नियम विरुद्ध नियुक्तियों पर सवालों के घेरे में IIFM भोपाल

कैट ने आईआईएफएम भोपाल की भर्ती प्रक्रिया को नियम विरुद्ध मानते हुए आदेश जारी किए, लेकिन संस्थान ने इसकी अनदेखी की। अब मामला हाईकोर्ट में सुनवाई के अधीन है।

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Sanjay Sharma
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BHOPAL : भारतीय वन प्रबंध संस्थान यानी आईआईएफएम भोपाल भी अब नियम विरुद्ध नियुक्तियों को लेकर सवालों के घेरे में है। 4 साल पहले एसोसिएट प्रोफेसर सहित अलग-अलग चरणों में हुई नियुक्तियों पर आवेदकों ने सवाल उठाए हैं। ऐसे ही एक मामले में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) की जबलपुर बेंच ने भी आईआईएफएफ की नियुक्ति प्रक्रिया को नियम विरुद्ध माना। सबसे चौंकाने वाला तथ्य तो यह है कि इस मामले में कैट के निर्देशों को भी आईआईएफएफ ने अनदेखा कर दिया। संस्थान की इस मनमर्जी से प्रभावित आवेदक की अपील पर अब हाईकोर्ट जबलपुर सुनवाई जारी है। केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग की गाइडलाइन को नजरअंदाज करने के इस मामले के बाद अब बीते एक दशक में संस्थान में हुई नियुक्तियां भी संदेह के दायरे में आ गई हैं। संस्थागत पदोन्नति और नई भर्तियों की उच्चस्तरीय जांच की मांग भी की जा रही है।

यह है पूरा मामला

राजधानी स्थित भारतीय वन प्रबंध संस्थान द्वारा विभिन्न विषयों के लिए एसोसिएट एवं प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति का नोटिफिकेशन जारी किया गया था। आईआईएफएम डायरेक्टर की ओर से जारी नोटिफिकेशन में संबंधित पद के लिए आवश्यक योग्यता और गाइडलाइन का भी उल्लेख किया गया  है। डायरेक्टर द्वारा बनाई गई जांच कमेटी द्वारा की गई स्क्रूटनी के बाद 18 अभ्यर्थियों को शॉर्टलिस्ट किया गया। इन सभी को 16 सितंबर 2020 को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था। इंटरव्यू के बाद केवल 2 अभ्यर्थी ही निर्धारित योग्यता यानी 70 प्रतिशत अंक हासिल कर पाए। इंटरव्यू के बाद डॉ.प्रतीक माहेश्वरी और जयश्री दुबे को शॉर्टलिस्ट किया गया और जयश्री दुबे को प्रतीक्षा सूची में रखते हुए नियुक्ति डॉ.प्रतीक माहेश्वरी को दे दी गई।

नियमों का उल्लंघन

एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर आईआईएफएम द्वारा जिस अभ्यर्थी डॉ.प्रतीक माहेश्वरी की नियुक्ति की गई उस पर सवाल उठाए गए हैं। इस पद के लिए आईआईटी और केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की गाइड लाइन के तहत पे-बैंड की अनदेखी की गई। डॉ.प्रतीक माहेश्वरी की लेवल-13A2 के पे-बैंड की पात्रता नहीं होने के बाद भी उन्हें नियुक्ति आदेश जारी कर दिया गया। जबकि इस पद की  चयन सूची में जरूरी पात्रता के बावजूद जयश्री दुबे को दूसरे नंबर यानी प्रतीक्षा सूची में रखा गया। यानी तय पात्रता और अनुभव के बिना पद पर नियुक्ति नहीं की जा सकती थी लेकिन आईआईएफएम डायरेक्टर और चयन समिति ने इस बाध्यता को नजरअंदाज कर दिया।

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मानदंडों को किया अनदेखा

नियम विरुद्ध नियुक्ति के इस मामले में आईआईएफएम यहीं नहीं रुका। दूषित नियुक्ति और अपनी योग्यता और पात्रता के बावजूद पद डॉ.प्रतीक माहेश्वरी को दिए जाने पर अभ्यर्थी डॉ.जयश्री दुबे ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण में अपील की। आईआईएफएम की चयन समिति द्वारा चयन प्रक्रिया के तहत डॉ.प्रतीक को 74 प्रतिशत और डॉ.जयश्री को 73.25 प्रतिशत स्कोर दिया गया था। दुबे की अपील में डॉ. प्रतीक के चयन के लिए की गई स्कोरिंग पर आपत्ति दर्ज कराई गई थी। उनका कहना था यदि नियम और गाइड लाइन के आधार पर चयन नहीं किया गया। ट्रिब्यूनल द्वारा केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के सचिव और आईआईएफएम भोपाल के डायरेक्टर को नोटिस जारी किया गया। ट्रिब्यूनल के सामने आवेदक पक्ष यह साबित करने में कामयाब रहा कि चयन प्रक्रिया दोषपूर्ण थी और इसी वजह से पात्रता न होने के बाद भी डॉ.प्रतीक का चयन किया गया है। इस आपत्ति के जवाब में आईआईएफएम चयन प्रक्रिया से संबंधित प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर पाया। इस स्थिति को देखते हुए ट्रिब्यूनल ने प्रतीक्षा सूची में रखी गई अभ्यर्थी को नियुक्ति के निर्देश जारी किए। इस निर्णय से भारतीय वन प्रबंध संस्थान की मनमानी नियुक्ति प्रक्रिया और वरिष्ठ संस्थाओं की गाइडलाइन की स्थिति उजागर हो चुकी है।

ट्रिब्यूनल के आदेश की अनदेखी

सुनवाई के बाद ट्रिब्यूनल द्वारा पात्रता के आधार पर प्रतीक्षा सूची में नंबर 1 पर दर्ज अभ्यर्थी को नियुक्ति का निर्देश दिए लेकिन आईआईएफएम ने लागू नहीं किया। इस बीच नियुक्ति हासिल करने वाले डॉ.प्रतीक ने केवल छह माह बाद ही त्याग पत्र दे दिया। ट्रिब्यूनल के निर्देश के बाद आईआईएफएम ने डॉ.जयश्री को नियुक्ति देने से इंकार कर दिया। इसके पीछे वन प्रबंध संस्थान के जिम्मेदार और चयन समिति का तर्क था कि चयन प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी इस वजह से नियुक्ति नहीं दी जा सकती।

आईआईएफएम का यह तर्क भी पूरी तरह तथ्यहीन है। क्योंकि ट्रिब्यूनल पहले ही चयनित अभ्यर्थी की नियुक्ति को नियम विरुद्ध बता चुका है। इसके साथ ही अभ्यर्थी के त्याग पत्र लेने और दायित्व मुक्त करने की प्रक्रिया भी दोषपूर्ण बताई जा रही है। यानी नियम विरुद्ध नियुक्ति हासिल करने वाले अभ्यर्थी को बर्खास्त किया जाता है लेकिन आईआईएफएम ने इस मामले में उनका त्याग पत्र स्वीकार किया है। संस्थान के इस निर्णय और ट्रिब्यूनल के आदेश की अनदेखी के विरुद्ध डॉ.जयश्री ने जबलपुर हाईकोर्ट में अपील की है। जिस पर सुनवाई जारी है।

जिम्मेदारों ने नहीं दिया ध्यान

नियुक्ति प्रक्रिया और योग्यता के बावजूद नियुक्ति से वंचित रहने पर अभ्यर्थी डॉ.जयश्री दुबे ने आईआईएफएम निदेशक, निदेशक मंडल, संकाय शिकायत समिति के साथ ही केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के सचिव और आईआईएफएम अध्यक्ष को भी पत्र भेजे थे। फरवरी-मार्च माह में भेजे गए आवेदनों पर भोपाल से लेकर दिल्ली तक सुनवाई नहीं होने पर उन्होंने अप्रैल माह में स्मरण पत्र भी भेजे। इस बीच दूसरी संस्थाओं को भी पत्र लिखे गए लेकिन किसी भी स्तर से जवाब नहीं आया। तब उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय और केंद्रीय सतर्कता आयोग में भी शिकायत की है। संस्थान के एक जिम्मेदार अधिकारी ने मामला पूर्व निदेशक के कार्यकाल का होने की वजह से इस पर कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया। जबकि आईआईएएफएम निदेशक डॉ. के. रविचंद्रन और प्रबंधन से इस मामले को लेकर कई बार बात करने की कोशिश की गई लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका।

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