भोपाल के कोलार निवासी दत्तु सोनवाने ने अगस्त 2022 में नर्मदा नदी में डूबते बच्चे को बचाने के प्रयास में अपनी जान गंवा दी। अब उनका यही साहसी और मानवीय कदम इंश्योरेंस कंपनी के रवैये की वजह से विवाद बन गया। दरअसल बीमा कंपनी यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस से दत्तु सोनवाने की पत्नी ने बीमा क्लेम मांगा। जिसे कंपनी ने देने से इनकार कर दिया। कंपनी ने सवाल उठाया—"तैरना नहीं आता था तो नदी में क्यों कूदे?"
बीमा कंपनी बोली- नियम तोड़ा, इसलिए पैसा नहीं मिलेगा
यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस ने दत्तु सोनवाने की पत्नी द्वारा दायर क्लेम को इस आधार पर खारिज कर दिया कि मृतक को तैरना नहीं आता था और फिर भी उन्होंने जानबूझकर खतरा उठाया। कंपनी का कहना था कि यह बीमा पॉलिसी की शर्तों का उल्लंघन है और यह जानबूझकर किया गया खतरनाक कदम माना जाएगा। इसके बाद कंपनी के खिलाफ उनकी पत्नी ने कंज्यूमर कोर्ट में शिकायत की।
कंज्यूमर फोरन बोला ये लापरवाही नहीं मानवता है
भोपाल जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग ने बीमा कंपनी के तर्क को पूरी तरह खारिज करते हुए कहा कि यह कोई मस्ती या नहाने की स्थिति नहीं थी। दत्तु सोनवाने ने एक बच्चे की जान बचाने के लिए यह कदम उठाया था। यह एक आपातकालीन मानवीय स्थिति थी, न कि कोई लापरवाह वाली हरकत।
कोर्ट का आदेश- बीमा कंपनी 10 लाख के साथ ब्याज भी दे
आयोग ने बीमा कंपनी को निर्देश दिया कि वह मृतक की पत्नी को इंश्योरेंस की राशि 10 लाख के साथ ब्याज और मानसिक पीड़ा व मुकदमा खर्च हेतु अतिरिक्त 20 हजार रुपए का भुगतान करे। आयोग के इस फैसले को साहसिक और मानवीय समझदारी का उदाहरण माना जा रहा है।
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वकीलों की दलील- बीमा कंपनी का तर्क अमानवीय
परिवादी की अधिवक्ता रचना सिंह चौहान ने तर्क दिया कि दत्तु सोनवाने ने अपने बेटे और भतीजे को डूबते देख जान की परवाह किए बिना उन्हें बचाने के लिए छलांग लगाई। वहीं अधिवक्ता ज्ञानेंद्र सिंह ने इसे स्वाभाविक मानवीय प्रतिक्रिया करार देते हुए बीमा कंपनी के रवैये को अनुचित और अमानवीय बताया।
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5 पॉइंट्स में समझिए पूरा मामला
घटना: अगस्त 2022 में दत्तु सोनवाने ने आंवली घाट पर एक डूबते बच्चे को बचाने के लिए नर्मदा नदी में छलांग लगाई और खुद डूब गए।
बीमा कंपनी का तर्क: यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस ने तैरना न आने को “शर्तों का उल्लंघन” बताया और भुगतान से इनकार कर दिया।
आयोग की प्रतिक्रिया: जिला उपभोक्ता आयोग ने इसे आपातकालीन मानवीय प्रयास मानते हुए बीमा कंपनी का तर्क खारिज कर दिया।
फैसला: बीमा कंपनी को मृतक की पत्नी को 10 लाख, ब्याज सहित और 20 हजार मानसिक पीड़ा के लिए देने का आदेश दिया गया।
संदेश: संकट में उठाया गया साहसी कदम बीमा दावे को खारिज करने का कारण नहीं हो सकता—यह इंसानियत की मिसाल है।
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