कहते हैं, बूढ़े शेर की दहाड़ तो केवल उसके सपनों में गूंजती है, हकीकत में तो नख-दंतहीन रह जाती है। आज के हमारे तीन किरदार मानो कुछ ऐसे ही हैं। एक सत्ता में हैं, दूसरे प्रशासन और तीसरे पुलिस में। उम्र के साथ, इनकी दहाड़ कम हो रही है। फिर भी वे जोर तो पूरा मार ही रहे हैं। कोई अपनी नाराजगी जताना चाहता है। किसी को ताउम्र पॉवर में रहने की चाह है। पुलिस वाला मामला तो और भी मजेदार है। मुखिया को पता ही नहीं चला और अफसर बदल गए। वे अब माथा पीटने के सिवाय कुछ नहीं कर सकते।
कुर्सी का खेल भी निराला ही होता है। इंदौर और भोपाल पुलिस कमिश्नरी के लिए मारामारी मची है। सियासतदान, अफसरान सब खेल में शामिल हैं। हर कोई अपने मोहरे आगे बढ़ाना चाहता है। मंत्रालय में अपर मुख्य सचिव स्तर के एक साहब का दरबार-ए-खास फिर चर्चा में है। विधायक मैडम की किरकिरी भयंकर हो रही है।
खैर, देश- प्रदेश में खबरें तो और भी हैं पर आप तो सीधे नीचे उतर आईए और बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए।
जब शेर बूढ़ा होने लगे तो दबदबा कम हो जाता है!
कहते हैं, शेर बूढ़ा होने लगे तो जंगल में उसका दबदबा कम होने लगता है। इस मामले को भी आप इसी से जोड़ सकते हैं। हुआ यूं कि मुखिया को पता ही नहीं लगा और लोकायुक्त के डीजी बदल गए। दरअसल, पीएचक्यू के आला अफसर सुबह इस बात पर माथापच्ची कर रहे थे कि आलोक रंजन डेपुटेशन के लिए रिलीव होंगे तो प्रोविजन शाखा का चार्ज किसे दिया जाए? मुखिया के फरमान पर एडमिन एडीजी तीन नामों का पैनल लेकर आए कि इनमें से किसी एक को प्रभार दे सकते हैं। इधर, मुखिया अपने अफसरों के साथ प्लान कर रहे थे, उधर तबादला लिस्ट में आखिरी वक्त पर दो सीनियर आईपीएस के नाम जुड़ गए। फिर क्या था... लिस्ट जारी हो गई। इसमें इंटेलिजेंस एडीजी जयदीप प्रसाद को लोकायुक्त डीजी और लोकायुक्त डीजी योगेश चौधरी को प्रोविजन शाखा का एडीजी बना दिया गया। अब पीएचक्यू में यह चर्चा आम है। जलने वाले तो कह रहे हैं कि ये मुखिया के रिटायरमेंट नजदीक आने का नतीजा है। पहले ही दबदबा कम होने लगा है।
पंडितजी की पहलवानी क्या पूरी हो गई?
राजनीति के अखाड़े में पांच दशक से सियासी पहलवानी कर रहे पंडितजी इन दिनों 'अपनों' से नाराज हैं। आचार-विचार को देखकर उनके चाहने वाले कहने लगे कि दादा अब 'संन्यास' की राह पर बढ़ चले हैं। हालिया घटनाक्रम ने इस तथ्य को और बल दिया। हुआ यूं कि दादा ने पहले डॉक्टर साहब का स्वागत किया। फिर कार्यक्रम में भी पहुंचे, लेकिन थोड़ी देर बाद ही निकल गए। इधर, डॉक्टर साहब उन्हें मंच से पुकारते रहे, पर पंडितजी का कहीं पता नहीं चला। बाद में ठाकुर साहब के साथ सामने आई उनकी एक तस्वीर ने राजनीतिक पंडितों को नया मसाला दे दिया। आपको बता दें कि पंडितजी और ठाकुर साहब के बीच पहले सियासी तलवारें खिंची रहती थीं। अब दोनों सत्ता से दूर हैं तो 'मौसेरे भाई' हो गए।
ताउम्र आईएएस बने रहना चाहते हैं साहब!
पद का मोह कहां कोई छोड़ पाता है। बात चाहे सियासत की हो या अफसरशाही की। पिछले दिनों एक साहब ने रिटायर होने के बाद भी अपनी गैस गोदाम की गाड़ियों पर फोटो और नाम छपवा दिया था तो अब अपने पदनाम की वजह एक प्रमोटी आईएएस अफसर खासे चर्चा में हैं। दरअसल, इन साहब को रिटायरमेंट के बाद एक संस्थान में सीईओ के पद पर बैठाया गया है। बस फिर क्या, साहब एक बार फिर अपने पॉवर में आ गए हैं। वे संस्थान की ओर से जब भी कोई चिट्ठी पत्री भेजते हैं तो अपने नाम के आगे आईएएस लिख देते हैं। ऐसे में जिले में पदस्थ अधिकारी इन साहब की बचकानी हरकत पर हंस पड़ते हैं। अब लोग कहने लगे हैं कि साहब रिटायर हो गए हैं, पर उनके आईएएस बने रहने का मोह नहीं छूट रहा। लगता है कि साहब ताउम्र आईएएस बने रहना चाहते हैं।
कुर्सी का खेल निराला...
कुर्सी का खेल निराला ही होता है। अब इसी मामले को देख लीजिए। इंदौर और भोपाल पुलिस कमिश्नरी के लिए मारामारी जैसे हालात हैं। जिसका भी नाम चर्चा में आता है तो दूसरा खेमा शिकवा शिकायतें करने पर उतारू हो जाता है। हालात ये हैं कि पहले इंदौर के लिए 'सख्त सिंह' का नाम शुरू से फाइनल माना जा रहा था। अब स्थानीय नेता उनके विरोध में आ गए हैं। इसके पीछे कारण यह है कि सख्त सिंह इंदौर कमिश्नर बने तो कई लोगों की नेतागिरी और दलाली खतरे में आ जाएगी। इसी तरह भोपाल का हाल है। यहां हर रोज दो नाम जुड़ रहे हैं, दो कट रहे हैं। स्थिति ऐसी है कि अब कोई भी दावा नहीं करना चाहता। पांचवीं मंजिल वाले साहब पूरा माजरा शांति से देख रहे हैं। माना जा रहा है कि 30 सितंबर को चौथी मंजिल का चार्ज लेने के बाद वे मुख्यमंत्री को भरोसे में लेने के बाद ही अपने पत्ते खोलेंगे।
साहब का दरबार-ए-खास!
मंत्रालय में अपर मुख्य सचिव स्तर के एक साहब का दरबार-ए-खास काफी चर्चा में रहता है। वे लोगों के काम करें अथवा ना करें, पर आवभगत में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते। यही वजह है कि साहब के कैबिन में प्रदेशभर के लोगों का आना-जाना लगा रहता है। साहब से मिलने के बाद लोग इतने प्रसन्न हो जाते हैं कि बस काम हो ही गया, पर यह आधी हकीकत और आधा फंसाना ही होता है। उनका आवेदन रद्दी की टोकरी की शोभा बढ़ा रहा होता है। जो साहब को समझ चुके हैं, वे दूर से ही राम-राम करके निकल लेते हैं, क्योंकि साहब के बारे में ये ख्याति फैल चुकी है कि वे न तो किसी काम करते हैं और न ही बिगाड़ते हैं।
मैडम की किरकिरी... क्या विधायकी भी जाएगी?
हाथ का साथ छोड़कर सत्तारूढ़ का दामन थामने वालीं एमएलए मैडम इन दिनों टेंशन में हैं। वे किसी से बात ही नहीं करना चाहती। हर कोई उनसे पार्टी के बारे में सवाल जो पूछता है। अब तो मैडम दलबदल कानून में उलझती नजर आ रही हैं। विधानसभा सचिवालय ने भी उनसे पूछ लिया है कि वे किस पार्टी में हैं। उन्हें कांग्रेस का माना जाए या बीजेपी का। सचिवालय उन्हें दो चिट्ठी भेज चुका है, पर मैडम की तरफ से कोई जवाब नहीं आया है। कुल मिलाकर मैडम अब घर की रहीं, न घाट की। ना तो उनकी जिला वाली मांग पूरी हुई और ना ही वे बीजेपी को पूरी तरह अपना पाईं। क्षेत्र में किरकिरी हो रही है सो अलग। देखने वाली बात होगी कि सियासी शतरंज में मैडम की अगली चाल क्या होगी?
सुनो साहब! काम तो आपको करना पड़ेगा...
डॉक्टर साहब अपनी सरकार में सब सौ टंच चाहते हैं। यही वजह है कि सरकार ने 9 महीने में 21 आईएएस को किनारे कर दिया है। इन्हें कमजोर परफॉर्मेंस और संवेदनशील मसलों पर असंवेदनशीलता बरतने पर साइड लाइन किया गया है। इन आईएएस में कुछ तो ऐसे हैं, जिन्हें सरकार ने जिलों में कलेक्टर जैसी बड़ी भूमिका दी थी, पर चंद दिनों में उनकी कलेक्टरी भी छिन गई। खास यह है कि इन अधिकारियों को लूपलाइन में पटका गया है। भैया! हमारे सूत्र तो बताते हैं कि कुछ और भी ऐसे अफसर हैं, जिनके काम का आकलन किया जा रहा है। डॉक्टर साहब के पैमाने पर ये फिट नहीं बैठे तो नए मुख्य सचिव की ताजपोशी के साथ ही इनकी विदाई हो जाएगी।
कौन होगा अफसरों का सरताज?
सूबे की मौजूदा मुख्य सचिव वीरा राणा का कार्यकाल 30 सितंबर को पूरा हो रहा है। मतलब अब चंद घंटे बाकी हैं। पक्की खबर है कि उनका कार्यकाल फिर बढ़ाए जाने की संभावना शून्य है। पहले अफसरशाही में बड़े बदलाव की चर्चा चली थी, लेकिन फिर ज्यों की त्यों वाली स्थिति हो गई है। किसी को समझ नहीं आ रहा कि सीएस डॉक्टर साहब की पसंद का होगा अथवा दिल्ली वालों की पसंद चलेगी। या फिर तीसरा संघ फैक्टर काम करेगा। इसी के साथ ओएसडी बनाने की परपंरा भी टूटती नजर आ रही है। अमूमन सीएस की विदाई से पहले नियम के मुताबिक ओएसडी बनाया जाता है, पर अब तक मंत्रालय से ऐसी कोई चिट्ठी बाहर नहीं आई है। हमारे सूत्र तो यही कह रहे हैं कि डॉक्टर साहब पांचवीं मंजिल वाले डॉक्टर साहब को कमान देना चाहते हैं। अब देखना होगा कि कौन होगा अफसरों का सरताज?