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MP News : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट केकार्यवाहक चीफ जस्टिस संजीव सचदेवाने हाल ही में वृंदावन स्थित प्रसिद्ध संत स्वामी प्रेमानंद महाराज से मुलाकात की। यह मुलाकात मात्र आध्यात्मिक यात्रा नहीं थी, बल्कि न्याय और धर्म के बीच गहरे रिश्ते को समझने और उसे अपने कार्यों में लागू करने पर एक महत्वपूर्ण संवाद भी थी। स्वामी प्रेमानंद ने न्याय के क्षेत्र में धार्मिक दृष्टिकोण को समझाने का प्रयास किया और कहा कि न्याय केवल कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि धर्म का पालन भी है। इस मुलाकात से यह स्पष्ट हुआ कि न्याय के क्षेत्र में सही मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए ईमानदारी और निष्कलंक सेवा की भावना महत्वपूर्ण है।
स्वामी प्रेमानंद की गहरी बातें
स्वामी प्रेमानंद ने मुख्य न्यायाधीश को न्याय के संबंध में गहरी बातें बताईं। उनका कहना था कि न्याय केवल कानून का पालन नहीं है, बल्कि यह धर्म के अनुसार भी होना चाहिए। उन्होंने न्यायाधीशों को यह आह्वान किया कि वे केवल कानून के तहत ही नहीं, बल्कि धार्मिक दृष्टिकोण से भी निर्णय लें। स्वामी प्रेमानंद ने कहा, "दोषी को दंड देना और निर्दोष को बचाना ही सच्चा न्याय है। न्याय का उद्देश्य समाज में शांति और न्याय की भावना को बनाए रखना है।"
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न्याय का उद्देश्य
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स्वामी प्रेमानंद ने न्याय के उद्देश्य को स्पष्ट किया। उनके अनुसार, न्याय का असल उद्देश्य दोषी को सजा और निर्दोष को न्याय दिलवाना है। इसके लिए न्यायाधीशों को निम्नलिखित गुणों को अपनाना चाहिए-
- निर्भीकता से काम करना- किसी भी दबाव के बावजूद न्याय का पालन करना चाहिए।
- प्रलोभन से दूर रहना- न्यायाधीशों को किसी भी प्रकार के प्रलोभन से बचना चाहिए और केवल सत्य का पालन करना चाहिए।
- सेवा भावना को सर्वोच्च मानना- अपने पद का इस्तेमाल समाज की सेवा के लिए करना चाहिए, न कि स्वार्थ के लिए।
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पद सेवा का माध्यम है, अधिकार का नहीं
- चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा से बातचीत में स्वामीजी ने यह भी कहा कि- "ईश्वर ने जो पद दिया है, वह सेवा के लिए है, न कि स्वार्थ के लिए।
- श्रीकृष्ण और अर्जुन का उदाहरण स्वामी प्रेमानंद ने भगवद्गीता का उदाहरण देते हुए कहा- जैसे श्रीकृष्ण ने अर्जुन से युद्ध करने को कहा था, वैसे ही एक न्यायाधीश का भी धर्म है कि वह निडर होकर न्याय करे।
पद सेवा का माध्यम है, अधिकार का नहीं
स्वामी प्रेमानंद ने यह भी स्पष्ट किया कि जो पद किसी को प्राप्त होता है, वह सेवा के लिए है, न कि अधिकार के रूप में। उन्होंने मुख्य न्यायाधीश से कहा कि हर पद का उद्देश्य समाज की भलाई है, और इसे केवल भगवान की पूजा की तरह समझकर निभाना चाहिए। पद को स्वार्थ के लिए नहीं, बल्कि समाज के कल्याण के लिए उपयोग करना चाहिए।
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भगवद्गीता का उदाहरण और न्याय के मार्ग पर प्रकाश
स्वामी प्रेमानंद ने न्याय की धार्मिक भूमिका को समझाने के लिए श्रीमद्भगवद्गीता का उदाहरण भी दिया। उन्होंने कहा, "जैसे भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से युद्ध करने का आदेश दिया था, वैसे ही न्यायाधीश का धर्म है कि वह बिना डर के, ईमानदारी से न्याय का पालन करे।" उनका मानना था कि एक न्यायाधीश को हमेशा अपने कार्यों में निर्भीकता, ईमानदारी और निष्कलंक सेवा भावना के साथ निर्णय लेना चाहिए।