बेशर्मी से ली रिश्वत, रसूख से जमा की अकूत दौलत, केस चलाने सरकार क्यों नहीं दे रही अनुमति

मध्यप्रदेश के अधिकारी-कर्मचारी रिश्वत से बेहिसाब संपत्ति इकट्ठा करने और पकड़े जाने के बाद भी मौज में हैं। इसका कारण ये है कि लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू में सालों से इन दागियों पर केस चलाने की स्वीकृति वाली फाइलें दबी हुई हैं, जो धूल हटने के इंतजार में है...

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Sanjay Sharma
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मध्यप्रदेश में विभागों से संबंधित योजनाओं और कामकाजों के बदले अधिकारी-कर्मचारी आमजन से वसूली पर उतारू हैं। हर साल लोगों से वसूली के मामले बढ़ रहे हैं और सरकार का सिस्टम इसे रोक पाने में नाकाम साबित हो रहा है। भ्रष्टाचारियों पर कसावट के लिए लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू (आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ) इकाइयां प्रदेश में हैं। ये वसूलीबाज लोकसेवकों की धरपकड़ तो करती है पर सरकार के संरक्षण के चलते वे कार्रवाई से बच निकलते हैं। अभियोजन स्वीकृति न मिलने से इनके मामले कोर्ट तक पहुंच ही नहीं पाते। भ्रष्टाचार के दागियों की लिस्ट लंबी है जो सालों से सरकार के संरक्षण के सहारे कार्रवाई से बचे हुए हैं। अब देखना है नई सरकार अपनी जड़ें कुतरने वाले दागी लोकसेवकों सालों से दबे मामले कोर्ट चलाने की अनुमति कब देती है। 

कुछ की अनुमति नहीं मिलती तो कुछ रिटायर हो जाते हैं

लोकसेवकों का दायित्व लोगों को सरकार की योजनाओं का लाभ पहुंचना है। इसके साथ ही वे जनता के काम करने के लिए भी जिम्मेदार हैं। बावजूद कई अधिकारी-कर्मचारी अपने दायित्व के सहारे सेवा शुल्क वसूलने में जुट जाते हैं। वहीं कई अफसर तो अपने प्रभाव और विभाग के मलाईदार दायित्वों से जमकर अघोषित संपत्ति जमा कर लेते हैं। प्रदेश में हर साल लोकायुक्त पुलिस को करीब 400 शिकायत पहुंचती हैं। 200 से ज्यादा रिश्वतखोरी अधिकारी-कर्मचारी रंगेहाथ पकड़े जाते हैं। वहीं ईओडब्ल्यू भी हर साल सवा सौ वसूलीबाजों के खिलाफ केस दर्ज करती है तो 100 से ज्यादा शिकायतों पर जांच भी होती है। कार्रवाई के इस आंकड़े के विपरीत रिश्वतखोरी के आरोपियों के केस कोर्ट में चलाने की अनुमति आधे मामलों में ही मिलती है। कुछ अफसर-कर्मचारी तो राजनीतिक संरक्षण के सहारे पांच या दस साल तक अभियोजन अनुमित रोकने में कामयाब हो जाते हैं। वहीं कुछ की सेवानिवृत्ति के बाद भी विभाग अभियोजन स्वीकृति नहीं देता।  

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सरकार के संरक्षण में 250 से ज्यादा दागी

लोकायुक्त पुलिस और ईओडब्ल्यू की इकाइयों में भ्रष्टाचार के आरोपी 250 से ज्यादा दागियों के विरुद्ध अभियोजन स्वीकृति का मामला अटका हुआ है। सरकार के विभाग रिश्वत वसूली और आय से ज्यादा संपत्ति जोड़ने वाले इन लोकसेवकों के प्रकरण कोर्ट में चलाने स्वीकृति ही नहीं दे रहे हैं। इस वजह से सालों से लोकायुक्त पुलिस और ईओडब्ल्यू की यूनिट जांच के बाद इन केसों को फाइलों में समेटे हुए हैं। कई बार चिट्ठियां लिखी जा चुकी हैं लेकिन विभाग से जवाब ही नहीं आया। कुछ विभागों ने तो लोकायुक्त के पत्र का भी जवाब देने की भी जरूरत नहीं समझी है।  इस वजह से नगरीय प्रशासन और आवास विभाग के 31, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के 30 से ज्यादा, राजस्व विभाग के करीब 25 तो स्वास्थ्य और वन विभाग के भी 30 से ज्यादा प्रकरण अटके हुए हैं। 20 से ज्यादा केस तो ऐसे हैं जिनमें 11 साल बाद भी अभियोजन स्वीकृति नहीं मिली है। वहीं कुछ आरोपी लोकसेवक सेवानिवृत्ति भी ले चुके हैं। जबकि अभियोजन स्वीकृति के लिए चार महीने का समय तय है।

भ्रष्टाचारियों का कवच बनी थी धारा-17 A

सरकार ने साल 2020 को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं में बदलाव किया था। एक्ट की धारा 17 में 17A जोड‍़ा गया था। इस वजह से लोकसेवकों के खिलाफ जांच और कार्रवाई से पहले संबंधित विभाग की अनुमति आवश्यक हो गई थी। एक्ट में इस बदलाव पर तत्कालीन लोकायुक्त ने भी आपत्ति ली थी और जीएडी को नोटिस भी भेजा था। हालांकि, जवाब पेश करने से पहले ही इसमें फिर बदलाव कर दिया गया। लेकिन इसके बाद भी विभाग अभियोजन स्वीकृति में अड़ंगा डालना नहीं छोड़ रहे हैं।

ये हैं दागियों को बचाने के कुछ मामले...

कैसे ठंडी पड़ी स्मार्टसिटी जमीन घोटाले की जांच

2020-21 में भोपाल स्मार्ट सिटी द्वारा टीटीनगर क्षेत्र में सरकारी जमीनों की नीलामी की गई थी। करीब 15 सौ करोड़ कीमत की इन जमीनों की नीलामी के दौरान अफसरों ने नियम बदलकर खास लोगों को मुनाफा पहुंचाया था। नीलामी में पिछड़े कुछ बिल्डर्स ने इसके आरोप लगाकर शिकायत की थी। तब ईओडब्ल्यू ने जांच भी शुरू की, लेकिन कुछ महीने बाद ही नगरीय प्रशासन विभाग के आदेश पर इस पर रोक लगा दी गई। सरकारी जमीन की नीलामी में क्या गड़बड़ी हुई और किन खास लोगों को लाभ पहुंचाने कौन से अफसरों ने नियमों को बदला यह सब फाइलों में ही दबा रह गया।

आजीविका मिशन में भर्ती घोटाला भी दबाया

राज्य आजीविका मिशन में साल 2017 से 2021 के बीच मनमाने तरीके से भर्तियां की गईं। इस घोटाले में तत्कालीन परियोजना प्रबंधक ललित मोहन बेलवाल का नाम खूब उछला था। उनके साथ ही तब के एसीएस इकबाल सिंह बैस, एसीएस अशोक शाह, पीएस मनोज श्रीवास्तव की भूमिका भी सामने आई थी। इन शीर्षस्थ अधिकारियों के इशारे पर करोड़ों का यह भर्ती घोटाला दबा दिया गया। लोकायुक्त पुलिस और ईओडब्ल्यू में हुई शिकायतें पर भी जांच आगे नहीं बढ़ी। इस घोटाले में अब राजधानी के सीजेएम कोर्ट ने याचिका पर संज्ञान लिया है। हो सकता है मामले में जल्द दोबारा जांच शुरू हो।  

रेंग रही पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन की इंजीनियर की जांच

मई 2023 में लोकायुक्त पुलिस ने आय से अधिक संपत्ति जुटाने के मामले में पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन की इंजीनियर हेमा मीणा के घर और फार्म हाउस पर छापा मारा था। छापे में संविदा इंजीनियर बेहिसाब संपत्ति की मालकिन पाई गई थीं। छापे के बाद हेमा को बर्खास्त कर दिया गया है। इस मामले में भी अब तक जांच ही चल रही है। हेमा की संविदा नियुक्ति बार-बार बढ़ाने वाले प्रोजेक्ट इंजीनियर भी निलंबन पर हैं। चालान पेश करने में कितना समय और लगेगा यह भी अभी साफ नहीं है।

निगम इंजीनियर 11 साल तक अटकाए रहा अनुमति

आय से ज्यादा संपत्ति जुटाने के मामले में लोकायुक्त पुलिस ने सागर नगर निगम के इंजीनियर लखनलाल साहू पर केस दर्ज किया था। बार-बार पत्र लिखने के बाद भी साहू के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस को नगरीय प्रशासन विभाग से अभियोजन स्वीकृति नहीं मिली। साल 2016 में विभाग से मामला नगर निगम पहुंचा तो भ्रष्टाचारी को बचाने की हदें ही तोड़ दी गईं। नगर निगम ने एमआइसी की बैठक में साहू के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति न देने का प्रस्ताव ही पारित कर लिया था। हालांकि, इस मामले में लोकायुक्त पुलिस हाईकोर्ट पहुंची तब प्रस्ताव खारिज हुआ, लेकिन अभियोजन स्वीकृति का मामला अब भी अटका हुआ है।

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