बुदनी...प्रचंड जीत के दावे खोखले, शिवराज सिंह का परचम बुलंद नहीं हुआ

बदुनी में रमाकांत भार्गव तो जीत गए हैं लेकिन शिवराज सिंह चौहान को वो बड़ी जीत नहीं मिल पाई जिसकी उन्हें उम्मीद थी। बदुनी उपचुनाव बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन गया था।

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Raj Singh
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बुदनी... मतलब शिवराज सिंह चौहान और शिवराज सिंह चौहान मतलब बुदनी...। जी हां, सही पढ़ा आपने। यह वही सीट है जो 90 के दशक से बीजेपी के कब्जे में है। शिवराज सिंह 1990 में पहली बार यहीं से विधायक बने थे। फिर 2006, 2008, 2013, 2018 और 2023 में वे इसी सीट से जीतते रहे। ज्यादातर बार उन्होंने जीत के मामले में अपना ही रिकॉर्ड तोड़ा। फिर आया 2024...मोदी-शाह की जोड़ी ने शिवराज को केंद्र में बुला लिया। अब शिवराज केंद्रीय मंत्री बन गए। लिहाजा, बुदनी में उपचुनाव तो होना ही था। सो खूब चिंतन-मंथन हुआ। शिवराज की विरासत को कौन संभाले? सवाल यही था। नाम कई थे। शिवराज के बेटे कार्तिकेय का नाम भी खूब उभरा। फिर अंत में शिवराज की ही पसंद माने जाने वाले रमाकांत को बीजेपी ने बुदनी से टिकट दे दिया। हर कोई यहां ​उनकी बड़ी जीत के दावे कर रहा था, लेकिन नतीजों वाले दिन भार्गव और कांग्रेस प्रत्याशी राजकुमार पटेल में कड़ी टक्कर देखने को मिली। 

बीजेपी के लिए साख का सवाल 

बुदनी उपचुनाव बीजेपी के लिए साख का है। सब जानते थे कि बीजेपी सीट तो निकाल ही लेगी, देखना यह होगा कि जीत और हार का अंतर कितना रहता है। लिहाजा, चुनाव से पहले सीएम डॉ.मोहन यादव और शिवराज ने एक साथ सभाएं की। शिवराज की टीम भी बुदनी में जुटी रही। अब चूंकि अंतत: वोटों की गिनती पूरी हुई है। रमाकांत भार्गव 10 हजार से ज्यादा वोटों से जीत पाए हैं। इस तरह से शिवराज सिंह चौहान की एक लाख की लीड करीब 10 फीसदी यानी 10 हजार पर अटक गई। पहले माना यही जा रहा था कि रमाकांत अच्छी खासी लीड लेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 'द सूत्र' ने इसके पीछे के कारण जाने और विशेषज्ञों से समझे तो कई समीकरण चौंकाने वाले सामने आए। 

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शिवराज को नहीं मिले संतोषजनक परिणाम 

सबसे पहले तो यह शिवराज के लिए झटका है। क्योंकि कहीं न कहीं बुदनी सीट उनका किला मानी जाती है। शिवराज ने हर बार यहां प्रचंड जीत दर्ज करके इतिहास बनाया है। बीजेपी ने उन्हें झारखंड का चुनाव प्रभारी बनाया था। एग्जिट पोल में एनडीए के पक्ष में माहौल भी नजर आया, लेकिन नतीजों में झारखंड मुक्ति मोर्चा आगे निकल गया। इस तरह शिवराज को झारखंड और बुदनी दोनों मोर्चों पर संतोषजनक परिणाम नहीं मिले। 

बीजेपी नेताओं की नाराजगी आई थी सामने 

इधर, साधना सिंह की भी बेरुखी सामने आई। वे बुदनी में प्रत्याशित रूप से उतनी ज्यादा सक्रिय नहीं रहीं, जबकि बुदनी में किरार समाज के अच्छे खासे वोट हैं और साधना किरार समाज की प्रदेश अध्यक्ष हैं। वहीं, बीजेपी की ओर से शुरुआत में वन विकास निगम के पूर्व अध्यक्ष गुरु प्रसाद शर्मा और राजेंद्र सिंह राजपूत की नाराजगी सामने आई थी। यह दोनों बुदनी में बीजेपी के पक्के दावेदार माने जा रहे थे, लेकिन बीजेपी ने टिकट रमाकांत भार्गव को दे दिया। 

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10 हजार के पार जाकर ठिठका आंकड़ा 

गौरतलब है कि बुदनी सीट के बख्तरा से ढोबी तक 85 गांव आते हैं, जो कि किरार बहुल हैं। कांग्रेस ने अच्छी खासी लीड ली, शुरुआती दो राउंड में कांग्रेस को जो बढ़त मिली थी, वो यहीं से थी। इसके बाद शाहगंज, नसरुल्लागंज, बुदनी क्षेत्र में बीजेपी ने कवर किया, लेकिन कांग्रेस ज्यादा कमजोर नहीं रही। हालात यह रही कि 1000 और 2000 की लीड लेते हुए रमाकांत भार्गव 9 वें राउंड तक 8 हजार मतों से आगे रहे, फिर यह आंकड़ा 10 हजार के पार जाकर ठिठक गया।

FAQ

बुदनी उपचुनाव बीजेपी के लिए क्यों साख का सवाल बन गया था?
बुदनी उपचुनाव बीजेपी के लिए साख का सवाल था क्योंकि यह सीट शिवराज सिंह चौहान की पारंपरिक सीट रही है, जहां उन्होंने हर बार शानदार जीत हासिल की थी।
बीजेपी के उम्मीदवार रमाकांत भार्गव को कितनी लीड मिली?
रमाकांत भार्गव ने बुदनी उपचुनाव में 10 हजार से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की। हालांकि, यह जीत उम्मीद से कम रही, क्योंकि पहले अनुमान था कि वे बड़ी लीड से जीतेंगे।
शिवराज सिंह चौहान को बुदनी उपचुनाव में क्यों संतोषजनक परिणाम नहीं मिले?
शिवराज सिंह चौहान को बुदनी उपचुनाव में संतोषजनक परिणाम नहीं मिले क्योंकि यह उनकी पारंपरिक सीट थी, जहां वे हमेशा भारी जीत दर्ज करते आए थे। इस बार, उनकी लीड अपेक्षित से काफी कम रही।
बुदनी में कांग्रेस की शुरुआत क्यों मजबूत रही?
बुदनी में कांग्रेस की शुरुआत मजबूत रही क्योंकि शुरुआती दो राउंड्स में कांग्रेस को किरार बहुल क्षेत्रों से अच्छी लीड मिली थी। इन क्षेत्रों में किरार समाज के महत्वपूर्ण वोट हैं, जिससे कांग्रेस को यहां से अच्छा समर्थन मिला।

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