जबलपुर हाईकोर्ट में अधिवक्ता अमिताभ गुप्ता ने पॉक्सो अधिनियम ( POCSO ACT) की धारा 43 के क्रियान्वयन को लेकर जनहित याचिका लगाई गई है और इस मामले में यौन अपराधों से जुड़े हुए ऐसे संवेदनशील कारणों को उठाया गया है, जिन पर अदालत का आदेश आने के बाद केवल मध्य प्रदेश ही नहीं पूरे देश में पॉक्सो के मामलों में कमी आ सकती है। इस मामले की सुनवाई जस्टिस सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी और जस्टिस आराधना शुक्ला की युगलपीठ में हुई।
क्या है पॉक्सो अधिनियम की धारा 43
बच्चों के यौन अपराध (sexual crime ) से संरक्षण के लिए बनाए गए पॉक्सो अधिनियम 2012 ( POCSO ACT 2012) की धारा 43 को इस अधिनियम के प्रावधानों का व्यापक प्रचार प्रसार अनिवार्य करने के लिए बनाया गया है। इस धारा के अंतर्गत उपधारा (ए) के द्वारा यह अपेक्षा की गई है कि मीडिया सहित अन्य माध्यमों से इस अधिनियम के प्रावधानों का व्यापक प्रचार प्रसार नियमित अंतराल से किया जाए। जिसके पीछे की वजह माता-पिता और अभिभावकों सहित बच्चों को भी इन प्रावधानों के बारे में जागरूक करना है।
जमानत याचिका की सुनवाई के बाद सामने आया मुद्दा
जबलपुर हाईकोर्ट ( Jabalpur High Court ) में जस्टिस विशाल धगत की बेंच में एक पॉक्सो मामले में आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई हुई थी। सुनवाई के दौरान अधिवक्ता अमिताभ गुप्ता ने कोर्ट का ध्यान पॉक्सो अधिनियम 2012 की धारा 43 की ओर खींचा। इसके बाद अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि इस अधिनियम की धारा 43 के प्रति केंद्र और राज्य सरकारों ने उदासीनता दिखाई है और इस धारा का व्यापक प्रचार प्रसार न किए जाने के कारण ही 18 से 19 वर्ष के युवकों के विरुद्ध इस अधिनियम के तहत कार्यवाही सामने आ रही है। इसके बाद हाईकोर्ट के द्वारा राज्य सरकार को आदेश दिया गया था। कि इस मामले में उचित कार्यवाही करते हुए इस अधिनियम की धारा 43 का पालन किया जाए। यह आदेश 18 दिसंबर 2023 को आया था और अब इस मामले में जनहित याचिका हाईकोर्ट में लगाई गई है।
किशोर अवस्था के बदलाव बन रहे मुख्य वजह
इस जनहित याचिका में अधिवक्ता अमिताभ गुप्ता ने किशोरावस्था के ऐसे हजारों युवाओं की बात की है। जिनकी उम्र 18 वर्ष से कुछ अधिक या 19 वर्ष ही है और उन पर जिस किशोरी के यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया गया है, वह उनसे कुछ माह ही छोटी है। याचिका में यह तर्क रखकर अमिताभ कोर्ट का ध्यान इस ओर खींचना चाहते हैं कि इस तरह के मामलों में कम उम्र के युवक किस तरह जानकारी के अभाव में आरोपी बन जाते हैं। अधिवक्ता ने अपनी याचिका में कोर्ट के समक्ष कई तथ्य रखें उन्होंने कोर्ट को बताया कि किशोर अवस्था में किशोरों में हार्मोनल चेंजेज भी होते हैं। जिसके कारण वह एक दूसरे के प्रति आकर्षित होते हैं। वहीं सोशल मीडिया के माध्यम से शुरू हुई बातचीत भी बहुत से मामलों में मुलाकात के बाद इसी अधिनियम के तहत कार्यवाही तक पहुंच जाती है।
जागरूकता से कम होंगे पॉक्सो के मामले
इस जनहित याचिका से न्यायालय को बताया गया कि पॉक्सो अधिनियम जो 2012 में लागू हो चुका है। उसकी धारा 43 का राज्य एवं केंद्र सरकारों के द्वारा पूर्णता पालन नहीं किया गया। इस धारा के अनुसार यदि मीडिया, समाचार पत्रों रेडियो और सोशल जैसे माध्यमों से इस धारा से जुड़ी जानकारी युवक-युवतियों को देनी चाहिए। जिससे उनके मन में कानून के प्रति डर रहेगा कोई भी गलत काम करने से पहले सौ बार सोचेंगे। इसके साथ ही माता-पिता एवं अभिभावक भी इस कानून के प्रति जागरूक होंगे। इस जनहित याचिका की अगली सुनवाई 6 सितंबर को होनी है। जिसके बाद आने वाले फैसले का प्रभाव केवल मध्य प्रदेश ही नहीं पूरे भारत देश पर पड़ेगा और इस कानून के व्यापक प्रचार प्रसार से पोक्सो एक्ट के मामलों में भी भारी कमी आने की उम्मीद है।
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