आशीष अग्निहोत्री @ छतरपुर
परिवहन विभाग के यातायात को लेकर आम जन के लिए तमाम तरह के नियम-कायदे हैं। यातायात पुलिस कदम-कदम पर चौकियां लगाकर वाहनों की जांच करती है, लेकिन छतरपुर जिला परिवहन विभाग स्थानीय नगर पालिका व परिषदों के करीब चार दर्जन वाहनों को लेकर आंख बंद किए हुए है। जिनके ट्रैफिक रूल्स पालन की बात तो छोड़ ही दीजिए। इनका पंजीयन भी परिवहन विभाग में अब तक नहीं कराया गया, तो क्या परिवहन विभाग के नियम सरकार के लिए अलग और आम आदमी के लिए अलग-अलग हैं।
बिना नंबर प्लेट दौड़ रहे परिषद के वाहन
शहर की सफाई व्यवस्था व शहर के लोगों को मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने का जिम्मा इसी परिषद का है। साफ-सफाई व दीगर कामकाजों के लिए परिषद को शासन ने भारी व बड़े-छोटे वाहन भी मुहैया कराए, लेकिन लगता है सरकार परिषद के लिए खरीदे गए लाखों रुपए कीमत के वाहनों को राज्य के परिवहन विभाग में पंजीयन कराना ही भूल गई। इन वाहनों में ट्रैक्टर्स से लेकर जेसीबी, डंपर, कचरा व शव वाहन तक शामिल हैं। इनकी संख्या एक-दो नहीं बल्कि दर्जनों में है।
जेसीबी जैसे भारी वाहनों के भी पंजीयन नहीं
नगर पालिका छतरपुर में दो ट्रेक्टर साल 2005 में खरीदे गए। बाद में परिषद को डंपर,जेसीबी,फायर मशीन,जीप समेत करीब तीन दर्जन वाहन और मिले,लेकिन इनमें एक का भी पंजीयन परिवहन विभाग में नहीं कराया गया। इसके चलते ये सभी वाहन बिना नंबर प्लेट के दौड़ रही है। यही हाल जिले की घुवारा व सटई नगर परिषदों का है। इन परिषदों में भी चार-चार वाहन में एक भी परिवहन विभाग में रजिस्टर्ड नहीं है। बड़ी बात यह कि छोटी-छोटी खामियों को लेकर आम आदमी पर भारी जुर्माना लगाने वाला परिवहन विभाग इस मामले में आंख बंद किए हुए है। उसे बिना नंबर प्लेट्स के दौड़ते यह वाहन नजर ही नहीं आते।
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जिम्मेदार अफसर बेपरवाह
इस मामले में सरकार ने अपनी जिम्मेदारी से साफ पल्ला झाड़ लिया है..हाल ही में राज्य विधानसभा में पेश एक जवाब में एमपी सरकार ने साफ कहा-परिषद के इन वाहनों से किसी प्रकार की कोई दुर्घटना होती है तो इसके लिए संबंधित निकायों के अधिकारी,कर्मचारी जिम्मेदार हैं। यही नहीं,सरकार ने माना है कि परिवहन विभाग एमपी ऐसे वाहनों के खिलाफ कार्रवाई करने को लेकर सक्षम है। अब सवाल यही है बिना नंबर प्लेट के दौड़ते इन वाहनों से आमजन में खौफ है। वहीं, जिम्मेदार बेपरवाह।
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सरकार का जवाब भी हैरत पैदा करने वाला
नगर परिषदों के करीब चार दर्जन भारी व अन्य वाहनों का पंजीयन तक न होना, सरकारी तंत्र में व्याप्त भर्राशाही का एक बड़ा उदाहरण है। खास बात यह कि विधानसभा में भी मामला गंजूने के बावजूद नगरीय प्रशासन विभाग की ओर से इस मामले में कोई फुर्ती नहीं दिखाई गई। वहीं, ऐसे वाहनों से हादसे होने पर जिम्मेदारी संबंधित अफसरों, कर्मचारियों पर डालकर अपना पल्ला झाड़ना भी हैरत पैदा करने वाला है।
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