जबलपुर के पूर्व मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी रहे डॉक्टर मनीष मिश्रा और डॉक्टर रत्नेश कुररिया की जुगलबंदी वर्षों तक चर्चा में रही है। इन दोनों पूर्व सीएमएचओ की जुगलबंदी कुछ ऐसी थी कि यदि एक को पद से निकाला जाता था तो दूसरा वह पदभार ले लेता था। लेकिन अब यह दोनों पूर्व सीएमएचओ कोविड के दौरान किये भ्रष्टाचार के मामले में सुर्खियों में आए हैं।
सुखसागर अस्पताल को आंख बंद कर पहुंचा फायदा
पूर्व सीएमएचओ डॉक्टर मनीष मिश्रा और डॉक्टर रत्नेश कुरारिया के साथ सुखसागर अस्पताल तिलवारा के संचालक कौस्तुभ वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत अदालत में परिवाद दायर किया गया है। आवेदक अधिवक्ता धीरज कुकरेजा और स्वप्निल सराफ ने इन दोनों पूर्व सीएमएचओ के द्वारा सुखसागर अस्पताल को अवैध रूप से लाभ दिलाने और शासन को आर्थिक क्षति पहुंचाने सहित गबन के भी आरोप लगाए गए हैं। आवेदनकर्ता के द्वारा आरटीआई के जो दस्तावेज अदालत में प्रस्तुत किए गए हैं उसके बाद अदालत ने इस मामले को सुनवाई योग्य पाए हुए परिवाद को ग्रहण किया है।
कोरोना काल में हुई थी बंदरबांट
कोरोना काल में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की जरूरत के चलते निजी अस्पताल को कोविड केयर सेंटर बनाया गया था। जिसमें एक अस्पताल ऐसा भी थे जिन्हें विभाग के द्वारा नियमित करण न दिए जाने के बाद भी नियम विरुद्ध अधिग्रहित कर लिया गया था।तिलवारा स्थित सुखसागर अस्पताल को कोविड केयर सेंटर बनाया गया था। इस अस्पताल के 250- 300 बेड को अधिग्रहीत करने के लिए अनुज्ञप्ति पत्र जारी किया गया था। यहां विशेष बात यह थी कि जबलपुर में इतने सारे अस्पताल होने के बाद भी पूर्व सीएमएचओ मनीष मिश्रा के द्वारा केवल एक अस्पताल के लिए अनुज्ञप्ति जारी की गई थी। इस अस्पताल के लिए जो एमओयू साइन किया गया था उसके अनुसार अस्पताल प्रति बेड के हिसाब से अपना बिल प्रस्तुत करेगा और शासन उसकी पेमेंट करेगा। इसके लिए 28 दिसंबर 2020 को कोविड केयर सेंटर सुखसागर ने 4 करोड़ 97 लाख 40 हज़ार के बिल लगाएं और पूर्व सीएमएचओ मनीष मिश्रा और रत्नेश कुररिया ने इनका 79 लाख 75 हज़ार का भुगतान भी कर दिया।
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ऐसे आया मामला सामने
स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों की माने तो सुख सागर अस्पताल के बचे हुए बिल का भी भुगतान इन दोनों सीएमएचओ के द्वारा कर दिया जाता पर तत्कालीन नेशनल हेल्थ मिशन की अध्यक्ष ने फंड का हवाला देते हुए इसका भुगतान रोगी कल्याण विभाग के द्वारा किए जाने को निर्देशित किया था। जिले की रोगी कल्याण विभाग के अध्यक्ष जिला कलेक्टर होते हैं और कोविड काल में जब स्वास्थ्य निकायों में वैसे ही फंड की कमी थी, उस समय इतने बड़े भुगतान के सामने आने से अधिकारियों के भी कान खड़े हो गए और जिला कलेक्टर के द्वारा 15 अप्रैल 2021 को सुखसागर मेडिकल कॉलेज के शेष भुगतान के निर्णय के लिए एक कमेटी का गठन किया।
इस कमेटी में भी तत्कालीन मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर मनीष मिश्रा सहित पूर्व सीएमएचओ रत्नेश कुररिया सदस्य थे। उनके साथ ही डिप्टी कलेक्टर मेघा पवार को भी इस समिति में नियुक्त किया गया था। इस अस्पताल के भुगतान के निर्णय में दोनों पूर्व सीएमएचओ ने तो अपने अभिमत में सुखसागर अस्पताल को भुगतान करने को क्लीन चिट दे दी थी लेकिन डिप्टी कलेक्टर मेघा पवार ने जो रिपोर्ट सौंपी उसके अनुसार पूर्व सीएमएचओ मनीष मिश्रा और डॉक्टर रत्नेश कुररिया को इस अस्पताल को अधिग्रहीत करने का अधिकार ही नहीं था क्योंकि यह उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर था। आवेदनकर्ता के द्वारा आरटीआई से प्राप्त की गई जानकारी के बाद इस रिपोर्ट का भी खुलासा हुआ है। जिससे इस अस्पताल के एएमयू को प्रमाणित करने में भी अनियमिताएं पाई गई हैं । यह साफ जाहिर है की दोनों पूर्व सीएमएचओ डॉक्टर मनीष मिश्रा और डॉक्टर रत्नेश कुररिया के द्वारा अपने पद का दुरुपयोग कर राशि का गबन करने की नीयत से सुखसागर प्राइवेट अस्पताल की पक्ष में लगातार नियम विरुद्ध आदेश देते हुए निजी अस्पताल को लाभ पहुंचाया गया है। विशेष न्यायाधीश अमजद अली की कोर्ट में अब इस मामले की अगली सुनवाई 20 अगस्त को होगी।
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