वन विभाग उस ट्रेन को 'जब्त' करने पर विचार कर रहा है, जो मिडघाट-बुधनी रेलवे ट्रैक पर तीन बाघ शावकों की मौत का कारण बनी। यह ट्रेन रातापानी वन्यजीव अभयारण्य से होकर गुजरती है। इसकी चपेट में आकर तीन बाघ शावक मारे गए थे। इनमें से एक शावक मौके पर ही मर गया, जबकि अन्य दो शावकों ने रेस्क्यू के लगभग 15 दिन बाद दम तोड़ दिया।
उच्च अधिकारियों पर दबाव
वाइल्ड लाइफ कार्यकर्ता प्रदेश के वन अधिकारियों पर दबाव बना रहे हैं कि वे असम सरकार के फैसले का अनुसरण करते हुए रेलवे के खिलाफ कार्रवाई करें। बता दें कि असम में अक्टूबर 2020 में एक हाथी और उसके बच्चे की मौत के बाद रेलवे के इंजन को 'जब्त' कर लिया गया था।
टाला जा सकता था हादसा
वन अधिकारियों का कहना है कि यह हादसा रोका जा सकता था। तीनों शावक 14 जुलाई की रात को ट्रेन की चपेट में आ गए, जब वे अपनी मां के पीछे चल रहे थे। अधिकारियों के अनुसार पटरियां जंगल से गुजरती हैं और हमेशा वन भूमि पर बनी रहेंगी। ऐसे में वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए रेलवे को पर्यावरण मंजूरी की शर्तों का पालन करना चाहिए।
पहले भी हुए हैं हादसे
सीहोर और रायसेन के बरखेड़ा और बुधनी के बीच 20 किलोमीटर लंबे रेलवे खंड पर अब तक तीन शावकों सहित आठ बाघों की मौत हो चुकी है। 2015 के बाद से ट्रेन दुर्घटनाओं में 14 तेंदुए और एक भालू भी मारा जा चुका है।
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत कार्रवाई
वन विभाग के एक डिप्टी रेंजर ने कहा- जैसे हाथी, बाघ भी वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत अनुसूची-1 में आते हैं। ट्रेन पायलट अक्सर इस मार्ग पर 20 किमी प्रति घंटे की निर्धारित गति सीमा को पार कर जाते हैं, जिससे बाकी बाघों को बचाने के लिए ओवरस्पीडिंग की जांच की जानी चाहिए।
समिति का गठन
वाइल्ड लाइफ कार्यकर्ता अजय दुबे ने लोको पायलटों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने की मांग की है। वन विभाग ने पश्चिम मध्य रेलवे के मंडल रेल प्रबंधक को पत्र लिखकर जांच का आग्रह किया है कि बरखेड़ा और बुधनी के बीच तीसरी रेलवे लाइन के निर्माण की शर्तों का पालन हो रहा है या नहीं। इसके साथ ही वन विभाग ने अनुपालन की निगरानी के लिए एक समिति भी गठित की है।
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