कल रावण जला दिया हमने। ऐसा लगा मानो सभी बुराइयों को आग के हवाले कर दिया गया, लेकिन जरा सोचिए, यदि आज के जमाने में रावण राजनीति में होता तो क्या होता? पूरी रात मैं यही सोचता रहा...। यदि रावण आज होता तो वो दस सिर लेकर विधानसभा में बैठा होता, जहां हर सिर का एक अलग बयान होता। एक सिर जनता से विकास के वादे करता। दूसरा सिर वादा खिलाफी की प्लानिंग में जुटा होता। तीसरा सिर मीडिया के सामने विनम्रता की मूर्ति बनता, जबकि चौथा सिर विपक्ष को भ्रष्टाचार का सबूत दिखाने की धमकी देता। बाकी के छह सिर तो साजिशों की राजनीति में इतने उलझ जाते कि जनता को अपना चेहरा दिखाने का समय ही न मिलता।
विजयादशमी की रात आते-आते रावण के पुतले का दहन तो होता पर नेता इस जश्न को कुछ और ही नाम देते। वो कहते, "रावण तो बस प्रतीक है, असली लड़ाई अब विकास के लिए है!" लेकिन भीतर ही भीतर सब जानते हैं कि राजनीति में रावण कभी मरता ही नहीं, वो बस चेहरा बदलता है।आज भी सुर्खियां नेताओं की वादा-खिलाफी से भरी हैं। कभी अतिथि शिक्षकों के साथ वादा-खिलाफी तो कभी जनता से अप्रत्याशित ठगी। हर दिन बेटियों से बेतहाशा जुल्म! विपक्ष हो या पक्ष, सब अपनी रोटियां सेक रहे हैं। किसी को ज्यादा परवाह नहीं है।
खैर, अहंकारी रावण के मर्दन के बाद अब सकल ब्राह्मण प्रभु श्रीराम आगमन की खुशियों में डूब गया है। घर-घर दीप जल उठे हैं। मेरी भी यही अरज है... कि हे राम! नेतानगरी को सद्बुद्धि दीजिए और जन जन का कल्याण कीजिए।
चलिए, ये अब जल्दी से नीचे उतर आईए और बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए।
पंडित जी को पुचकार और फटकार का डोज...
सत्ताधारी दल के विधायकजी पुलिस से नाराज हुए और बैठ गए धरने पर। उनका गुस्सा यही नहीं रुका। मीडिया के सामने तुरत- फुरत इस्तीफे की चिट्ठी तक लिख डाली। रात में जब यह खबर भोपाल आई तो भाईसाहब नाराज हुए। सुबह तत्काल विधायकजी को तलब किया गया। उन्हें पहले फटकार लगाई गई, फिर पुचकारा। कुल मिलाकर रात में लिखा गया इस्तीफा सुबह डस्टबिन की शोभा बढ़ाने लगा और विधायकजी फिर पार्टी का झंडा बुलंद करने लगे। इन सबके बीच जो सबसे ज्यादा चर्चित रहा, वो दूसरे पंडितजी की सोशल मीडिया पर लिखी चिट्ठी रही। आपको बता दें कि ये पंडितजी पिछले दिनों से सरकार की नाक में उंगली डाल रहे हैं।
पूर्व मंत्री कर रहे थाली में छेद
डॉक्टर साहब की सरकार को घेरने में विपक्ष जितनी मेहनत नहीं कर रहा, उससे ज्यादा प्रयास तो पार्टी के वरिष्ठ नेता ही कर रहे हैं। ताजा मामला नर्मदापुरम संभाग से सामने आया है। यहां के एक पूर्व मंत्रीजी ने अपनी सरकार को कठघरे में खड़ा करने की भारी- भरकम प्लानिंग की थी, पर वे सफल नहीं हो पाए। दरअसल, नेताजी ने पर्दे के पीछे रहकर किसानों के आंदोलन को बड़ा रूप देने का प्रयास किया, जिसे सरकार ने समय रहते संभाल लिया। खुफिया एजेंसी और स्थानीय प्रशासन ने जब इस आंदोलन की छानबीन की तो पता चला कि इस आंदोलन के असली हीरो तो पूर्व मंत्री हैं, हालांकि डॉक्टर साहब तक इनकी रिपोर्ट पहुंच गई है।
ठाकुर साहब को मिला खुला मैदान
बुंदेलखंड जिले के संभागीय मुख्यालय पर फिलवक्त ठाकुर साहब की तूती बोल रही है। एक समय ऐसा भी था जब संभागीय मुख्यालय दिग्गज नेताओं का अखाड़ा बन गया था। कलेक्टर- एसपी, आईजी- कमिश्नर की नींंद उड़ी रहती थी। इसके पीछे वजह यह थी कि एक ही जिले में तीन मंत्री थे और तीनों आपस में एक- दूसरे की टांग खींचते रहते थे। हालात बदले तो दो मंत्री घर बैठा दिए गए। सिर्फ ठाकुर साहब अब मैदान में हैं। अब क्या है, वही हो रहा है जो ठाकुर साहब चाहते हैं। उधर, दोनों पूर्व मंत्री छोटी मोटी कोशिशों से यह बता रहे हैं कि 'अभी हम जिंदा हैं...' लेकिन उन्हें कौन समझाए कि आजकल जमाना तो जहां दम, वहां हम वाला है। सो भाई लोगों अच्छे समय का इंतजार करो या फिर अच्छा समय लाने का प्रयास। तब तक ठाकुर साहब से पंगा मत लेना नहीं तो दंगा तय है।
डिप्टी सीएम से नाराज प्रभारी मंत्री
सरल और सहज छवि वाले डिप्टी सीएम से एक महिला मंत्री खासी नाराज हैं। मंत्राणी ने अपनी बात संगठन से लेकर मुख्यमंत्री तक पहुंचा दी है। उनका कहना है कि डिप्टी सीएम उनके क्षेत्र में अधिकारों का कब्जा कर रहे हैं। मामला ये है कि हाल ही में डिप्टी सीएम ने विंध्य के एक जिले में विकास कार्यों को लेकर बड़ी बैठक ली, इसमें प्रभारी मंत्री को नहीं बुलाया गया। इस जिले की प्रभारी महिला मंत्री हैं और ये उनका कार्यक्षेत्र भी हैं, ऐसे में प्रभारी मंत्री का कहना है कि उनके क्षेत्र में विकास कार्य को लेकर बैठक है और उन्हें ही दूर रखा जा रहा है, सारा क्रेडिट डिप्टी सीएम अकेले लेना चाहते हैं क्या? मैडम के तीखे तेवर के बाद डिप्टी सीएम भी सहम गए हैं, उन्होंने प्रभारी मंत्री को न बुलाने के मामले में स्थानीय जिला प्रशासन के अफसरों पर नाराजगी भी जताई है।
चेलों को नए गुरु घंटाल की तलाश
हॉट सीट से मैडम क्या रुखसत हुईं, बेचारे चेले बेरोजगार हो गए। अब इन चेलों को नए गुरु घंटाल की तलाश है। दिल्ली से आए साहब की ग्वालियर, इंदौर और भोपाल में लिंक सिंक खोजी जा रही है। हालांकि अभी तक चेलों को सफलता नहीं मिल पाई है। उधर, मैडम के जाते ही उनके चहेते अफसर भी खासे परेशान हैं, क्योंकि मैडम ने जो कमिटमेंट किया था, वो जाते- जाते पूरा नहीं कर पाईं। ऐसे में हिसाब किताब भी आधा- अधूरा इधर उधर पड़ा हुआ है। यहीं मामला बिगड़ रहा है। मैडम का पुनर्वास भी अटक गया है।
हमें तो मामा ने ठग लिया भाईसाहब
ऐसे ही एक नेताजी से बात हो रही थी। वे एक समाज के बोर्ड के अध्यक्ष हैं। तीज- त्योहार की शुभकामनाएं देने के बाद नेताजी बोले- भाईसाहब क्या करें हम? कुछ समझ नहीं आ रहा। हमने पूछा क्यों क्या हुआ? बोले वे तपाक से बोले- मामा ने मानो हमें ठग लिया है। हमने चुनाव में खूब मेहनत की। एक साल पहले हमें बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया गया, लेकिन हासिल जीरो है। एक महीने पहले बमुश्किल सरकारी गाड़ी मिल पाई है। अपने खर्चे से सब काम कर रहे हैं। इससे अच्छा तो न बनाते कुछ... क्योंकि अब समाज की जिम्मेदारी ज्यादा हो गई और नतीफा सिफर ही है।
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