BHOPAL. मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में दो स्कूली बच्चों ने अपने प्रिंसिपल को गोली मार दी। सिर में गोली लगने से 55 साल के प्रिंसिपल सुरेंद्र कुमार सक्सेना की मौत हो गई। यह घटना जिले के ओरछा रोड थाना क्षेत्र के धमोरा की है। हालांकि, अभी इसकी असल वजह सामने नहीं आई है। पुलिस सभी पहलुओं की जांच कर रही है।
इस घटना पर मनोविज्ञान क्या कहता है? उन बच्चों के दिमाग में क्या चल रहा होगा? क्या पेरेंट्स की परवरिश में कोई चूक हुई... यह सब जानने के लिए 'द सूत्र' ने भोपाल के साइकियाट्रिस्ट एंड साइकोलॉजिकल एनालिस्ट डॉ.सत्यकांत त्रिवेदी से बात की। उन्होंने इस घटना के पीछे कई कारण बताए।
छतरपुर में छात्र ने प्रिंसिपल के सिर पर मारी गोली, हुई मौत, आरोपी फरार
सिनेमाई परिदृश्य हो रहा हावी
डॉ.त्रिवेदी ने कहा, यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि आज की पीढ़ी किस दिशा में जा रही है। इस समस्या की जड़ें गहरी हैं। यह सिर्फ एक बच्चे की गलती नहीं, बल्कि हमारे समाज और माहौल की विफलता भी है। डॉ.त्रिवेदी का मानना है कि आज का युवा सिनेमा, वेब सीरीज और सोशल मीडिया से गहराई से प्रभावित हो रहा है। अपराध को ग्लैमर के साथ पेश किया जाता है। यही वजह है कि अब सही-गलत का फर्क मिटने लगा है। जब परदे पर अपराधी को नायक की तरह दिखाया जाता है तो कम उम्र के बच्चे यानी किशोर इसे वास्तविक जीवन में भी सही मानने लगते हैं।
भावनाओं को समझने और संभालने की कमी
डॉ.त्रिवेदी अपने अनुभव से बताते हैं कि किशोर अवस्था ऐसा समय होता है, जब बच्चे अपने जीवन में पहचान, सम्मान और आदर्श की तलाश करते हैं। अगर उन्हें बचपन से सही माहौल, प्रेम और मार्गदर्शन नहीं मिलता तो वे अपनी भावनाओं को संभाल नहीं पाते। गुस्सा, निराशा या हताशा जैसे भाव अगर समय पर सुलझाए न जाएं, तो ये बड़े गलत फैसलों की ओर ले जा सकते हैं।
एमपी में अवसाद और बेचैनी के हर दिन 150 केस
मनोविज्ञान कहता है कि कम उम्र के बच्चों और युवाओं में अवसाद, बेचैनी, गुस्सा या ध्यान की कमी जैसी मानसिक समस्याएं लगातार बढ़ रही हैं। अकेले मध्यप्रदेश में रोजाना इस तरह के 150 से ज्यादा केस सामने आ रहे हैं। इन मुश्किल हालातों में यदि समय रहते ध्यान न दिया जाए तो बच्चे नशे या गलत आदतों में फंस सकते हैं। नशा उन्हें और कमजोर बनाता है और जब वे इस राह पर बढ़ जाते हैं तो वे सही-गलत का फर्क भूल बैठते हैं।
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क्या करें अभिभावक
बच्चों से संवाद करें: परिवार और शिक्षक बच्चों के साथ खुलकर बात करें। उन्हें उनकी भावनाएं समझने में मदद करें।
सही-गलत का फर्क बताएं: बच्चों को नैतिक मूल्यों और सही आदर्शों के बारे में बताएं।
मीडिया का असर कम करें: उन्हें यह समझाएं कि फिल्मों और वेब सीरीज की हिंसा वास्तविक नहीं है।
मेंटल हेल्थ का ध्यान: बच्चों के व्यवहार में बदलाव को जल्दी समझें और समय पर मदद करें।
सकारात्मक माहौल: परिवार, शिक्षक और समाज मिलकर बच्चों को सुरक्षित और प्रेमपूर्ण माहौल दें।
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