कांग्रेस की सभा में दिग्विजय सिंह मंच पर क्यों नहीं गए, फेसबुक पोस्ट में गिना दिए ये कारण

जबलपुर में कांग्रेस की सभा में मंच पर न बैठने को लेकर दिग्विजय सिंह ने 7 कारण बताए। इन कारणों के साथ दिग्विजय सिंह ने महात्मा गांधी से लेकर राहुल गांधी तक का जिक्र किया।

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Rohit Sahu
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31 मई को जबलपुर में आयोजित कांग्रेस की जयहिंद सभा में  कुछ ऐसा हुआ जिसने सभी को चौंका दिया। सीनियर कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने मंच पर बैठने से इनकार कर दिया था।पूर्व मंत्री और विधायक लखन घनघोरिया ने उनके पैर छूकर मंच पर बैठने का आग्रह किया। दिग्विजय अपने निर्णय पर अडिग रहे और मंच पर नहीं बैठे। अब उन्होंने फेसबुक पोस्ट कर इसकी वजह बताई

महात्मा गांधी और राहुल गांधी का दिया उदाहरण

2018 में दिल्ली में हुए राष्ट्रीय अधिवेशन का हवाला दिया, जहां राहुल गांधी, सोनिया गांधी समेत सभी वरिष्ठ नेता मंच से नीचे बैठे थे ।इसके साथ ही दिग्विजय सिंह ने लिखा कि बापू असहयोग आंदोलन के दौरान जमीन पर बैठते थे। समानता और सादगी गांधी दर्शन की नींव रही है।

फेसबुक पोस्ट में ये कारण गिनाए

✅ 1. समानता की भावना को बढ़ावा देना है लक्ष्य- कार्यकर्ता शिकायत करते हैं कि बड़े नेता उन्हें बराबरी का दर्जा नहीं देते। मंच से दूरी यह संदेश देती है कि हर कार्यकर्ता समान महत्व रखता है।

✅ 2. पद नहीं, काम की हो प्राथमिकता- दिग्विजय सिंह ने लिखा कि पद के बजाय कार्य को प्राथमिकता देना जरूरी है। कार्यकर्ताओं को यह समझना चाहिए कि पहचान मंच नहीं, मेहनत से बनती है।

✅ 3. कार्यक्रमों में अनुशासन और स्पष्टता जरूरी- मंच पर सीमित उपस्थिति से कार्यक्रमों में स्पष्ट संरचना और अनुशासन बना रहेगा। इससे अव्यवस्था और प्रतिस्पर्धा जैसी समस्याएं दूर होंगी।

✅ 4. सामूहिक सम्मान का संदेश हो प्रसारित- गुलदस्ता और सम्मान केवल जिला अध्यक्ष द्वारा हो, यह सुझाव भी उन्होंने दिया। इससे व्यक्तिगत प्रभाव के बजाय संगठन की गरिमा बढ़ेगी।

✅ 5. नेतृत्व की सादगी से कार्यकर्ता होंगे प्रेरित- सादगी और समानता कार्यकर्ता को अपने नेता के करीब लाती है। इससे उनमें समर्पण और संघर्ष का भाव जन्म लेता है।

✅ 6. पार्टी के मूल विचारों की वापसी हो सके- यह निर्णय पद और दिखावे की राजनीति से हटकर
सेवा और विचार आधारित संगठन को पुनर्जीवित करने की कोशिश है।

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यह पुरानी परंपरा है

दिग्विजय सिंह बोले- यह नया नहीं, पुरानी परंपरा का हिस्सा है। 28 अप्रैल 2025 को ग्वालियर की सभा में भी उन्होंने ऐसा ही किया था। यह कोई तात्कालिक निर्णय नहीं, बल्कि विचारधारा से जुड़ा स्थायी व्यवहार है।

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