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MP News: मध्य प्रदेश में सरकारी स्कूलों में शिक्षक बनने की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए अहम खबर है। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट, जबलपुर ने शिक्षक भर्ती से जुड़े "नियम 12.4" को लेकर राज्य शासन से जवाब तलब किया है। यह मामला दिनेश गर्ग और अन्य 19 उम्मीदवारों की याचिका WP-19644/2025 से जुड़ा है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि यह नियम भेदभावपूर्ण और संविधान के मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है। हाईकोर्ट ने इस याचिका की सुनवाई के बाद सरकार से इस नियम के लागू होने का आधार पूछा है।
क्या है शिक्षक भर्ती 2024 का नियम 12.4
नवीन शिक्षक भर्ती नियम 2024 के तहत नियम 12.4 में बदलाव किया गया है। अगर कोई अभ्यर्थी शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) में 90 अंक से कम लाता है और आरक्षित वर्ग में पात्रता प्राप्त करता है, तो वह केवल आरक्षित वर्ग में ही भर्ती के लिए मान्य होगा। उसे सामान्य वर्ग (अनारक्षित श्रेणी) में चयन का अवसर नहीं मिलेगा, भले ही वह मुख्य परीक्षा में जनरल कैटेगरी के कट-ऑफ से अधिक अंक प्राप्त कर ले। यह नियम होनहार छात्रों को प्रभावित करता है, जो मुख्य परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन करते हुए भी केवल TET में कम अंक के कारण सामान्य कोटे में चयनित नहीं हो पाते।
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योग्यता के साथ हो रहा अन्याय
इस याचिका में तर्क रखा गया कि यह नियम संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन करता है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि आरक्षित वर्ग के कई छात्रों ने चयन परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त किए हैं। फिर भी, TET में 90 से कम अंक के कारण उन्हें जनरल कोटे से बाहर कर दिया जाता है। यह व्यवस्था अव्यवहारिक और पक्षपातपूर्ण है।
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मेरिट को दी जानी चाहिए प्राथमिकता
इस मामले में याचिकाकर्ताओं के वकील आर्यन उरमलिया ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय "सौरव यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य" का हवाला दिया। इस निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यदि आरक्षित वर्ग का अभ्यर्थी सामान्य वर्ग की मेरिट में आता है, तो उसे अनारक्षित कोटे में समायोजित किया जाना चाहिए। यह निर्णय मेरिट और आरक्षण की सही व्याख्या का प्रतीक माना जाता है। इसके अनुसार, मेरिट पर चयनित अभ्यर्थी को केवल आरक्षित श्रेणी से होने के कारण वंचित नहीं किया जा सकता।
दोहरी मार झेल रहे हैं उम्मीदवार
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इस नियम के कारण आरक्षित वर्ग के होनहार उम्मीदवार जनरल कोटे से बाहर कर दिए जाते हैं। इसके अलावा, उन्हें अपनी आरक्षित कैटेगरी में भी कम अवसर मिलते हैं, क्योंकि सीटें सीमित होती हैं। यानी वे अपनी प्रतिभा के बावजूद न सामान्य वर्ग में चयनित हो पाते हैं, न आरक्षित श्रेणी में अपनी स्थिति मजबूत कर पाते हैं। इससे यह नियम “डबल डिस्क्रिमिनेशन” (दोहरा भेदभाव) उत्पन्न करता है, जो समानता और योग्यता के सिद्धांत के विपरीत है।
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राज्य सरकार से मांगा कोर्ट ने मांगा जवाब
इस याचिका पर 19 जून को जस्टिस विवेक जैन की सिंगल बेंच में सुनवाई हुई। कोर्ट ने याचिका पर संज्ञान लेते हुए कहा कि यह मामला गंभीर संवैधानिक प्रश्न उठाता है, जिससे हजारों उम्मीदवारों का भविष्य जुड़ा है। अदालत ने राज्य शासन, स्कूल शिक्षा विभाग और अन्य अधिकारियों को नोटिस जारी किया। कोर्ट ने यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया कि नियम 12.4 की संवैधानिक वैधता क्या है और क्या यह समान अवसर के सिद्धांत के अनुरूप है। मामले की अगली सुनवाई के लिए तारीख तय की गई है।
फैसला आने पर हो सकते हैं बड़े बदलाव
अगर कोर्ट इस याचिका पर सुनवाई के बाद नियम 12.4 को असंवैधानिक करार देता है, तो इससे शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में बड़ा बदलाव आ सकता है। यह उन हजारों उम्मीदवारों को राहत दे सकता है, जो अपनी मेहनत और मेरिट के बावजूद सामान्य वर्ग में चयनित नहीं हो पाए हैं। साथ ही, यह फैसला भविष्य की भर्तियों में मेरिट और आरक्षण के बीच संतुलन की नई दिशा तय कर सकता है।
फिलहाल निगाहें अगली सुनवाई पर
मामले की अगली सुनवाई 4 अगस्त को होगी। इस मामले ने प्रदेश भर के अभ्यर्थियों और शिक्षा जगत का ध्यान आकर्षित किया है। अब सभी की निगाहें हाईकोर्ट की अगली सुनवाई पर टिकी हैं, जहां यह तय होगा कि नियम 12.4 संविधान की कसौटी पर खरा उतरता है या नहीं।
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