मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने आदेश की अवहेलना करने वाली CEO को करारा सबक सिखाया है। जनपद पंचायत बिजावर, जिला छतरपुर की मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ) अंजना नागर पर हाईकोर्ट ने 10 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है। इसे उन्हें अपनी जेब से याचिकाकर्ता को चुकाना होगा। इस जुर्माने की भरपाई सरकारी खजाने से नहीं की जा सकेगी। यही नहीं, कोर्ट की सख्ती के बाद सीईओ को खुद अदालत में पेश होकर माफी भी मांगनी पड़ी।
“कोर्ट के आदेश मजाक नहीं हैं” - HC की दो टूक
इस मामले में याचिकर्ता की ओर से पैरवी कर रहीं अधिवक्ता अमृत कौर ने बताया कि यह मामला सीता तेजस्वनी स्व सहायता समूह से जुड़ा है, जिसे पहले मिड-डे मील आपूर्ति के कार्य से हटाया गया था। समूह ने इस फैसले के खिलाफ 2020 में हाईकोर्ट की शरण ली थी और W.P. No. 4517/2020 में कोर्ट ने आदेश रद्द करते हुए निर्देश दिए थे कि यदि समूह का स्पष्टीकरण अस्वीकार किया जाए, तो स्पष्ट और सही आदेश पारित किया जाए। लेकिन सीईओ अंजना नागर ने न तो किसी स्पष्टीकरण पर विचार किया, न ही कोई तर्क प्रस्तुत किया बल्कि पुराने आदेश की हूबहू नकल करते हुए दोबारा वही निर्णय पारित कर दिया। यह देखकर कोर्ट ने अर्चना नागर को तलब किया और फटकार लगाई कि "क्या प्रशासनिक आदेशों में विवेक की कोई जगह नहीं रह गई है?"
यह खबरें भी पढ़ें...
महिला बाउंसर बोलीं- बीड़ी के धुएं और गालियों के बीच करना पड़ रहा काम
उज्जैन में लुटेरी दुल्हन की साजिश, शादी के तीन दिन बाद दूल्हे के परिवार ने लिया पुलिस का सहारा
कोर्ट में पेश होकर सीईओ ने मांगी माफी
इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अमृत कौर ने पैरवी की। अधिवक्ता की ओर से कोर्ट में दी गई दलीलों और तथ्यों के आधार पर कोर्ट ने माना कि जनपद सीईओ अंजना नागर जानकर कोर्ट की अवमानना कर रही है और उन्हें कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया। कोर्ट में पेश होकर सीईओ अंजना नागर ने लिखित हलफनामा सौंपा और कहा कि "मैं बिना शर्त माफी मांगती हूं, मेरा कभी भी न्यायालय के आदेशों का अनादर करने का इरादा नहीं था।" इसके बावजूद कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि यह मामला महज "अनजाने में हुई गलती" नहीं, बल्कि न्यायालय की प्रतिष्ठा और विधिक प्रक्रिया का उल्लंघन है।
जुर्माना भरो और दोबारा ना हो ऐसी गलती
जस्टिस विशाल मिश्रा की एकलपीठ ने दो टूक आदेश दिया कि अधिकारी को 10 हजार रूपये का हर्जाना सात दिन में भुगतान करना होगा, और यह राशि किसी भी सूरत में सार्वजनिक या सरकारी मद से नहीं दी जा सकती बल्कि यह रकम अधिकारी को अपने जेब से देनी होगी। साथ ही उन्हें भविष्य में कोर्ट के मामलों में अधिक सतर्क रहने की नसीहत भी दी गई।
यह खबरें भी पढ़ें...
बीएसएफ से आईपीएस बने यशपाल सिंह पर उठे सवाल, केंद्र सरकार ने मांगी रिपोर्ट
इंदौर कलेक्टर का बड़ा आदेश, डीम्ड डायवर्सन ही मानेंगे, बैंक-सरकारी विभाग अलग से आदेश नहीं मांगेगे
मिड-डे मील का ठेका फिर से छीनने की कोशिश की गई थी
याचिकाकर्ता सीता तेजस्वनी समूह को 2017 में पिपट गांव के प्राथमिक विद्यालयों में मिड-डे मील वितरण का जिम्मा मिला था। 2019 में भोजन की गुणवत्ता पर सवाल उठाते हुए उन्हें नोटिस भेजा गया, जिसका समूह ने तत्काल उत्तर भी दे दिया। फिर भी 2020 में उनका काम रद्द कर दिया गया, जिस पर हाईकोर्ट ने रोक लगाई थी और बाद में आदेश भी रद्द कर दिया था। लेकिन इसी साल मई में सीईओ ने पुराने आदेश को दोहराते हुए बिना कोई तर्क या न्यायालय के निर्देशों का पालन किए ही यह काम दो अन्य समूहों को दे दिया।
कोर्ट के आदेश की अवहेलना नहीं चलेगी
हाईकोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि यह याचिकाकर्ता के साथ अन्यायपूर्ण और जबरन मुकदमेबाज़ी का मामला है, जो पहले ही कोर्ट से न्याय पा चुका था। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अधिकारी को 30 दिनों के भीतर पूर्व आदेशों के अनुसार विचार कर नया आदेश पारित करना होगा।
अगर आपको ये खबर अच्छी लगी हो तो 👉 दूसरे ग्रुप्स, 🤝दोस्तों, परिवारजनों के साथ शेयर करें📢🔃
🤝💬👩👦👨👩👧👧