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भारतीय जनता पार्टी। Photograph: (BHOPAL)
BHOPAL. बीजेपी सालभर चुनावी मोड में रहती है। बीजेपी से जीतना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। बीजेपी है भैया, वो कुछ भी कर सकती है...। राजनीति में भारतीय जनता पार्टी को इस तरह की संज्ञाएं, सर्वनाम और उपमाएं क्यों दी जाती हैं...? क्या आपको इस बारे में पता है? कभी इसके बारे में सोचा आपने। कभी पीछे की ठोस वजह किसी से जानी आपने? आपमें से ज्यादातर का जवाब न ही होगा।
लेकिन बीजेपी की रणनीति गूढ़ है। वहां कार्यकर्ता पहले होता है। ये हम नहीं कह रहे, बीजेपी को जानने और समझने वाले तमाम विशेषज्ञ कहते हैं। बीजेपी क्यों विश्व का सबसे बड़ा राजनीतिक संगठन है? उसे कैडर बेस पार्टी क्योंकि कहा जाता है? इन्हीं सब मुद्दों को लेकर 'द सूत्र' ने गहराई से पड़ताल की, जिसमें तमाम जानकारियां सामने आईं।
बीजेपी में बढ़ते क्रम में संगठन का ढांचा
अमूमन राजनीति में होता यूं है कि पहले पार्टियां राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाती हैं, फिर ये अपने हिसाब से प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर देते हैं और प्रदेश में फिर पूरा काम प्रदेश अध्यक्ष ही देखते हैं। उन्हीं के हिसाब से ऊपर से नीचे तक संगठन आकार लेता है। यानी की पूरा संगठन घटते क्रम में सेट होता है। इसके उलट बीजेपी में बढ़ते क्रम की परम्परा है। मतलब, पहले कार्यकर्ताओं की पूछपरख होती है और फिर इन्हीं में से नेता बनते हैं।
समझिए... क्यों कैडर बेस पार्टी है बीजेपी
संगठन कौशल बीजेपी की ताकत है। यहां कार्यकर्ता को सर्वोपरि न केवल कहा जाता है, बल्कि बीजेपी इस पर अमल भी करती है। जैसे चुनाव में सबसे छोटी इकाई बूथ होती है। बीजेपी ने इसी हिसाब से अपना संगठन खड़ा किया है। सबसे पहले बूथ समितियों के चुनाव होते हैं। मौजूदा बूथ समिति के सदस्य मिलकर अपना नया बूथ अध्यक्ष चुनते हैं। इसके बाद नंबर आता है वार्ड अध्यक्ष का। बूथ समितियों के अध्यक्ष वार्ड अध्यक्ष को चुनते हैं।
कोर टीम की भी अहम भूमिका
बूथ अध्यक्ष और वार्ड अध्यक्षों के चुनाव के बाद नंबर आता है मंडल अध्यक्षों का। तो इन्हें बूथ अध्यक्ष, वार्ड अध्यक्ष, स्थानीय नेता और जनप्रतिनिधियों की आपसी सहमति और सामंजस्य से चुना जाता है। मंडल अध्यक्ष मिलकर नगर अध्यक्ष का चुनाव करते हैं। इसमें भी पार्टी के तमाम बड़े नेताओं, विधायकों और सांसदों की राय ली जाती है। चर्चा होती है और फिर संगठन कौशल में माहिर नेता को नगर अध्यक्ष बनाया जाता है। नगर अध्यक्ष के चुनाव में बीजेपी की कोर टीम की भूमिका भी अहम होती है।
जिला अध्यक्ष का चुनाव सबसे टफ
इसके बाद नंबर आता है जिला अध्यक्ष का। मौजूदा दौर में बीजेपी का जिला अध्यक्ष बनना किसी फर्स्ट क्लास ऑफिसर बनने से कम नहीं है। सांसद, विधायक, नगर अध्यक्ष, मंडल अध्यक्ष और तमाम बड़े नेताओं के बीच पहले जिला अध्यक्ष के लिए रायशुमारी होती है। जैसे चुनाव के समय टिकटों का निर्धारण होता है, कुछ उसी तरह की रणनीति अपनाई जाती है। हर जिले से तीन नामों का पैनल तैयार होता है और फिर सबके एक राय होने के बाद जिला अध्यक्ष चुना जाता है। पूरी प्रक्रिया बीजेपी के संविधान के हिसाब से होती है।
प्रदेश अध्यक्ष बनना आसान नहीं
अंत में प्रदेश स्तर पर स्टेट प्रेसीडेंट का चुनाव होता है। बीजेपी में प्रदेश अध्यक्ष बनने की प्रक्रिया बड़ी जटिल होती है। इसमें नीचे से लेकर शीर्ष नेतृत्व तक का सीधा दखल होता है। मतलब, मुख्यमंत्री से लेकर तमाम मंत्रियों, केंद्रीय मंत्रियों, सांसदों से लेकर बड़े लीडर्स से रायशुमारी की जाती है और फिर नामों का पैनल दिल्ली भेजा जाता है, जहां से राष्ट्रीय नेतृत्व की मुहर के बाद किसी तीन में से कोई एक नाम फाइनल होता है। इसके लिए बीजेपी ने कई तरह के पैरामीटर्स तय किए हैं।
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फीडबैक सिस्टम बेहतरीन
राजनीति के जानकार कहते हैं कि बीजेपी का फीडबैक सिस्टम बेहतरीन है। जमीनी फीडबैक के आधार पर पार्टी अंडर करंट तक को भांप लेती है। शक्ति केंद्र जैसा नया कॉन्सेप्ट पार्टी को और ज्यादा धार देता है। बीते एक साल में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव व लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने संगठन के बूते ही बड़ी जीत हासिल की है। इसमें हर इकाई की अपनी जिम्मेदारी होती है और फिर कार्यकर्ता उसे पूरी शिद्दत के साथ पूरी करते हैं।
जिला अध्यक्षों के लिए रायशुमारी पूरी
हाल के दिनों में मध्य प्रदेश में बीजेपी के संगठनात्मक चुनाव चल रहे हैं। नीचे बूथ समितियों से लेकर मामला अब जिला अध्यक्ष पर आ पहुंचा है। इसके लिए जिलों में रायशुमारी पूरी कर ली गई है। भावी जिला अध्यक्षों के नामों का पैनल तैयार हो गया है। 29 दिसंबर को दिल्ली में बड़ी बैठक रखी गई है। प्रदेश से इसमें अध्यक्ष वीडी शर्मा, संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा और चुनाव प्रभारी विवेक शेजवलकर शामिल होंगे। वहां जिला अध्यक्षों पर मुहर लग सकती है। यानी जनवरी 2025 के पहले हफ्ते में जिला अध्यक्षों के नामों का ऐलान हो जाएगा।
वॉट्सऐप प्रमुख का भी नया कॉन्सेप्ट
पार्टी ने पहले जिलाध्यक्षों के लिए 60 साल तक की उम्र सीमा तय की थी, इसे भी अब घटाकर 55 वर्ष कर दिया गया है। बीजेपी ने संगठन को डिजिटल और टेक-फ्रेंडली बनाने की दिशा में भी बड़े कदम उठाए हैं। संगठन ऐप के जरिए बूथ समितियों से लेकर प्रदेश स्तर तक की एक्टिविटी डिजिटली रिकॉर्ड की जा रही हैं। बैठकें, प्रवास और अन्य कार्यक्रम सीधे संगठन ऐप पर अपडेट हो रहे हैं। इस नई तकनीकी संरचना को देखते हुए पार्टी ने यह तय किया है कि मंडल और जिला अध्यक्ष तकनीकी रूप से दक्ष होने चाहिए। इसके साथ ही वॉट्सऐप प्रमुख जैसे नए पदों का गठन किया जा रहा है, ताकि डिजिटल संचार को मजबूत बनाया जा सके।
पुराने अध्यक्षों को मौका मिल सकता है
बीजेपी के संगठनात्मक रूप से 60 जिले हैं। इनमें से 12 जिलों में ऐसे अध्यक्ष हैं, जिनकी नियुक्ति को अभी एक साल भी पूरा नहीं हुआ है। इन जिलों में सर्वसम्मति बनने पर वर्तमान अध्यक्षों को दोबारा मौका दिया जा सकता है। इधर, कुछ मंत्री भी अपने नेताओं को जिला अध्यक्ष बनाने के लिए जोड़-तोड़ कर रहे हैं। इनमें रायसेन जिले का नाम तेजी से उभरा है। यहां जिला अध्यक्ष को लेकर खींचतान चल रही है। ऐसे ही कुछ और जिलों की भी खबर है, जहां पेंच फंसा हुआ है। इनमें भोपाल से लेकर बालाघाट तक के जिले शामिल हैं।
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