोपाल से एक मामला सामने आया था। जिसमें भोपाल पुलिस में पदस्थ आरक्षक भूपेंद्र सिंह ने पहले महिला डीएसपी और हेडक्वार्टर एसपी रामजी श्रीवास्तव पर मारपीट का आरोप लगाया था उसके बाद इस मामले में यह खुलासा हुआ कि आरोपी आरक्षक महिला डीएसपी के ड्राइवर का कार्य कर रहा था और उसने महिला डीएसपी के बाथरूम में एक हिडन कैमरा फिट कर दिया था। इसकी भनक जैसे ही महिला डीएसपी को लगी तो आरक्षक फरार भी हो गया था। इसके बाद महिला अधिकारी के द्वारा आरोपी आरक्षक भूपेंद्र सिंह अहीरवाल के खिलाफ मामला दर्ज करवाया गया था। महिला अधिकारी ने यह भी आरोप लगाए थे कि इसके बाद आरक्षक ने उन्हें वीडियो वायरल करने की धमकी देते हुए ब्लैकमेल भी किया था। पर इस मामले में भी पुलिस विभाग के द्वारा ऐसी कार्यवाही की गई जिससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि आम इंसान की शिकायत के बाद पुलिस विभाग अपने कर्मियों पर क्या कार्रवाई करता होगा।
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ट्रांसफर के खिलाफ लगाई थी याचिका
आरोपी आरक्षक को पहले इस मामले में निलंबित कर दिया गया था। जिसके खिलाफ उसने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी और पुलिस विभाग के द्वारा बिना किसी जांच के उसे निलंबित किए जाने के फैसले पर जबलपुर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी। इसके बाद पुलिस विभाग के द्वारा आरक्षक पर जांच शुरू की गई और सजा के तौर पर सिर्फ एक वेतन वृद्धि रोक दी गई। अब आरक्षक का तबादला भोपाल से सीधी कर दिया गया। इसी तबादले के विरोध में आरक्षक ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी लेकिन जस्टिस विवेक जैन ने याचिका खारिज कर दी थी। अब पिछले फैसले के खिलाफ आरक्षक ने रिट अपील दायर की थी। इस मामले में सुनवाई के दौरान कोर्ट के सामने यह आया कि आरोपी के खिलाफ की गई विभागीय जांच में विभाग उसे पूरी-पूरी सहायता कर रहा है।
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