दमोह की नगर पालिका अध्यक्ष के खिलाफ पार्षदों के द्वारा लाये गये अविश्वास प्रस्ताव का मामला हाईकोर्ट पहुंच चुका है। इस अविश्वास प्रस्ताव के लिए जिला कलेक्टर के द्वारा बैठक का दिन भी 4 सितंबर तय किया गया है। पर अब यह बैठक और अविश्वास प्रस्ताव संवैधानिक है या असंवैधानिक, इसका फैसला हाईकोर्ट में 3 सितंबर को होने वाली सुनवाई के बाद ही होगा।
बीजेपी पार्षदों का अविश्वास प्रस्ताव
बीजेपी के 20 पार्षदों ने बीते शुक्रवार 27 अगस्त को कलेक्टर को अविश्वास प्रस्ताव के लिए आवेदन सौंपा था। कलेक्टर ने इस पर पत्र जारी कर चार सितंबर को सम्मेलन की तारीख निर्धारित की है। जिसमें पार्षद अध्यक्ष के खिलाफ वोटिंग करेंगे। दमोह नगर पालिका में कुल 39 पार्षद हैं। इनमें से बीजेपी के 14 पार्षद और टीएसएम के पांच पार्षद, तथा एक निर्दलीय पार्षद अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में हैं। कांग्रेस के 17 पार्षद और बीएसपी का एक पार्षद मंजू वीरेंद्र राय के साथ हैं। इससे कांग्रेस के पास कुल 18 पार्षद हो गए हैं। अविश्वास प्रस्ताव पर जीत के लिए 27 पार्षदों की जरूरत है। ऐसे में यह अविश्वास प्रस्ताव कांग्रेस के लिए संकट खड़ा कर रहा है और अब यह मामला हाईकोर्ट पहुंच गया है।
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क्या है मामले में 2 और 3 साल का पेंच
दरअसल मध्य प्रदेश नगर पालिका अध्यादेश 1961 के अनुसार किसी नगर पालिका अध्यक्ष के पदभार ग्रहण करने के 2 साल के बाद ही उसके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता था, लेकिन इस अध्यादेश में संशोधन किया गया और नए अधिनियम के अनुसार अब अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की समय सीमा 2 साल से बढ़कर 3 साल कर दी गई है। यह अध्यादेश संशोधन कैबिनेट से मंजूर किया गया है और 27 अगस्त 2024 को राजपत्र में प्रकाशित भी हो चुका है। दमोह नगर पालिका के मामले में मंजू राय नगर पालिका अध्यक्ष पद पर 5 अगस्त 2022 को चुनी गईं थी और उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव 2 साल और 18 दिनों के बाद 23 अगस्त 2025 को लाया गया है। अब दमोह मामले पेंच यही है कि यहां पुराना अधिनियम लागू होगा या 27 अगस्त को प्रकाशित संशोधित अधिनियम।
अधिनियम के लागू होने की तारीख तय करेगी अविश्वास प्रस्ताव की संवैधानिकता
शुक्रवार 30 अगस्त को इस मामले की सुनवाई जस्टिस आहलूवालिया की कोर्ट में हुई में बहस का मुद्दा रहा कि यह संशोधित अध्यादेश लागू किस दिनांक से होगा। याचिकाकर्ता मंजू राय की ओर से वरीष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पक्ष रखा। तन्खा ने संविधान के आर्टिकल 213 की उपधारा 2 का हवाला देते हुए यह कहा कि एक अमेंडमेंट की शक्ति भी एक्ट की तरह ही होती है । 23 अगस्त को दमोह नगर पालिका में लाया गया अविश्वास प्रस्ताव इस अधिनियम का उल्लंघन करता है। शासन की ओर से अधिवक्ता ने एम.पी जनरल क्लॉज के सेक्शन 2 की उपधारा 2 और 31 का हवाला देते हुए यह बताया कि यदि किसी अधिनियम में उसके लागू होने की दिनांक नहीं भी होती तो वह अधिनियम उसी दिन से लागू होता है जब उसे राजपत्र में प्रकाशित किया जाए। दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने सरकार को जवाब पेश करने के लिए समय दिया है कि यह संशोधित अधिनियम प्रकाशन के दिन से ही लागू होगा या उसके पहले से। इस मामले की सुनवाई 3 सितंबर को सुबह 10:30 पर रखी गई है। जस्टिस अहलूवालिया ने दोनों पक्षों को यह आश्वासन दिया है कि इस मामले में 3 सितंबर को ही फैसला आएगा।
कांग्रेस के दोनों हाथों में लड्डू
दमोह नगर पालिका में विश्वास प्रस्ताव के लिए वोटिंग 4 सितंबर को होनी है। उसके पहले 3 सितंबर को इस मामले में हाईकोर्ट का फैसला आएगा। कानून विशेषज्ञों के अनुसार यह संशोधित अधिनियम चाहे जब से भी लागू हो इसका फायदा कांग्रेस को ही मिलने वाला है। क्योंकि अविश्वास प्रस्ताव की सूचना भले ही संशोधन के पहले जारी की गई हो पर वोटिंग इस अध्यादेश में संशोधन के बाद ही होने वाली है तो इस मामले में कांग्रेस के दोनों हाथों में लड्डू हैं।
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