BHOPAL. सैयां भये कोतवाल, अब डर काहे का...ये कहावत तो आपने सुनी ही होगी। बस ये कहानी ऐसे ही एक सैयां की है। कितनी हद की बात है कि बिल्डर ने अपने काम कराने के लिए एक व्यक्ति को रेरा में ही नियुक्त करा दिया था। बस फिर क्या था, धड़ाधड़ तरीके से काम हो रहे थे। सब ठीक चल रहा था। फिर अचानक एक दिन सैयां रेरा से बाहर हो जाते हैं। यहीं से बिल्डर की मुसीबत शुरू हो जाती है।
दरअसल, रेरा के चेयरमैन एपी श्रीवास्तव पर लगे आरोपों की तह तक जाने के बीच 'द सूत्र' को कई अहम जानकारियां और तथ्य मिले हैं। ये वे तथ्य हैं, जो उजागर करते हैं कि कैसे सालों तक रेरा चंद बिल्डरों के इशारे पर चलता रहा। अब बिल्डर नेक्सस क्यों इतना छटपटा रहा है और शिकायत के लिए भागदौड़ कर रहा है?
आइए बताते हैं, इस खास रिपोर्ट में...
भू संपदा विनियामक प्राधिकरण यानी रेरा और राजधानी की बिल्डर-कॉलोनाइजर कंपनी एजी-8 वेंचर में चल रही अदावत जगजाहिर है। जहां रेरा नियमों की अनदेखी और होमबायर्स के करोड़ों रुपए दबाए बैठे बिल्डर पर दबाव बना रहा है। वहीं, बिल्डर कंपनी न तो लोगों को उनकी मेहनत की कमाई लौटा रही है और न उन्हें मकान बनाकर दे रही है। विवाद के बीच बिल्डर के इशारे पर रेरा चेयरमैन की शिकायत सरकार से लेकर ईओडब्ल्यू में भी की जा चुकी है। रेरा चेयरमैन की शिकायत के बाद 'द सूत्र' ने जब प्राधिकरण में आने-जाने वाले लोगों, सक्रिय बिल्डर और एजेंट्स को खंगाला तो कई जानकारियां सामने आई हैं। रेरा में तीन साल पहले तक क्या चल रहा था, कैसे एजी-8 के कर्ताधर्ता हेमंत सोनी और उसके लोग रेरा में अंदर तक घुसपैठ कर फायदा उठा रहे थे? अब हम जो बता रहे हैं उसे सुनकर आप चौंक जाएंगे।
फायदा उठाने रेरा ने बैठाया अपना सीए
6 मई 2017 को रेरा ने वित्तीय नियंत्रक के पद पर प्रतिनियुक्ति के लिए नोटशीट चलाई। तत्कालीन चेयरमैन अंटोनी डिसा की नोटशीट में मार्कफेड यानी मप्र राज्य सहकारी विपणन संघ में मुख्य लेखाधिकारी एवं वित्तीय नियंत्रक के पद पर काम करने वाले सीए मनीष कुमार जोशी को प्रतिनियुक्ति देने की अनुशंसा की गई थी। डिसा की ओर से नोटशीट पर लिखा था कि जोशी प्रतिनियुक्ति पर रेरा आना चाहते हैं। वे सीए हैं और आईआईएम लखनऊ से डिप्लोमा लिया है। इसी नोटशीट में जोशी को रेरा में स्वीकृत वित्तीय नियंत्रक पद के लिए योग्य भी बताया गया था। चेयरमैन की अनुशंसा के बाद जोशी को रेरा का वित्तीय नियंत्रण सौंप दिया गया। सीए को प्रतिनियुक्ति पर लेने की इस कहानी को आम सामान्य मान रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं था।
इस तरह चलता रहा सोनी का काम
रेरा में अचानक वित्तीय नियंत्रक के पद पर नियुक्ति की नोटशीट एजी-8 वेंचर्स यानी बिल्डर हेमंत सोनी के इशारे पर चलाई गई थी। मार्कफेड के जिन मनीष कुमार जोशी को वित्तीय नियंत्रक बनाने की तैयारी हो रही थी, वो साल 2009 से 2012 के बीच हेमंत सोनी के कर्मचारी थे। वे फाइनेंस, कलेक्शन, बिजनेस डेवलपमेंट और अन्य काम संभालते थे। यानी जोशी ऐसे चार्टर्ड अकाउंटेंट थे, जो सोनी की कंपनी और रियर एस्टेट कारोबार की हर बारीकी जानते थे। बताया जाता है कि सोनी के संपर्कों के सहारे जोशी मार्कफेड से जुड़े थे। जब तक सीए मनीष जोशी रेरा में जमे रहे एजी-8 वेंचर्स के हर प्रोजेक्ट को आसानी से स्वीकृति मिलती रही। हेमंत सोनी के सबसे ज्यादा हाउसिंग प्रोजेक्ट भी इसी दौरान आगे बढ़े थे।
पकड़ ढीली होते ही उजागर हुई गड़बड़ी
एजी-8 वेंचर्स का यह स्वर्णिम दौर था लेकिन इसके बाद साल 2021 में रेरा चेयरमैन बदल गए। सेवानिवृत्त आइएएस अफसर अजीत प्रकाश श्रीवास्तव ने रेरा में काम संभालने के बाद कसावट शुरू की। बिल्डर प्रोजेक्ट के लिए जारी स्वीकृतियों में नियम का उल्लंघन करने पर जुर्मानों का सिलसिला शुरू हुआ तो एजी-8 वेंचर्स को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा। चेयरमैन श्रीवास्तव की सख्ती के चलते जोशी के माध्यम से मिलने वाले फायदे धीरे-धीरे बंद होते चले गए। यही नहीं रेरा में रजिस्टर हाउसिंग प्रोजेक्ट के बैंक खातों में जमा रखी जाने वाली 70 फीसदी राशि यानी करोड़ों रुपए का गोलमाल भी सामने आ गया। इसके बाद होमबायर्स से बुकिंग के नाम पर करोड़ों रुपए जमा कराने और मकान बनाकर देने के स्थान पर सालों तक लटकाने का खेल भी उजागर हो गया। रेरा की ओर से फाइनेंसियल एडवाइजर मिलिंद वाईकर द्वारा 26 जुलाई 2022 में बिल्डर के गड़बड़झाले की शिकायत ईओडब्ल्यू में अपराध भी दर्ज किया, लेकिन दो साल बाद भी इसमें जांच ही चल रही है।
सीबीआई जांच की मांग कर चुका है रेरा
हेमंत सोनी के हाउसिंग प्रोजेक्ट की गड़बड़ियों की लंबी फेहरिस्त है। आकृति बिजनेस सेंटर के लिए बैंक ऑफ बड़ौदा द्वारा एजी-8 वेंचर्स को ऋण उपलब्ध कराते समय बंधक संपत्ति की अनदेखी की गई। जिसका लाभ उठाकर बिल्डर कंपनी ने बुकिंग के नाम पर जमा राशि निकाल ली। बैंक में बैठे अधिकारी सोनी के हाउसिंग प्रोजेक्ट की अनियमिताओं के बाद भी उसे कर्ज देते रहे। वहीं बैंक अफसरों के सहयोग के चलते सोनी की कपंनी बुकिंग और ऋण के रूप में मिले करोड़ों रुपयों का दूसरी जगह उपयोग करता रहा। रेरा की बोर्ड बैठक में इन आर्थिक गड़बड़ियों पर चर्चा के बाद सीबीआई से जांच के लिए प्रस्ताव भेजने को स्वीकृति दी गई थी।
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