एक सीट पर Congress ने BJP को उलझाया, 4 सीटों पर बार-बार बदले चेहरे?

मध्यप्रदेश में कुछ सीटें ऐसी भी हैं जहां कांग्रेस बार-बार चेहरे बदलती है इस उम्मीद पर कि शायद कोई चेहरा तो ऐसा होगा जो लोगों को पसंद आएगा और कांग्रेस उस सीट पर जीत हासिल कर सकेगी। आइए आपको बताते हैं कि चार सीट पर कांग्रेस के क्या है समीकरण...

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Jitendra Shrivastava
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BHOPAL. एंटी इंकंबेंसी, चुनावी सीजन में ये शब्द आप बार-बार सुनते होंगे। एंटीइंकंबेंसी का अर्थ है सत्ता विरोधी लहर। मोदी युग में और कांग्रेस ( Congress ) के राहुल गांधी काल में क्या ये सत्ता विरोधी लहर कांग्रेस के खिलाफ है। मैंने मान लिया कि जब नाम ही सत्ता विरोधी है तो लहर भी सत्ताधारी दल के खिलाफ ही होना चाहिए, लेकिन मध्यप्रदेश में जो हालात हैं उसे देखते हुए लगता है कि नाराजगी कांग्रेस के ही खिलाफ है। कांग्रेस भी खुद इस नाराजगी से अनजान नहीं है। जिससे बचने के लिए पार्टी ने लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर एक और नया एक्सपेरिमेंट किया है।

कांग्रेस तीन सीटों को लेकर अब भी पसोपेश में हैं

लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने मध्यप्रदेश की सभी 29 सीटों के टिकट डिक्लेयर कर दिए हैं। कांग्रेस भी ज्यादातर टिकट दे चुकी है, लेकिन तीन सीटों को लेकर अब भी पसोपेश में हैं। उन तीन सीटों की चर्चा बाद में करेंगे। फिलहाल आपको कांग्रेस का इस बार का टिकट वितरण का पैटर्न समझाता हूं। कांग्रेस ने बीजेपी से निपटने के लिए नए और पुराने चेहरों का एक गुड मिक्स तैयार किया है। इसे फिलहाल हम सिर्फ मिक्स कहते हैं। क्योंकि गुड है कि बेड ये तो नतीजों से ही समझा जा सकेगा। कुछ सीटें ऐसी हैं जहां पुराने ही चेहरे रिपीट किए हैं और कुछ ऐसी है जहां फ्रेश चेहरों को मौका दिया है। इन्हीं में से कुछ सीटें ऐसी भी हैं जहां बार-बार चेहरे बदलती है इस उम्मीद पर कि शायद कोई चेहरा तो ऐसा होगा जो लोगों को पसंद आएगा और कांग्रेस उस सीट पर जीत हासिल कर सकेगी। मध्यप्रदेश की कुछ सीटें ऐसी हैं जहां लगातार दो बार से या तीन बार से चुनाव हार रही है। हर बार एक नए चेहरे को टिकट इसलिए देती है ताकि पुराने चेहरों से जो भी नाराजगी हो वो दूर हो सके, लेकिन कांग्रेस समेत तमाम चुनाव विश्लेषकों के लिए ये बात समझ से परे है कि जब बीजेपी बार-बार जीत रही है तो मतदाताओं में कांग्रेस को लेकर नाराजगी किस बात की है।

आपको उन सीटों के बारे में बताता हूं, जहां कांग्रेस ने इस बार भी चेहरे बदलने का एक्सपेरिमेंट किया है। भोपाल, भिंड, खरगोन, बालाघाट और सागर में पिछले पांच लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने हर बार उम्मीदवार बदल दिए हैं इस सोच के साथ कि शायद इससे मतदाताओं का मन भी बदल जाए पर दाल नहीं गली। इनमें खरगोन सीट को छोड़ दें तो बाकी चारों में कांग्रेस हर बार बड़े मतों के अंतर से हारी। 

खरगोन और मंडला सीट

खरगोन में 2007 के उपचुनाव और 2009 के आम चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी अरुण यादव की जीत हुई थी। टीकमगढ़, धार और दमोह लोकसभा सीटों में कांग्रेस चार बार से प्रत्याशी बदल रही है। पिछले तीन चुनावों तो उसे सफलता नहीं मिली। मंडला लोकसभा सीट पर भी कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में चार बार उम्मीदवार बदले हैं। कांग्रेस ने इस बार ओमकार सिंह मरकाम को टिकट दिया है। वो इस चुनाव के पहले 2014 में यहां से चुनाव लड़े थे। इस सीट पर 2009 में कांग्रेस के बसोरी सिंह मसराम बीजेपी के फग्गन सिंह कुलस्ते से जीत गए थे। बाकी 2014 और 2019 में फग्गन सिंह कुलस्ते यहां से जीते। 

भोपाल सीट

भोपाल एक ऐसी सीट है जहां बीजेपी मतों के बड़े अंतर से जीतती आई है इसके बाद भी पिछले तीन चुनाव से हर बार उम्मीदवार बदल रही है। 2014 में आलोक संजर, 2019 में प्रज्ञा सिंह ठाकुर और इस बार आलोक शर्मा बीजेपी से मैदान में हैं। बीजेपी के साथ साथ कांग्रेस ने भी चेहरे बदले लेकिन भोपाल सीट जीत नहीं सकी।

ग्वालियर सीट 

भोपाल के अलावा ग्वालियर लोकसभा सीट पर भी बीजेपी लगातार प्रत्याशी बदल रही है। यहां से 2004 में जयभान सिंह पवैया, इसके बाद 2007 के उपचुनाव और 2009 के आम चुनाव में यशोधरा राजे सिंधिया, 2014 में नरेंद्र सिंह तोमर, 2019 में विवेक शेजवलकर और इस बार भारत सिंह कुशवाह को उम्मीदवार बनाया गया। इसमें 2004 को छोड़ दें तो बाकी सभी चुनावों में बीजेपी की ही जीत हुई थी। फिलहाल ग्वालियर सीट पर भी कांग्रेस का मंथन जारी है। 

बैतूल और सतना सीट 

इन सीटों के अलावा कुछ सीटें ऐसी भी हैं जहां कांग्रेस ने बीजेपी के सामने अपने पुराने कंटेस्टेंट को ही रिपीट कर दिया है। मंडला के बारे में तो मैं आपको बता ही चुका हूं। 2014 में फग्गन सिंह कुलस्ते से चुनाव हारे मरकाम फिर इस बार उनसे मुकाबला करेंगे। इसके अलावा बैतूल, सतना सीटों पर पुराने प्रतिद्वंद्वी ही फिर से आमने सामने हैं। बैतूल से दुर्गादास उइके और रामू टेकाम लगातार दूसरी बार आमने सामने हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में टेकाम 3 लाख 60 हजार 241 मतों से हारे थे।  इस सीट पर कांग्रेस से आखिरी बार 1991 में असलम शेर खान जीते थे। 1996 से लगातार बीजेपी इस सीट से जीतती आ रही है। वर्तमान सांसद दुर्गादास उइके पहली बार 2019 में जीते थे। इस बार कांग्रेस ने रामू टेकाम को बहुत उम्मीदों के साथ टिकट दिया है। वो आदिवासी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। क्षेत्र में उनकी पकड़ को देखते हुए कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया है। वह विधानसभा चुनाव में बैतूल से टिकट मांग रहे थे, तभी पार्टी पदाधिकारियों ने उन्हें लोकसभा का टिकट दिलाने का आश्वासन दिया था। 

सतना सीट

अब बात करते हैं सतना लोकसभा सीट की। जो पिछले छह बार यानी कि साल 1998 से भाजपा जीत रही है। ऐसे में यह सीट कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है। कांग्रेस ने यहां सिटिंग एमएलए सिद्धार्थ कुशवाहा को टिकट दिया है। बीते विधानसभा चुनाव में कुशवाहा, गणेश सिंह को हराकर दूसरी बार विधायक बने हैं। अब दोनों की भिड़ंत लोकसभा के लिए है। दोनों प्रत्याशी ओबीसी वर्ग से हैं। इस वर्ग के मतदाता भी यहां बड़ी संख्या में हैं। सिद्धार्थ के पिता सुखलाल कुशवाहा भी यहां से 1996 में कांग्रेस प्रत्याशी अर्जुन सिंह और भाजपा के वीरेंद्र सखलेचा को हराकर जीते थे। उन्होंने बीएसपी के टिकट पर जीत हासिल की थी। जातिगत समीकरण को देखते हुए बसपा ने यहां से नारायण त्रिपाठी को उम्मीदवार बनाया है, जिससे मुकाबला दिलचस्प हो गया है। ये उम्मीद जताई जा सकती है कि कांग्रेस यहां विधानसभा की तर्ज पर जीत रिपीट कर सके, लेकिन लोकसभा और विधानसभा में चुनावी समीकरण भी अलग होते हैं और मतदाताओं का नजरिया भी। इसलिए विधानसभा का फॉर्मूला धूल में लट्ठ साबित हो जाए तो ही कांग्रेस के लिए कुछ बात बन सकती है।

कांग्रेस का मोटिव फिलहाल हार जीत का अंतर घटाना है

अब बस देखना ये है कि नए और पुराने चेहरों की इस कॉम्बिनेशन के साथ क्या कांग्रेस कोई चमत्कार कर पाती है। हालांकि, कुछ खबरें ऐसी भी हैं कि कांग्रेस का मोटिव फिलहाल सीट जीतना भर ही नहीं है। कोशिश ये है कि जीत नहीं मिलते तो कम से कम हार जीत का अंतर घट सके। इस तरह वोटों की संख्या बढ़ाकर कांग्रेस धीरे-धीरे हार जीत का अंतर पाटना चाहती है। लोकसभा सीटें बढ़ाने के लिए ये कांग्रेस की बेबी स्टेप्स हैं। देश की सबसे बड़ी पार्टी की पहचान रखने वाले दल के लिए ये काम नए सिरे से शुरुआत करने की तरह है, लेकिन चुनावी मजबूरी है कि कांग्रेस को पुरानी नाराजगियां दूर करनी है और पुरानी सीटें भी हासिल करनी हैं। 

चलते-चलते एक बार कुछ पुराने चुनावी आंकड़े दोहरा देता हूं। जिससे ये अंदाजा हो सके कि कांग्रेस की कुछ चुनाव पहले प्रदेश में क्या स्थिति थी। 

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 28 और कांग्रेस को एक ही सीट मिल सकी, 2014 में भाजपा को 27 और कांग्रेस को दो सीटें मिलीं। जबकि 2009 में भाजपा 16, कांग्रेस 12 और बसपा एक सीट पर काबिज थी। इस बार कांग्रेस ने न सिर्फ उम्मीदवार बदले हैं बल्कि, नए चेहरों और युवाओं को मौका दिया है। देखना ये है कि अब ये एक्सपेरिमेंट क्या प्रदेश में बीजेपी के मिशन 29 के सामने कामयाब हो पाता है।

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